ADVERTISEMENTREMOVE AD

कभी राशन कभी कंबल: मणिपुर से आती मदद की गुहारों के लिए उम्मीद बना एक महिला समूह

Manipur violence: दिल्ली और मणिपुर में 30 महिलाओं का एक समूह हिंसा से जूझते राज्य में मानवीय कार्य कर रहा है.

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

दिल्ली (Delhi) के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (Jawaharlal Nehru University) में मई के पहले हफ्ते के दौरान पीएचडी स्कॉलर एना (27) को उनके गृह राज्य मणिपुर (Manipur) के दो अलग-अलग राहत शिविरों से एक SOS कॉल मिली. हेंगबंग और सेनापति में वह जिन कुछ परिवारों को जानती थी, उन्हें गद्दे और कंबल की जरूरत थी.

उसके पहले तक, एना अपने राज्य में हो रही हिंसा के सामने असहाय महसूस कर रही थीं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
एना ने द क्विंट के साथ बातचीत में बताया कि इंफाल में पली-बढ़ी नागा होने के नाते, उन्हें खुद 2001 में पलायन करना पड़ा था. लेकिन इसके बावजूद दो महीने पहले मणिपुर में शुरू हुई हिंसा उनके लिए अभूतपूर्व है.
हमने मणिपुर में बहुत अधिक विनाश होते देखा है. वहां हिंसा असामान्य नहीं थी लेकिन इस बार बेहद खतरनाक है.

इसलिए जब एना को मदद के लिए कॉल आए, तो वह जानती थी कि उन्हें उनकी मदद करनी होगी. लेकिन आखिर कैसे? वह क्या कर सकती थीं?

यंग ट्राइबल वुमेन नेटवर्क: व्हाट्सएप ग्रुप बना राहत शिविरों के लिए काम करने वाला मानवतावादी ग्रुप

सबसे पहले एना ने एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाने का फैसला किया. इस तरह इस साल मई में यंग ट्राइबल वुमेन नेटवर्क की शुरुआत की गई.

उन्होंने दिल्ली में रहने वाले नॉर्थ ईस्ट के लोगों को ग्रुप में एड किया. अन्ना ने उन्हें SOS कॉल के बारे में बताया और वे सभी काम पर लग गए.

दिन के आखिरी तक, उन्होंने नागालैंड में स्वयंसेवकों के जरिए गद्दे खरीद लिए और उन्हें हेंगबंग के राहत शिविरों में ले जाने के लिए एक ऑटो बुक किया.

पहली SOS कॉल के 48 घंटों के अंदर गद्दे और कंबल उन लोगों तक पहुंच गए, जिन्हें उनकी जरूरत थी.

तब से न तो एना रुकीं हैं और न ही ग्रुप के लोग.

Young Tribal Women’s Network में अब करीब 30 सदस्य हैं, जिनमें से कुछ दिल्ली में हैं, कुछ मणिपुर में हैं. ये आपस में को-ऑर्डिनटे करके राहत शिविरों के साथ एक्टिव रूप से काम कर रहे हैं. वे सुनिश्चित कर रहे हैं कि जरूरी आपूर्ति उन लोगों तक पहुंचे, जो मणिपुर में हिंसा की वजह से विस्थापित हो गए हैं.

ग्रुप क्या कर रहा है?

एना का दावा है कि ग्रुप ने पिछले दो महीनों में अब तक 8 लाख रुपये से ज्यादा जुटाए हैं, जिसका उपयोग यह सुनिश्चित करने में किया गया है कि पानी की बोतलें, बच्चों का खाना/बेबी फूड, सैनिटरी पैड, राशन, चावल, दालें, दवाएं आदि जैसी दैनिक आवश्यक वस्तुएं उन लोगों तक पहुंचें, जिन्हें सरकारी या सेना के शिविरों में राहत लेनी पड़ी है.

लेकिन वे ये सब कैसे कर रहे हैं? ग्रुप ने तीन तीन रास्ते अपना हैं.

  • ऑनलाइन पैसे इकट्ठा करके

  • ऑनलाइन नीलामी करके

  • डोनेशन के जरिए

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अब तक, ग्रुप ने दो डोनेशन अभियान चलाए- एक दिल्ली में और दूसरा नागालैंड के दीमापुर में. एना का दावा है कि पहले के जरिए वे 700 किलोग्राम से ज्यादा सामान इकट्ठा करने में कामयाब हुए.

नागालैंड अभियान के संचालन में मणिपुर बैपटिस्ट कन्वेंशन और दीमापुर में रेड क्रॉस सोसाइटी की मदद ली गयी, जिन्होंने यह सुनिश्चित किया कि डोनेशन की गई वस्तुएं सेनापति जिले के राहत शिविरों तक पहुंचें.

यह ग्रुप छोटे नॉर्थ ईस्टर्न बिजनेस मालिकों और युवा आदिवासी महिलाओं द्वारा वॉलंटियर करके बनाए गए उत्पादों की भी नीलामी कर रहा है. ये नीलामी उनके इंस्टाग्राम पेज पर होती है.

