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मौलाना आजाद: नेता जिसने जिन्ना को भी ‘एक भारत’ के लिए मना लिया था

मौलाना आजाद ही वो नेता थे जिन्होंने कैबिनेट मिशन पर सहमति बनवाई थी

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मैं भारत के बनने का एक अहम हिस्सा रहा हूं. मैं अपने इस दावे को कभी समर्पित नहीं कर सकता.

विभाजन का विरोध करते हुए यह मौलाना आजाद के प्रसिद्ध शब्द थे. उनके जन्मदिन पर हम देश के लिए उनके योगदान को याद कर रहे हैं.

1946 में कांग्रेस के नेता के तौर पर उन्होंने कैबिनेट मिशन के प्रस्ताव को आगे बढ़ाया. इस प्रस्ताव में भारत में संघीय व्यवस्था की बात की गई थी, जिसमें राज्यों को स्वायत्ता दी जानी थी. प्रस्ताव का काफी विरोध हुआ, लेकिन आखिर में यह पास हो गया. यहां तक कि जिन्ना भी इस पर राजी हो गए.

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इस प्रस्ताव को बड़ी कामयाबी माना गया. क्योंकि इसके पहले जिन्ना और आजाद के कभी अच्छे रिश्ते नहीं रहे थे. दोनों का मतभेद विभाजन के मुद्दे पर और गहरा गया था.

जहां, जिन्ना दो देशों को बनाने के लिए उतावले थे, वहीं मौलाना आजाद हिंदुस्तान के अंदर हिंदू-मुस्लिम एकता के पक्ष में थे. लेकिन दोनों के खराब रिश्तों के बावजूद भी आजाद, जिन्ना को एक भारत के लिए राजी करने में कामयाब हो गए.

पर इसके बाद बदली परिस्थितियों में जिन्ना फिर पाकिस्तान की मांग पर अड़ गए. उस दौर में मौलाना आजाद ने जिन्ना को ‘दो देशों की विचारधारा’ के खतरे बताते हुए टेलीग्राम लिखा. लेकिन जवाब में जिन्ना ने आजाद का अपमान करते हुए उन्हें केवल नाम भर का कांग्रेस अध्यक्ष बताया.

जिन्ना से उम्मीद खत्म होने के बाद, आजाद ने कांग्रेस नेताओं को समाधान खोजने तक रोकने की कोशिश की. लेकिन वो सफल नहीं हुए.

यहां तक कि सरदार पटेल ने भी उनका समर्थन नहीं किया. जबकि पहले उन्होंने आजाद के प्रस्ताव का समर्थन किया था. अपनी बॉयोग्राफी में आजाद ने लिखा कि नेहरू ने भी मुस्लिमों को नाराज करने का काम किया.

आजाद के मुताबिक, नेहरू जब 1946 में कांग्रेस प्रेसिडेंट बने, तो उन्होंने कहा कि कैबिनेट मिशन के प्रावधानों को बदला जा सकता है. इससे जिन्ना नाराज हो गए और वापस पाकिस्तान की मांग पर अड़ गए.

मौलाना आजाद ने न केवल एक नेता, बल्कि एक मुस्लिम के तौर पर भी विभाजन का विरोध किया. उनके मुताबिक इस तरह की स्टेट पॉलिसी से और दिक्कतें पैदा होंगी.

उनके शब्द आज बिलकुल सही साबित हो रहे हैं. आज भी दोनों देशों के संबंध तनाव भरे हैं.

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