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ओमान में नौकरी की जाल में फंसी महिला जान बचाकर घर लौटी, आखिर हुआ क्या था?

महिला को डोमेस्टिक हेल्पर की नौकरी के बहाने कथित तौर पर बेईमान ट्रैवल एजेंटों ने ओमान भेजा था.

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भारत
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"घर आकर सबसे पहले बच्चों को पकड़ कर रोई", ये कहना है 40 वर्षीय महिला का जो 6 जून से रोजाना द क्विंट को SOS संदेश भेज रही थी, ताकि उसे ओमान से बचाया जा सके, जहां वो छह महीने से अधिक समय से फंसी हुई थी.

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27 दिसंबर 2022 को, महिला को डोमेस्टिक हेल्पर की नौकरी के बहाने कथित तौर पर मुंबई के बेईमान ट्रैवल एजेंटों ने ओमान भेजा था. हालांकि, मस्कट में उतरने के बाद, उसे वहां के स्थानीय एजेंट एक "कार्यालय" में ले गए. कथित तौर पर कम से कम एक महीने तक कैद में रखा. स्थानीय एजेंटों की जोर जबरदस्ती और रोजगार करार पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किए जाने पर महिला ने कहा कि उसके एम्पलॉयर ने उसके साथ बदसलूकी तो नहीं की लेकिन उससे बहुत देर तक काम करवाया जाता था.

7 जुलाई को महिला को ओमान में भारतीय दूतावास लाया गया था. इससे दस दिन पहले, द क्विंट ने महिला की दुर्दशा पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी: ओमान से SOS: 'मुझे यहां से बाहर निकालो, शेल्टर होम में फंसी भारतीय महिला ने कहा था.'

मस्कट में भारतीय दूतावास के सामुदायिक कल्याण विंग के अधिकारी, धनी राम ने 13 जुलाई को ईमेल के माध्यम से द क्विंट से पुष्टि की कि महिला को भारत वापस लाने में दूतावास ने सहायता की थी. दूतावास ने ही महिला को हवाई टिकट मुहैया कराने में मदद की थी.

"मैंने नहीं सोचा था कि मैं वहां से जीवित बचकर निकल पाऊंगी." 10 जुलाई को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में डालीगंज में अपने घर वापस लौटने के बाद महिला ने ये बात कही. कई महीनों के बाद वो अपने दो बच्चों- 13 साल की बेटी और 10 साल के बेटे से मिल पाई. उनके पति का कुछ साल पहले निधन हो गया था.

वतन वापसी के तीन दिन बाद क्विंट ने महिला से बात की. उन्होंने बताया कि कैसे वह अब भी ओमान के बारे में सोच कर कांप उठती हैं, कैसे प्रवासी कामगार कर्ज के जाल में फंस जाते हैं और कैसे ओमान में भारतीय दूतावास के आश्रय गृह में अभी भी कम से कम 75 भारतीय महिलाएं फंसी हुई हैं.

बुरे एम्पलॉयरर्स, कर्ज का जाल: ओमान में क्या हुआ था ?

लखनऊ की इस महिला ने ओमान में प्रवासी घरेलू सहायकों के लिए कामकाज की खराब दशा के बारे में बताया. उन्होंने ये भी बताया कि काम के बदले में शायद ही कभी उन्हें वाजिब मजदूरी मिलती है.

“जिस अरबाब (एम्पलॉयर) ने मुझे नौकरी पर रखा था, उसके पास कई कमरों वाला एक बड़ा घर था, जिसे साफ करने के लिए मुझसे कहा गया था. उनके परिवार में 25-30 सदस्य हैं. मुझे बाथरूम साफ करना, कपड़े धोना, खाना पकाना और बर्तन साफ करने का काम दिया गया था. महिला ने आरोप लगाया, ''मैं दिन में 12-14 घंटे काम करती थी, जब तक कि मेरी तबीयत खराब नहीं हो गई''. ओमान में तीन महीने तक उन्होंने घरेलू हेल्पर के रूप में काम किया.

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उन्होंने दावा किया कि कई मामलों में, एम्पलॉयर महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करते हैं, अक्सर उनके साथ शारीरिक और यौन उत्पीड़न भी होता है.

