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MP Election 2023: 142 सीटों पर नजर, SC-ST, OBC पर फोकस, BJP का क्या प्लान?

पीएम मोदी के बुंदेलखंड दौरे का क्या मतलब? 2018 में छिटका था दलित वोट, सत्ता से बाहर हो गई थी BJP.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार (12 अगस्त) को अपने मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के दौरे के दौरान अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ी जातीयों पर फोकस करते दिखे. सागर में पीएम ने संत शिरोमणि रविदास के मंदिर एवं स्मारक के निर्माण कार्य का भूमि पूजन किया. इसके बाद एक रैली को भी संबोधित किया, जिसमें एक बार फिर उन्होंने दोहराया कि वो तीसरी बार केंद्र की सत्ता में आ रहे हैं.

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उन्होंने कहा, "मंदिर का भूमि पूजन मैंने किया और संत रविदास के आशीर्वाद से मैं ही इसका लोकार्पण करूंगा." पीएम ने अपने पूरे भाषण में SC/ST/OBC के लिए सरकार द्वारा किये विकास कार्यों पर जोर दिया.

पीएम मोदी ने क्या कहा?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि उनकी सरकार दलितों, पिछड़ों और आदिवासी समुदाय के उत्थान के लिए लगातार काम कर रही है.

मुझे संतोष है कि हमारी सरकार आज देश में गरीब कल्याण की जितनी भी बड़ी योजनाएं चला रही है, उसका सबसे अधिक लाभ दलित, पिछड़ा और आदिवासी समाज को हो रहा है.
नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

पीएम ने आगे कहा, "दलित हों या वंचित, पिछड़े हों या आदिवासी, आज देश में पहली बार उनकी परंपराओं को वो सम्मान मिल रहा है, जिसके वे हकदार थे."

अब सवाल है कि पीएम का SC/ST/OBC पर फोकस क्यों था? और बीजेपी का क्या प्लान है?

दरअसल, पीएम नरेंद्र मोदी के SC/ST/OBC पर फोकस करने की वजह मध्य प्रदेश का सियासी समीकरण है.

चुनाव आयोग के डेटा के अनुसार, राज्य में एसटी की आबादी 21 फीसदी, जबकि एससी की जनसंख्या 16 प्रतिशत है. ST के 47 और SC के 35 सीटें आरक्षित हैं. यानी कुल विधानसभा की 230 में से 82 सीटें अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के लिए रिजर्वड हैं.

वहीं, अनरिजर्वड 146 सीटों में से 60 पर ओबीसी विधायक हैं. राज्य में ओबीसी की आबादी 50 फीसदी के करीब है.

अनुसूचित जाति (SC) एमपी में बीजेपी का कोर वोटर माना जाता रहा है. लेकिन 2018 में कांग्रेस ने इसमें बड़ी सेंधमारी की थी. कांग्रेस 15, बीजेपी 18 और दो पर बीएसपी ने जीत हासिल की थी. जबकि 2013 में कांग्रेस को तीन, बीएसपी को चार और बीजेपी को 28 सीटों पर जीत मिली थी.

2018 में अनुसूचित जनजाति (ST) की 47 में से बीजेपी 16 और कांग्रेस 30 सीट जीती थी. जबकि 2013 में बीजेपी को 31 और कांग्रेस को 15 सीट मिली थी, यानी कांग्रेस को 15 सीटों का फायदा हुआ था.

कांग्रेस ने 2018 में सामान्य सीटों पर 40 फीसदी ओबीसी को टिकट दिया था, जबकि बीजेपी ने 39 को दिया था. बीजेपी के 38, कांग्रेस के 21 और एक निर्दलीय ओबीसी विधायक हैं.

राज्य में सरकार बनने के बाद कमलनाथ ने 8 ओबीसी नेताओं को कैबिनेट में शामिल किया था, 2019 में कमलनाथ सरकार ने 14 फीसदी ओबीसी आरक्षण को बढ़कर 27 प्रतिशत कर दिया था. हालांकि, बाद में हाईकोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगा दी थी. इसके बाद से ही बीजेपी सतर्क हो गयी है.

राज्य में सत्ता परिवर्तन होने के बाद शिवराज सिंह ने भी अपने कैबिनेट में 8 ओबीसी नेताओं को जगह देकर संदेश देने की कोशिश की कि बीजेपी ही पिछड़ों की हितैषी है.

पीएम मोदी ने भी सागर की रैली और संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर भाषण देते हुए कहा, "विपक्ष ये पचा नहीं पा रहा है कि एक गरीब और पिछड़ी जाति का बेटा कैसे पीएम बन गया."