एना ने द क्विंट को बताया कि हम नागालैंड में एक म्यूजिक फेस्टिवल के साथ भी कोलैबोरेट रहे हैं. वे एक डोनेशन अभियान चला रहे हैं और उनके सारे पैसे हमारे राहत कोष में जा रहे हैं.

इतना ही नहीं, दिल्ली स्थित पीएचडी स्कॉलर और ग्रुप सदस्य किम (Kim) का कहना है कि वे विस्थापित छात्रों को स्कूलों में एडमिशन दिलाने में भी मदद कर रहे हैं.

वह आगे डिटेल में बताती हैं....

बहुत सारे विस्थापित लोग दिल्ली आ रहे हैं, इसलिए हम छात्रों तक पहुंच रहे हैं और उनसे पूछ रहे हैं कि क्या वे दिल्ली सरकार के स्कूलों में दाखिला लेना चाहेंगे. दिल्ली सरकार के लोग इसमें हमारी मदद कर रहे हैं. हम उन्हें उन छात्रों के नामों की लिस्ट भेजते हैं, जो एडमिशन लेना चाहते हैं और वे इसे आगे बढ़ाते हैं.

लेकिन, वह आगे कहती हैं कि हम को-ऑर्डिनेट जरूर करते हैं लेकिन राहत कार्य हमारे इलाके के स्वयंसेवकों की वजह से ही संभव हो पाया है, जो वक्त की नजाकत को समझते हैं और कभी-कभी खुद को जोखिम में भी डालते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

मणिपुर में राहत शिविरों तक पहुंचना: संघर्ष के दौरान मानवतावादी कार्य कितना मुश्किल है

एना भी किम की बात से सहमत हैं. जबकि चीजें इकट्ठा करने का बड़ा हिस्सा सामूहिक रूप से दिल्ली के सदस्यों के जरिए होता है, जमीन पर चीजों को लागू करना कुछ ऐसा है जिसमें स्वयंसेवकों को काफी कठिनाइयां होती हैं.

मणिपुर के इंफाल में स्थित ग्रुप के एक सदस्य, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर द क्विंट बात करते हुए कहते हैं...

राहत शिविर सेना के शिविर हैं. शुरुआत में हमें उनमें एंट्री की इजाजत नहीं थी. हम भी डरे हुए थे. हमारे परिवारों ने हमसे कहा था कि ऐसे वक्त में बाहर न निकलें, लेकिन हमें ऐसा करना पड़ा.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

ग्रुप में अपनी भूमिका के बारे में थोड़ा विस्तार से बताते हुए, वह कहती हैं कि दिल्ली के सदस्य वापस मणिपुर पैसे भेजते रहते हैं. फिर उनका यह काम है कि वे खोजें.

  • ह्यूमन ATMs- मणिपुर में वैसे लोग जिनके पास कैश है, क्योंकि एटीएम हर किसी की पहुंच में नहीं होते हैं.

  • जो लोग बैंक में काम करते हैं और कैश से मदद कर सकते हैं.

  • वैसे लोग जो इस वादे पर जरूरी सामान उधार दे सकते हैं कि कुछ दिन में पेमेंट कर दिया जाएगा.

अब जब वह पिछले दो महीनों से राहत कार्य कर रही हैं, तो वह जानती हैं कि किससे संपर्क करना है. ज्यादा म्हणत इसके बाद के चरणों में लगती है. वह द क्विंट को बताती हैं,

एक बार जब हमें पैसे मिल जाते हैं, तो हम थोक दुकान ढूंढते हैं और राशन खरीदते हैं. हम ऑटो बुक करते हैं. हम ऐसे लोगों को इकट्ठा करते हैं, जो राहत शिविरों में सभी सामान बांटने में हमारी मदद कर सकते हैं.

और उन्हें कैसे पता चलता है कि कहां किस चीज की जरूरत है? खैर, एक जरिया है कि, ज्यादातर स्वयंसेवक उन राहत शिविरों में रहने वाले किसी न किसी को जानते हैं.

इसके अलावा यह ग्रुप भारतीय सेनापति रेड क्रॉस सोसाइटी और मणिपुर बैपटिस्ट कन्वेंशन के साथ भी को-ऑर्डिनेट कर रहा है, जिसके जरिए उन्हें इमरजेंसी रिक्वेस्ट मिलते हैं:

ADVERTISEMENTREMOVE AD

"500 से ज्यादा लोग राहत शिविर में आए हैं, हमें उनके लिए जरूरी चीजों की जरूरत है."

“2,000 से ज्यादा लोग राहत शिविर में आए हैं. हमें चावल और पीने का पानी चाहिए.”

हालांकि वे यह तय करने के लिए पिछले दो महीनों से बहुत कोशिश कर रहे हैं कि ये चीजें प्रभावित लोगों तक पहुंचें, अब वे सभी उस दिन का इंतजार कर रहे हैं, जब मदद की गुहार लगाती ये कॉलें बंद होंगी और राज्य में शांति वापस आएगी.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×