हालांकि, लखनऊ की महिला ने कहा कि जब उसको रीढ़ की हड्डी में परेशानी होने लगी, तो वो इस बीमारी की वजह से अपना काम नहीं कर पा रही थी तो उसके एम्पलॉयर ने उसे स्थानीय एजेंटों के "कार्यालय" में वापस भेजने की पेशकश की, जिन्होंने उसे वहां नौकरी दिलाई थी.

महिला ने द क्विंट को बताया कि, “अगर मैं वहां वापस जाती, तो एजेंट मुझे दंडित करते और मुझसे लाखों रुपये का जुर्माना भरने को कहते. लेकिन मेरे पास पैसे नहीं थे. इसलिए मैं ओमान में भारतीय दूतावास भागकर चली गई.''

ओमान से बचाई गई भारतीय महिलाओं की रिपोर्ट और गवाही से, द क्विंट को पता चला था कि उनकी भर्ती के समय, स्थानीय एजेंट धोखे से या जबरदस्ती महिलाओं से एक रोजगार अनुबंध पर हस्ताक्षर करा लेते हैं जो महिलाओं को कम से कम दो साल तक काम करने के लिए बाध्य करता है. अगर वे इससे पहले नौकरी छोड़ देती हैं, तो उन्हें अनुबंध के उल्लंघन के लिए दंड के रूप में 1,500 ओमानी रियाल (लगभग 3.2 लाख रुपये) का भुगतान करना होगा.

महिला ने बताया, "अगर कोई महिला या उसके रिश्तेदार जुर्माना भरने में असफल रहते हैं, तो एजेंट उन्हें दूसरी नौकरी देते हैं. उनके पास दो विकल्प होते हैं - या तो वे जुर्माना भरें और घर वापस जाएं या फिर अपना पासपोर्ट वापस पाने से पहले दो साल तक ओमान में काम करें. मैं दोनों में से कोई भी बर्दाश्त नहीं कर सकती थी."

उन्होंने कहा कि वह ओमान में भारतीय दूतावास के आश्रय गृह में कई ऐसी महिलाओं से मिलीं, जिन्हें इसी तरह के हालात का सामना करना पड़ रहा है.

क्विंट को पहली बार महिला का SOS संदेश- व्हाट्सएप पर वॉयस नोट के रूप में 6 जून को भारतीय समयानुसार शाम लगभग 7.30 बजे पर मिला था. काफी मशक्कत के बाद, रिपोर्टर राज्यसभा सांसद बलबीर सिंह सीचेवाल की टीम से संपर्क कर सकी, जिन्होंने 13 जून को केंद्रीय विदेश मंत्रालय (MEA) को महिला की तत्काल भारत वापसी के लिए एक पत्र लिखा था.

हमारी न्यूज रिपोर्ट 'ओमान में तस्करी कर लाए गए भारतीय घरेलू हेल्परों को कैसे बचाया गया' प्रकाशित होने के 35 दिन बाद महिला ने द क्विंट से गुहार लगाई थी. इस न्यूज रिपोर्ट में यह बताया गया था कि पंजाब की कई महिलाओं को अनाधिकृत एजेंटों ने ओमान में नौकरी के नाम पर धोखा दिया था. उन महिलाओं को यहां काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था. लखनऊ की महिला को इस रिपोर्टर का नंबर उन महिलाओं में से एक से मिला था, जिनसे क्विंट ने उस स्टोरी के लिए बात की थी.

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ओमान से कैसे बचकर निकली लखनऊ की महिला?

लखनऊ की महिला को 24 अप्रैल को भारतीय दूतावास के शेल्टर होम में रखा गया था. वह दो महीने से अधिक समय तक वहां फंसी रही. यहीं से वह इस रिपोर्टर को भारतीय समयानुसार रोजाना शाम करीब 5.30 बजे व्हाट्सएप पर SOS वॉयस नोट्स भेजती थी.

महिला ने बताया कि 5 जुलाई को रात 10 बजे के आसपास, शेल्टर होम के वार्डन ने उससे कहा कि उसे अगले दिन लेबर कोर्ट जाना चाहिए. महिला का कहना है कि उसे कोई अंदाजा नहीं था कि आखिर चल क्या रहा है. महिला ने दावा किया कि जब वह लेबर कोर्ट गई, जो मस्कट में आश्रय गृह से ज्यादा दूर नहीं है, तो उसे उसका पासपोर्ट मिला और पुलिस अधिकारी उसे हवाई अड्डे तक ले गए, जिन्होंने उसे हवाई टिकट भी दिए.