राजनीति के जानकारों का कहना है कि बीजेपी की 2018 में सत्ता से दूर रहने की एक प्रमुख वजह दलितों और आदिवासियों का पार्टी से छिटकना था, जिसमें कांग्रेस ने बड़ी सेंधमारी की थी. लेकिन पार्टी इस बार ये गलती नहीं दोहराना चाहती है.
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राजनीतिक विश्लेषक आलोक त्रिपाठी ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा, "कांग्रेस-बीजेपी दोनों की निगाह SC/ST/OBC पर है. कुछ हद तक बीएसपी दलित वोटों में सेंधमारी करती है, लेकिन ज्यादातर सीटों पर मुकाबला बीजेपी बनाम कांग्रेस का ही है. हालांकि, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी भी कुछ सीटों पर खेल बिगाड़ने की कोशिश में है. लेकिन कितना सफल होगी, ये कहना मुश्किल है."

एमपी की पानसेमल सीट से कांग्रेस विधायक चंद्रभागा किराड़े ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा, "आज गरीब, दलित, आदिवासी सभी परेशान हैं. महंगाई, बेरोजगारी अपने चरम पर है. 20 साल से मध्य प्रदेश में और पिछले 9 साल से केंद्र में बीजेपी की सरकार है, लेकिन एससी-एसटी के लिए सरकार कोई काम नहीं किया. बीजेपी ने झूठ बोलने और छलने के सीवा कुछ नहीं किया है. युवाओं को रोजगार नहीं मिला, शायद बीजेपी का यही विकास का मॉडल है."

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मध्य प्रदेश में दलितों और आदिवासियों के साथ लगातार अत्याचार हो रहे हैं. मणिपुर में महिलाओं के साथ क्या हुआ, ये किसी से छुपा नहीं है, महिलाओं के साथ रेप की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. आम जनमानस परेशान है. लेकिन बीजेपी के लोग झूठ का प्रचार करने से थक नहीं रहे हैं. हम लोग लगातार मुद्दे उठा रहे हैं. लेकिन राज्य सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर रही है. जनता को छला जा रहा है.
चंद्रभागा किराड़े, पानसेमल विधायक, कांग्रेस

मध्य प्रदेश की बैतूल सीट से बीजेपी सांसद दुर्गा दास उइके ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा, "एमपी जनजातीय बाहुल्य प्रदेश है. जनजातीय समाज के लिए केंद्र और राज्य की योजनाओं का लाभ नीचे तबके तक गया है. जनता के बीच अच्छा वातावरण है. लेकिन कांग्रेस और अन्य दल जनता में गलतफहमी पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं."

कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का कहना है कि जिस तरह से पार्टी ने कर्नाटक में जातीय जनगणना का मुद्दा उठाया और बीजेपी को झटका दिया, कुछ ऐसी ही रणनीति एमपी में दिख सकती है. कर्नाटक में कांग्रेस की जीत में पिछड़ों और दलितों की बड़ी भूमिका रही है.

कांग्रेस विधायक चंद्रभागा किराड़े ने कहा, "मध्य प्रदेश का कांग्रेस का वचन पत्र है कि अगर हमारी सरकार राज्य की सत्ता में आती है तो महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये, गैस सिलेंडर 1200 का 500 रुपये में दिया जाएगा. किसानों का कर्ज माफ होगा और बिजली बिल माफ किए जाएंगे."

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बीजेपी का क्या प्लान है?

दरअसल, बीजेपी की निगाह 230 में से 142 सीटों पर है (82 आराक्षित और 60 ओबीसी सीट) पर है. पीएम मोदी का सागर दौरा बीजेपी की बड़ी रणनीति का हिस्सा था. सागर बुंदेलखंड का सेंटर पॉइंट माना जाता है. बुंदेलखंड में कुल 26 सीटें हैं. यहां सबसे अधिक दलित मतदाता है. उज्जैन-इंदौर के अलावा सागर ही ऐसा जिला है, जहां 5 लाख से अधिक दलित वोटर्स हैं.

बुंदेलखंड से ही दलितों के साथ भेदभाव की सबसे अधिक खबरें आती हैं. ऐसे में BJP अच्छे से समझ रही है कि सत्ता में वापसी के लिए दलित वोटरों की क्या अहमियत है.

राजनीतिक जानकारों की मानें तो विंध्य क्षेत्र में बीजेपी को नुकसान होने का अंदेशा है, ऐसे में पार्टी बुंदेलखंड से उसको मैनेज करना चाहती है.

वरिष्ठ पत्रकार संजय दुबे ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा, "पीएम ने न सिर्फ एमपी में SC/ST/OBC को लुभाने की कोशिश की, बल्कि छत्तीसगढ़ (एमपी के साथ चुनाव होने हैं) के वोटर्स को भी संदेश दिया, जहां 90 में से एससी की 29 और एसटी की 10 सीटें आरक्षित हैं. जहां बीजेपी को 2018 में बुरी तहर से हार का सामना करना पड़ा था. "

संजय दुबे ने कहा, "पीएम मोदी और बीजेपी अच्छी तरह से समझ रहे हैं कि एमपी में सत्ता में लौटने के लिए जोर लगाना पड़ेगा, क्योंकि राज्य में कमलनाथ एक मजबूत चेहरा हैं. पिछली बार वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाये और इसका सहानूभूति लाभ उनको मिल सकता है. जबकि शिवराज के लिए एंटी इंकम्बेंसी, पेपर लीक और बेरोजगारी जैसे मुद्दे मुसीबत बढ़ा सकते हैं.

