बुधवार, 11 मई को दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi HighCourt) भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 के अपवाद को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला जारी करेगा. IPC की धारा 375 एक व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी के साथ जबरन सेक्स को रेप के अपराध से छूट देता है. केंद्र सरकार को जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस सी हरिशंकर की बेंच ने 21 फरवरी को अपना लिखित बयान देने के लिए और वक्त देने से इनकार कर दिया था. यह याचिकाओं पर सुनवाई की आखिरी तारीख भी थी.
बेंच ने कहा था
हम इसे बंद कर रहे हैं, फैसला सुरक्षित है. 2 मार्च को निर्देशों की लिस्ट आएगी, इस बीच पक्षकारों के वकील अपनी लिखित दलीलें और संकलन दाखिल कर सकते हैं.
क्या है पूरा मामला?
भारतीय दंड संहिता की धारा 375 रेप के अपराध को परिभाषित करती है जबकि इस सेक्शन में पुरानी मानसिकताओं को हटाने, सहमति के महत्व पर जोर देने और सभी प्रासंगिक सेक्सुअल एक्ट्स को कवर करने के लिए संशोधन किया गया है, फिर भी यह एक पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ गैर-सहमति वाले यौन संबंध के लिए एक अपवाद को बरकरार रखता है.
सीनियर एडवोकेट रेबेका जॉन ने न्याय मित्र (कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ) के रूप में उन्होंने बताया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में बलात्कार के अपराध को क्या माना जाता है.
उन्होंने बताया कि महिला की सहमति 375 में मौलिक है और इसलिए हम इसे दूर नहीं कर सकते.
इस 'वैवाहिक बलात्कार अपवाद' को दिल्ली हाई कोर्ट में इस आधार पर चुनौती दी गई है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून द्वारा समान व्यवहार का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) सहित विवाहित महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)