“मुझे यह भी नहीं पता था कि मैं कहां जा रही थी. फ्लाइट मुंबई के लिए थी या दिल्ली के लिए या लखनऊ के लिए मुझे कुछ नहीं पता था. मुझे बस वहां से बाहर निकलने का एक रास्ता दिख रहा था.''
लखनऊ की महिला

महिला ने कहा कि वह 7 जुलाई को मस्कट से लगभग 1.30 बजे अपनी फ्लाइट में सवार हुई और उसी सुबह लगभग 6 बजे दिल्ली में उतरी. वहां से उसने लखनऊ के लिए ट्रेन पकड़ी, जहां वह 7 जुलाई को देर शाम पहुंची.

‘अभी भी सिहर जाती हूं’

अपने SOS वॉयस नोट्स में महिला ने आश्रय गृह में बदतर हालात के बारे में बताया था, जहां उसे कथित तौर पर 20-25 अन्य भारतीय महिलाओं के साथ रखा गया था.

महिला ने द क्विंट से बात करते हुए कहा कि “वहां अपने समय के दौरान, मैंने कई महिलाओं से बात की थी. उनमें से एक ने कहा कि जब उसने शिकायत की तो उसके एम्पलॉयर ने उसके चेहरे पर गर्म चाय फेंक दी. एक अन्य ने कहा कि उसके नियोक्ता ने उसका चेहरा पानी से भरी बाल्टी में डुबो दिया और उसकी पिटाई की. उसके शरीर पर घाव के निशान थे! प्रस्ताव ठुकराने के बाद एक अन्य महिला के साथ उसके एम्पलॉयर ने रेप किया और उसे गर्भवती कर दिया.''

महिला ने बताया कि जब वह निकली तो शेल्टर होम में कम से कम 75 महिलाएं थीं. उन्होंने आगे कहा कि, "उनमें से कई 18 या 19 साल की युवा लड़कियां हैं- जो ब्यूटीशियन और नर्स के रूप में काम करने के लिए ओमान आई थीं, लेकिन घरेलू सहायिका के रूप में काम करने लगीं."

जून 2011 में विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी जॉब कॉन्ट्रैक्ट में कहा गया है कि भारत से ओमान लाए जाने वाले घरेलू सहायक की आयु 30 वर्ष से कम और 50 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए.

उन्होंने कहा, “वहां फंसी महिलाओं के बारे में सोचकर मैं आज भी सिहर उठती हूं, मैं कापने लगती हूं. मुझे पसीना आने लगता है और मेरी धड़कनें तेज हो जाती हैं."

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अब कभी बच्चों को अकेले नहीं छोड़ूंगी

महिला ने कहा कि “अब जब घर आ गई हूं, बच्चों से मिल लिया है..अब सुकून महसूस हो रहा है कि मैं वहां से जिंदा बचके निकल आई.”

महिला की गैरमौजूदगी में उनकी मां, उसके बच्चों की देखभाल कर रही थी, इस दौरान उनकी तबीयत ज्यादा खराब हो गई और उन्हें कानपुर के अस्पताल में भर्ती करवाया गया. इस दौरान उनके बच्चे बिल्कुल अकेले थे.

7 जुलाई को लखनऊ लौटने के बाद से, महिला ने जिंदगी को सामान्य बनाने की कोशिश की है, लेकिन ओमान में फंसने के दौरान उसके और उसके साथ रहने वाली महिलाओं के साथ जो कुछ हुआ उसकी भयानक यादों से भी जूझ रही है.

23 जुलाई को जब हमने महिला से बात की तो उसने बताया कि वो अपनी बीमार मां से मिलने के लिए कानपुर गई थी, जो खून में संक्रमण से पीड़ित हैं. ओमान में कमाए पैसे से महिला ने अपने बच्चों का स्कूल फीस भरा और उन्हें नए ड्रेस और जूत दिलाए. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वह अब वह कभी वापस नहीं जाएंगी.

महिला कहती हैं कि, अभी तो घर की छत पर भी जाने से डर लगता है. लोग क्या कहेंगे? लेकिन जब मैं एक बार ठीक हो जाऊंगी तब फिर लखनऊ में ही कोई नौकरी की तलाश करूंगी...मैं अब दोबारा कभी अपने बच्चों को अकेले नहीं छोड़ने वाली हूं.”

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