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UP-MP में श्रम कानून बदलाव:कारोबारी खुश,लेबर नेता बोले-बढ़ेगा शोषण

मजदूरों के अधिकारों के लिए काम करने वालों का कहना है कि कानून में जो बदलाव हुए हैं वो हमें 100 साल पीछे ले जाते हैं.

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यूपी और एमपी ने अपने यहां श्रम कानूनों में ढील दी है. मकसद बताया है कि कोरोना के कारण आए आर्थिक संकट के दौर में इडस्ट्री को बूस्ट चाहिए. इंडस्ट्री लेबर कानून में हुए बदलावों का स्वागत कर रही है, लेकिन मजदूरों के अधिकारों के लिए काम करने वालों का कहना है कि कानून में जो बदलाव हुए हैं वो हमें 100 साल पीछे ले जाते हैं.

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मध्य प्रदेश में 1000 दिन और यूपी में 3 साल तक श्रम कानूनों के कई प्रावधानों में छूट दी गई है. इन कानूनों में विवादों को निपटाने से जुड़े कानून, काम करने के दौरान सेफ्टी से जुड़े कानून, स्वास्थ्य और काम करने के हालात से जुड़े कानून, ट्रेड यूनियन से जुड़े कानून,कॉन्ट्रैक्ट वर्कर और प्रवासी मजदूर से जुड़े कानून शामिल हैं.

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के लेबर कानूनों में क्या बदलाव हुए वो आप यहां पढ़ सकते हैैं.

इंडस्ट्री का मानना है कि कोरोना वायरस के बाद जो लॉकडाउन हुआ है उससे इंडस्ट्री की कमर टूट गई है. प्रोडक्शन एक झटके में बंद पड़ गया. अब कोरोना में नई व्यवस्था के साथ काम फिर से शुरू हो रहा है, लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग, कम वर्कफोर्स जैसी सावधानियों के साथ काम करना पड़ रहा है. भोपाल के एसोसिएशन ऑफ ऑल इंडस्ट्रीज के आदित्य मोदी बताते हैं कि कोरोना आने के बाद से इंडस्ट्री में बहुत सारी परिस्थितियां बदली हैं. इसके बाद सरकार ने जो लेबर कानूनों में बदलाव लाए हैं ये काफी अच्छे हैं और प्रैक्टिकल हैं.

काम करने के घंटे बढ़ाने का जो फैसला है उससे कोरोना काल में कम लेबर रखकर काम कराया जा सकेगा और सोशल डिस्टेंसिंग भी मेनटेन रह सकेगी. जहां तक मजदूरों के मौलिक अधिकारों के हनन की बात है तो अभी हम ऐसे वक्त में खड़े हैं जहां अधिकारों से ज्यादा पेट की भूख और अस्तित्वकी लड़ाई है. अगर इंडस्ट्री बचेगी तो मजदूर बचेंगे और फिर सरकार बचेगी. तो इस संकट से निकलने का सिर्फ यही रास्ता हो सकता है.
आदित्य मोदी, एसोसिएशन ऑफ ऑल इंडस्ट्रीज मंडीदीप भोपाल

मजदूरों के अधिकारों की कीमत पर इकनॉमी सुधारने की बात गलत

मजदूरों के अधिकारों की बात करने वाले संगठन इसे एक पैटर्न का हिस्सा बता रहे हैं. उनका मानना है कि सरकार जिन लेबर कानूनों को कई साल से खत्म करने की कोशिश कर रही थी, अब वही करने के लिए उसे कोरोना संकट का बहाना मिल गया है. ये भी मानते हैं कि इकनॉमी को फिर से पटरी पर लाया जाए लेकिन ये काम मजदूरों के अधिकारों के कीमत पर नहीं होना चाहिए.

माइग्रेंट लेबर एक्टिविस्ट राजेंद्र नारायण बताते हैं कि लेबर कानूनों में जो बदलाव हुए हैं वो हमें करीब 100 साल पीछे ले जाते हैं. ये  संशोधन कई तरह के शोषण का दरवाजे खोलता है. राजेंद्र का मानना है कि अभी तक जो कानून थे अगर अब वो नहीं रहेंगे तो मजदूरों के पास अपने अधिकारों के लिए लड़ने का कोई आधार नहीं रह जाएगा.

