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Lok Sabha Result 2024: कांग्रेस का आखिरी किला भी ढहा, जानें छिंदवाड़ा सीट पर कहां बिगड़ गई बात?

Chindwada Lok Sabha 2024: कमलनाथ ने छिंदवाड़ा सीट से 1980 में पहली बार चुनाव लड़ा था. वह 10 बार यहां से सांसद रहे हैं.

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भारत
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लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) के नतीजे आए तो विपक्षी पार्टी के नेताओं की आंखों में चमक आ गई. भले ही विपक्ष ने चुनाव में बहुमत हासिल न किया हो लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आरजेडी समेत कई पार्टी के नेताओं ने नतीजों को 'लोकतंत्र बचा लेने वाला रिजल्ट' बताया.

इन सब के बावजूद विपक्षी गठबंधन इंडिया गुट की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस कुछ ऐसी सीटें बचाने में नाकामयाब रही जो उनका गढ़ हुआ करती थी. इनमें से एक सीट है मध्य प्रदेश की छिंदवाड़ा सीट.

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देश के पहले आम चुनाव से लेकर अब तक छिंदवाड़ा लोकसभा चुनाव कांग्रेस जीतती आई है. हालांकि 1997 में हुए उपचुनाव में पार्टी को यहां हार मिली थी लेकिन कुछ महीने के बाद ही 1998 लोकसभा चुनाव में पार्टी को जीत हासिल हुई थी.

वहीं कमलनाथ इस सीट से 10 बार लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं.

BJP का लगातार बढ़ता वोट शेयर और आखिरकार कांग्रेस की हार

कमलनाथ ने छिंदवाड़ा सीट से 1980 में पहली बार चुनाव लड़ा था. वह 10 बार यहां से सांसद रहे हैं लेकिन 2009 से इस सीट पर लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर लगातार बढ़ा है जबकि कांग्रेस का वोट शेयर कम हुआ है.

साल 1997 में जब इस सीट पर उप चुनाव हुए थे तब बीजेपी के उम्मीदवार ने कमलनाथ को 38 हजार वोटों के अंतर से हराया था. इसके अलावा कांग्रेस हर चुनाव इस सीट पर जीत चुकी है. वहीं कमलनाथ इस सीट से 9 बार लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं.

2019 में कांग्रेस के नकुलनाथ ने 47.1% वोट शेयर के साथ जीत हासिल की थी. वहीं बीजेपी के नत्थन शाह कवरेती ने 44.1% वोट शेयर हासिल किया था. 2014 में कांग्रेस के कमलनाथ ने 50.5% वोट शेयर के साथ जीत दर्ज की थी. बीजेपी को 40% वोट शेयर मिला था. 2009 में कमलनाथ ने 49.4% वोट शेयर के साथ जीत दर्ज की थी. वहीं बीजेपी को 34.8% वोट शेयर मिला था.

हार की वजह नकुलनाथ या कांग्रेस की रणनीति जिम्मेदार? 

साल 2024 लोकसभा चुनाव में छिंदवाड़ा सीट पर नतीजों में ऐसे अभूतपूर्व बदलाव की क्या वजह रही और इसकी पीछे कौन से फैक्टर रहे?

मध्य प्रदेश की राजनीति पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार दिनेश गुप्ता ने क्विंट हिंदी को बताया, "इस बार कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में बीजेपी को कम आंका जबकि पिछली बार भी उनकी करारी हार हुई थी. उनको लगता था कि जैसे हर बार बीजेपी शोर मचाती थी इस बार भी ऐसा ही कुछ है. साल 2019 में छिंदवाड़ा में नकुलनाथ की जीत बेहद कम अंतर से हुई थी. वो भी ऐसे वक्त में जब उनके पिता तत्कालीन मुख्यमंत्री थे."

साल 2019 लोकसभा चुनाव में छिंदवाड़ा सीट पर पहली बार कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ ने चुनाव लड़ा. तब पूरे मध्य प्रदेश में सिर्फ यही सीट कांग्रेस बचा पाई थी. नकुलनाथ को 2019 में महज 37000 हजार वोटों के अंतर से जीत मिली थी.

दिनेश गुप्ता कहते हैं, "कमलनाथ ने अपने लिए समय रहते इस खतरे को नहीं भांपा की उनके सीएम रहते हुए भी उनके बेटे को मामूली अंतर से जीत मिली है. वो मानते रहे कि छिंदवाड़ा में बीजेपी को वोट नहीं मिलेगा लेकिन इस लोकसभा क्षेत्र में लोग मोदी और राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर अपना मूड बना चुके थे."

नकुलनाथ के व्यवहार की वजह से भी कमलाथ के पुराने वफादार और करीबी लोग उन्हें छोड़ कर चले गए. जैसे दीपक सक्सेना का साथ कमलाथ के दोस्ताना रिश्ते हैं. इस लिहाज से नकुलनाथ को तो उन्हें आदर देना चाहिए, उनसे सारी चीजें पूछनी समझनी पडे़गी लेकिन उनको नकुलनाथ की ओर से उस तरह से रिस्पेक्ट नहीं दी गई इसलिए लोग चुनाव के आसपास छोड़कर जाते रहे.
दिनेश गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार
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कौन हैं बंटी साहू जिन्होंने कांग्रेस के अभेद्य किला भेद दिया?

बंटी साहू का कद मध्य प्रदेश के बड़े नेताओं में गिना जाता है. हालांकि लोकसभा चुनाव जीतने से पहले तक बंटी साहू ने कोई बड़ा चुनाव नहीं जीता था.

इससे पहले 2023 विधानसभा चुनाव में भी बंटी साहू ने कमलनाथ को कड़ी टक्कर दी थी. तब कमलनाथ 36 हजार वोट के मामूली अंतर से जीत पाए थे. बंटी साहू तब भी चर्चा में रहे थे जब एक महिला के साथ उनकी कथित कॉल रिकॉर्डिंग वायरल हुई थी. तब कांग्रेस ने इसे मुद्दा बनाया था और बीजेपी की ओर कहा गया था कि वह इसकी जांच करेंगे.

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