महाराष्ट्र सरकार ने भीमा-कोरेगांव मामले में गिरफ्तार किए गए 5 एक्टिविस्ट में से एक गौतम नवलखा की नजरबंदी खत्म करने के दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.
बुधवार को महाराष्ट्र सरकार की तरफ से दायर याचिका में नवलखा की रिहाई को CRPC की धाराओं की गलत व्याख्या का नतीजा बताया गया था. सोमवार को ही दिल्ली हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस की ट्रांजिट रिमांड की मांग को खरिज करते हुए नवलखा को पांच सप्ताह से चल रही नजरबंदी से मुक्त कर दिया था.
क्या है पूरा मामला
इस पूरे मामले पर गौर करने के लिए इतिहास के पन्ने पलटना जरूरी हो जाता है.
1 जनवरी, 1818 को महाराष्ट्र के पुणे के पास भीमा नदी के किनारे पेशवा और अंग्रेजों का आमना-सामना हुआ था. अंग्रेजों के मुकाबले संख्या में ज्यादा होने के बावजूद पेशवाई सेना को अपने पैर पीछे खींचने पर मजबूर होना पड़ा था. इस युद्ध में अंग्रेजों की तरफ से कुछ महार जाति के दलित सैनिक भी लड़ रहे थे. बाद में 1 जनवरी 1927 भीमराव अम्बेडकर ने यहां का दौरा कर भीमा-कोरेगांव को दलितों की बहादुरी का प्रतीक बताया था.
अम्बेडकर के दौरे के बाद यह जगह दलित अस्मिता का केंद्र बन गई. हर साल पहली जनवरी को महाराष्ट्र और देश के दूसरे कोने से दलित समाज के लोग यहां जुटते हैं.
2018 में भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200वीं सालगिरह थी. इस मौके पर दलितों का बड़ा जमावड़ा हुआ. इस पर स्थानीय हिंदूवादी और मराठा अस्मितावादी संगठनों और दलितों के बीच झड़प और हिंसा शुरू हो गई. शुरुआती आरोप शिव प्रतिष्ठान के संस्थापक शम्भाजी भिड़े और समस्त हिंदू अगाड़ी के अध्यक्ष मिलिंद एकबोटे पर लगे. पुलिस ने बाद की जांच में यलगार परिषद को हिंसा के लिए जिम्मेदार बताया.
28 अगस्त, 2018 को पुणे पुलिस ने 10 जगह छापेमारी करके 5 सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया. ये पांच सामाजिक कार्यकर्ता थे, गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, वरनॉन गोंजाल्विस, अरुण फरेरा और वरवर राव. इन लोगों पर भीमा-कोरेगांव में हिंसा की साजिश करने का आरोप लगाया गया. इसके अलावा इन लोगों पर नक्सलियों के साथ साठगांठ करके हिंसा फैलाने का इल्जाम भी था.
पांचो सामाजिक कार्यकर्ता अपनी गिरफ्तारी के खिलाफ 29 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट चले गए थे. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए इन सभी को नरजबंद करने का आदेश दिया था.
क्यों मिली गौतम नवलखा को जमानत
गौतम नवलखा ने अपनी गिरफ्तारी के बाद पुणे पुलिस की ट्रांजिट रिमांड की मांग के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में अपील कर दी थी. इसके बाद वो गिरफ्तारी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले गए थे. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में गिरफ्तारी को नजरबंदी में बदल दिया था.
इधर नवलखा के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही थी. सोमवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि नवलखा की गिरफ्तारी में कानून का ठीक से पालन नहीं हुआ. ऐसे में उनकी गिरफ्तारी ही असंवैधानिक है, इस तर्क पर उन्हें आजाद कर दिया गया.
महाराष्ट्र सरकार का क्या कहना है
महाराष्ट्र सरकार ने याचिका में कहा है कि हाईकोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधान की गलत व्याख्या करते हुए नवलखा को नजरबंदी से मुक्त किया है. पुणे पुलिस में सहायक आयुक्त शिवाजी पंडितराव पवार की ओर से दायर याचिका में कहा गया, "इस मामले में दिखता है कि संबंधित आदेश पारित करते वक्त हाईकोर्ट ने धारा 167 (1) और (2) की गलत व्याख्या की.''
दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले से परेशान क्यों है पुणे पुलिस
गौतम नवलखा सुप्रीम कोर्ट से पहले अपने मामले को दिल्ली हाईकोर्ट लेकर चले गए थे. यही वो कानूनी नुक्ता है, जिसने उनकी रिहाई का रास्ता खोल दिया. पेशे से वकील सुधा भारद्वाज भी अपनी गिरफ्तारी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट से पहले चंडीगढ़ हाईकोर्ट चली गई थीं. उनके मामले की सुनवाई अभी चल रही है.
सुधा भारद्वाज दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को अपने पक्ष में तर्क की तरह इस्तेमाल करेंगी. अगर चंडीगढ़ हाईकोर्ट उनकी रिहाई के आदेश दे देता है, तो बाकी के तीन सामाजिक कार्यकर्ताओं की रिहाई के दरवाजे भी खुल सकते हैं.
पुणे पुलिस पहले ही शम्भा जी भिड़े को क्लीनचिट देकर आलोचना झेल रही है. ऐसे में अगर भीमा-कोरेगांव में हिंसा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार किए गए सामाजिक कार्यकर्ता रिमांड में जाने से पहले ही छूट जाते हैं, तो पुणे पुलिस को भारी फजीहत का सामना करना पड़ेगा.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)