मजदूरों के काम करने की परिस्थितियां, उनके स्वास्थ्य वगैरह पर कोई निगरानी नहीं रहेगी. मजदूरों के साथ पहले से जो गैर कानूनी तरीके से होता रहा है ये संशोधन उन सभी कामों को अब कानूनी मान्यता देंगे. ये संशोधन साफ गवाही देतेहैं कि ये गरीब विरोधी सरकार है. हालांकि बात सही है कि इकनॉमी को वापस पटरी पर लाया जाना चाहिए लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि इसकी कीमत गरीब चुकाएं. सरकार को इकनॉमी को बूस्ट देने के लिए राहत पैकेज लाना चाहिए और रोजगार स्कीमों पर फोकस करना चाहिए.
राजेंद्र नारायण, माइग्रेंट लेबर एक्टिविस्ट

ट्रेड यूनियन संगठन AICCTU के जनरल सेक्रेट्री राजीव ढीमरी बताते हैं कि सरकार पिछले 6 साल से 44 लेबर कानूनों को खत्म करके 4 कोड बनाने की कोशिश कर रही है. इस पर मजदूर संगठनों की सरकार से काफी वक्त तक चर्चा भी हुई. हम मानते थे ये मजदूर को दास बनाने वाला कानून हो जाएगा. राजीव बताते हैं कि केंद्र ने राज्य सरकारों को छूट दे दी कि आप इसमें बदलाव करते रहें. हम जानते हैं कि कोरोना संकट आने के पहले से ही इकनॉमी की हालत खस्ता थी. अब कोरोना के बाद स्थितियां भयानक रूप से बिगड़ गई हैं. लेकिन इसका भार मजदूर वर्ग पर डाला जा रहा है. अब इकनॉमी के संकट का बहाना लेकर मजदूरों के अधिकारों को छीनने का काम किया जा रहा है.

सबसे बड़ा जो बदलाव है वो है कि काम करने की लिमिट को 8 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया गया है. ये पहल केंद्र सरकार की तरफ से शुरू हुई थी कि फैक्टरी एक्ट में बदलाव करके ये किया जाए. तब सरकार ने इससे पलड़ा झाड़ लिया. लेकिन तभी राज्य सरकार के स्तर पर ये किया जाने लगा. अब मालिकों के पास हायर एंड फायर करने की खुली छूट होगी, मजदूरों का शोषण बढ़ेगा, ओवर टाइम खत्म किया जा रहा है, ठेकेदारों के ऊपर से नियम खत्म हो जाएंगे. इससे कॉरपोरेट्स का राज बनेगा और मजदूर वर्ग की स्थिति और खराब होगी.
राजीव ढीमरी, जनरल सेक्रेट्री, AICCTU

वकील संजॉय घोष भी राज्य सरकारों के इस फैसले को चौंकाने वाला बताते हैं. उनका मानना है कि इस तरह से पहले कभी नहीं हुआ है. इससे मजदूरों का शोषण बढ़ेगा और इंडस्ट्री का एम्पलॉई पर होने वाला खर्च घट जाएगा. अभी तक हमारे पास संशोधन क्या-क्या हुए हैं उसकी पूरी जानकारी नहीं है. ये कानून बहुत ज्यादा संवेदनशील हैं और अगर इसमें बदलाव किया जाता है तो ये ठीक नहीं है

मुझे नहीं पता कि ये संशोधन लागू कैसे होंगे, ये एक तरह से एनार्की जैसी हालत हो जाएगी. इन बदलावों का असर कैसे होगा उदाहरण से समझिए. मान लीजिए एक फर्म है जिसमें कई परमानेंट वर्कर काम करते हैं. इन संशोधनों के बाद इन मजदूरों को मिलने वाले कई लाभ बंद हो जाएंगे. ग्रेच्युटीके भुगतान से बचने के लिए इंडस्ट्री ठेके पर हायर करेगी और उनको इनफॉर्मल इकनॉमी में काम कराएगी.
संजॉय घोष, वकील

तमाम लेबर संगठनों का कहना है कि अभी लेबर कानून में बदलावों को हम पढ़कर समझ रहे हैं कि इसके कितने दुष्परिणाम हो सकते हैं लेकिन जब ये अमल में लाए जाएंगे तो इसमें से कई सारी दिक्कतें उभरकर आने वाली हैं. इन संशोधनों का ऑपरेशनल हिस्सा काफी मुश्किल भरा रहने वाला है.

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