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कर्ज, फसल बर्बादी, सरकार के कागजी दावे, बदहाली से गुजर रहे महाराष्ट्र के किसान

Maharashtra Farmer Suicide: जनवरी से अगस्त तक 600 किसानों की आत्महत्या से मौत. ये आंकड़ा मराठवाड़ा क्षेत्र का है.

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महाराष्ट्र (Maharashtra) के नांदेड़ में रहने वाले 27 साल के संतोष ने जहर खाकर जान दे दी. संतोष के घर से करीब 10 घंटे की दूरी पर गोंदिया जिला है, जहां सोविंदा सुखराम राउत नाम के शख्स ने खेत में जाकर फांसी लगा ली. अलग-अलग दिन हुईं घटनाओं में एक समानता है. दोनों किसान थे. बर्बाद होती खेती से परेशान थे. कर्ज के बोझ तले दब चुके थे. इन दो मौतों के जरिए महाराष्ट्र में किसान आत्महत्या की एक तस्वीर दिखाते हैं. लेकिन उससे पहले इन दोनों किसानों की कहानी जान लीजिए.

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भारी बारिश से फसल बर्बाद हो गई

नांदेड जिले के मुदखेड़ तालुका के संतोष संभाजी ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली. पुलिस ने कहा कि मुदखेड़ तालुक के वसारी में 29 अगस्त को दोपहर 3 बजे संतोष उमाते ने अपने घर में कथित तौर पर जहर खा लिया, जब उनका खेत भारी बारिश में बह गया था. उन्हें इलाज के लिए विष्णुपुरी के एक सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई.

कर्ज के बोझ तले दबे थे सुखराम

गोंदिया जिले के अर्जुनी मोरगांव तालुका के किसान सोविंदा सुखराम राउत ने अपने ही खेत में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. सोविंदा राउत अपनी पत्नी, बहू और बेटे के साथ रह रहे थे. वह मजदूरी और कृषि कार्य करके अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे. एक रोज उन्होंने अपनी पत्नी को बताया कि वह खेत पर जा रहे हैं. उसके बाद वह कभी नहीं लौटे. घटना का पता तब चला जब परिजन देखने के लिए खेत पर गए.

सुखराम और संतोष की तरह ये कहानी कई किसानों की है. साल 2022 की बात करें तो आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक जनवरी से लेकर अगस्त के मध्य तक 600 किसानों की आत्महत्या से मौत हो गई. यह आंकड़ा केवल महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र का है.

इसके अलावा साल 2021 में 2,498 किसानों ने जनवरी से नवंबर के बीच आत्महत्या की थी. अकेले औरंगाबाद संभाग में 800 किसानों ने जान दे दी थी. वहीं 2020 में 2,547 कर्ज में डूबे किसानों ने आत्महत्या की थी.

किसान नेता किशोर तिवारी ने क्विंट हिंदी से बातचीत में बताया कि पिछले आठ महीनों में महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या में भारी वृद्धि हुई है, अब तक 4,016 किसानों ने आत्महत्या कर ली है. नांदेड़ और गोंदिया जिलों में दो और किसानों ने कर्ज और भारी बारिश के कारण फसल खराब होने के कारण आत्महत्या कर ली. पिछले डेढ़ महीने से किसानों की आत्महत्या का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है.

बता दें कि किसान नेता किशोर तिवारी 'शेतकरी (किसान) आत्महत्या तज्ञ' के अध्यक्ष रह चुके हैं. यह एक ऐसी कमेटी थी जो किसानों से जुड़ी आत्महत्याओं के आंकड़े जुटाती है. लेकिन महाराष्ट्र में सरकार बदलने (शिंदे गुट की सरकार बनने के बाद) के बाद यह भंग हो गई.

महाराष्ट्र में क्यों परेशान हैं किसान?

पिछले कुछ सालों से प्राकृतिक आपदाओं के कारण किसान आर्थिक संकट में हैं. कृषि उपज मंडी समिति में दलालों द्वारा किसानों के शोषण को देखते हुए किसानों के लिए खेती पर होने वाला खर्च वहन करना मुश्किल होता जा रहा है.

बरसात के मौसम में बैंक से कर्ज मिलने तक फसल बोने का समय बीत जाता है. इसलिए ज्यादातर किसानों को निजी साहूकारों के दरवाजे पर खड़ा होना पड़ रहा है.

एक किसान को उर्वरक (फर्टिलाइजर), बीज, कीटनाशक जैसे आदि सामानों की समस्या से भी जूझना पड़ता है. साथ ही किसानों के लिए परिवार, बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाना मुश्किल हो रहा है. निजी साहूकार कर्ज लेने के लिए किसानों की पीठ पर बैठते हैं. यही वजहें हैं जो किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर कर रही हैं.

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 क्या कर रही है सरकार?

जब शिंदे गुट ने शिवसेना से बगावत की तो दो महीने तक महाराष्ट्र में कोई सरकार ही नहीं थी. इसका मतलब ये है कि महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य में कोई कृषिमंत्री ही नहीं था. हालांकि इसके पहले भी जब उद्धव सरकार थी, तब भी किसानों की आत्महत्या से मौत का सिलसिला जारी था.

हर सरकार किसानों को लेकर बड़े-बड़े वादे तो करती है लेकिन ये वादे कागजी ही रह जाते हैं. शिंदे गुट ने बीजेपी के साथ दो महीने बाद सरकार तो बनाई लेकिन किसानों को लेकर कोई बड़ी घोषणा या काम होता नहीं दिख रहा.

हां, या जरूर हुआ है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने 'किसान आत्महत्या मुक्त महाराष्ट्र' की घोषणा की, लेकिन जमीन पर इसका बहुत ज्यादा असर होता नहीं दिख रहा है.

नए कृषि मंत्री अब्दुल सत्तार ने अमरावती जिले में 'वन डे बलीराजा' (महाराष्ट्र में खेत का राजा बैल कहलता है इसलिए मराठी में किसानों को एक तरह से 'बलीराजा' भी कहा जाता है) के नाम से एक पहल की. इसके तहत हफ्ते में एक बार किसानों से बात करना, किसानों के खेतों पर जाकर मिलना शामिल है, लेकिन ये पहले भी किसानों की आत्महत्या को रोकने में कारगर साबित होती नहीं दिख रही हैं.

इनपुट- अविनाश कानडजे

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