हालांकि, बीजेपी इसके बावजूद सत्ता में वापसी कर सकती है, क्योंकि उसका मैनेजमेंट कांग्रेस से अधिक मजबूत नजर आ रहा है. बीजेपी अपनी योजनाओं को नीचे तक बताने में जुटी है. पार्टी SC/ST/OBC वोटर्स को लुभाने के लिए तमाम कोशिश कर रही है. इसके तहत पिछले कुछ समय में तमाम घोषणाएं की गईं और जनसंपर्क कार्यक्रम किया जा रहा है.

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बीजेपी सांसद दुर्गा दास उइके ने कहा, "गांवों में बिजली, पीने का पानी, सिंचाई की व्यवस्था नहीं थी, जनजातीय समाज बहुत पिछड़ा था लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीएम शिवराज सिंह चौहान ने SC/ST के लिए बहुत काम किया है. आजादी के बाद आदिवासी समाज की किसी महिला को पहली बार राष्ट्रपति बनाया गया, जो जनजातीय समाज के लिए गर्व की बात है."

सांसद ने कहा, "लाडली बहना योजना, प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना योजना, संबल योजना का लाभ SC/ST समुदाय को मिल रहा है. किसानों को 12 हजार रुपये सालाना मिल रहा है, जिसमें 6 हजार केंद्र और 6 हजार राज्य सरकार दे रही है, इसका लाभ दलित और आदिवासियों को मिल रहा है. सड़कों का जाल गांव-गांव तक पहुंचाने का काम सरकार ने किया है."

दुर्गा दास उइके ने आगे कहा, कांग्रेस और वामपंथी लोग, SC/ST युवाओं को षड्यंत्र के तहत दिग्भ्रमित करने का प्रयास एमपी में नहीं बल्कि पूरे देश में किया है.

हमारे कार्यकर्ता दिन-रात सरकार के कामकाज को नीचे तक बताने में लगे हैं. सभी जगहों पर जनसंपर्क अभियान के तहत बाते रखी जा रही हैं. पिछली बार कांग्रेस ने दिग्भ्रमित करने का प्रयास किया था, लेकिन इसे हम कांग्रेस की जीत नहीं मानते हैं. हमारी कुछ व्यक्तिगत खामियां थीं, इसमें कुछ गलतियां टिकट वितरण में हुई थी, इस बार हमने सबको दुरूस्त करने का प्रयास किया है. हमें पूरी उम्मीद है कि एमपी में दोबारा पूर्ण बहुमत की सरकार बीजेपी की आएगी.
दुर्गा दास उइके, सांसद, बीजेपी
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बीजेपी से क्यों छिटके दलित वोटर्स?

दरअसल, ग्वालियर चंबल इलाके में 2017 में हुए जातिगत तनाव के चलते 6 दलितों की मौत हो गई थी. इस घटना के बाद से ही दलित बीजेपी से दूर हो गया था और इसका खामियाजा बीजेपी को 2018 विधानसभा चुनावों में भुगतना पड़ा था. बीजेपी को 34 में से 7 और कांग्रेस 26 सीटें जीतने में सफल हुई थी.

इन सबको देखते हुए पार्टी राज्य में अलग-अलग समाजों के नाम पर बोर्ड और आयोगों का गठन कर चुकी है. इस साल अप्रैल में मंडल स्तर पर 'सामाजिक समरसता अन्न सहभोज' कार्यक्रम की शुरूआत हुई थी, जिसमें बीजेपी महिला मोर्चा की सदस्य SC वर्ग की महिलाओं के साथ भोज कर उन्हें राज्य सरकार की योजनाओं के बारे में बताया था.

इसके अलावा बीजेपी की राज्य सरकार ने सतना जिले के मैहर शहर में 3.5 करोड़ रुपये की लागत से संत रविदास मंदिर का निर्माण कराया था.

संजय दुबे कहते हैं, "संत रविदास के दलित अनुयायी मध्य प्रदेश में एससी आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा हैं. इसलिए बीजेपी और पीएम का फोकस संत रविदास पर है."

एक वरिष्ठ पत्रकार ने नाम ने छपने की शर्त पर कहा, "एमपी-छत्तीसगढ़ में दलितों और आदिवासियों के साथ हुई हाल-फिलहाल की घटनाओं ने बीजेपी को कमजोर किया है. इसलिए पार्टी उस वोटबैंक को वापस लाने के लिए पीएम मोदी को आगे किया है. पीएम मोदी और शिवराज दोनों ओबीसी समुदाय से आते हैं. ऐसे में पार्टी को लगता है कि उसे पीएम की लोकप्रियता का फायदा चुनाव में मिल सकता है."

हालांकि, बीजेपी और कांग्रेस दोनों अपनी रणनीति में कितने कामयाब होंगे, वो चुनाव के नतीजे बताएंगे, लेकिन एक बात तय है कि मध्य प्रदेश की सियासी बिसात में SC/ST/OBC वोटर्स पूरे चुनाव में छाए रहेंगे.

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