दिल्ली मेयर और डिप्टी मेयर के साथ ही 6 स्टेंडिंग कमेटी के सदस्यों का 6 जनवरी को चुनाव होना था. लेकिन चुनाव प्रक्रिया, AAP और बीजेपी पार्षदों के हंगामे की भेंट चढ़ गई. फिलहाल, मेयर, डिप्टी मेयर और स्टैंडिंग कमेटी के सदस्यों का चुनाव टाल दिया गया है. लेकिन, सवाल ये है कि बहुमत में कम होने के बावजूद बीजेपी ने मेयर और डिप्टी मेयर पद के लिए अपना प्रत्याशी क्यों खड़ा किया? उप राज्यपाल की ओर से जिन 10 मनोनीत पार्षदों के पहले शपथ लेने पर हंगामा हुआ उनका चुनाव में क्या रोल है?
क्यों स्थगित हुई नगर निगम की कार्यवाही?
दरअसल, 6 जनवरी को नगर निगम की कार्यवाही में मेयर, डिप्टी मेयर का चुनाव होना था. इससे पहले पीठासीन अधिकारी को चुना गया. इसके बाद पीठासीन अधिकारी ने सबसे पहले मनोनीत पार्षदों को शपथ लेने के लिए बुलाया. इसको लेकर आम आदमी पार्टी के पार्षदों ने हंगामा शुरू कर दिया. मनोनीत पार्षदों को शपथ दिलाने को लेकर AAP की ओर से आरोप लगाया गया कि बीजेपी 10 मनोनीत पार्षदों (एल्डरमैन) को वोटिंग का अधिकार देने की साजिश रच रही है.
AAP को क्यों लग रहा राजनीतिक समीकरण बिगड़ने का डर?
दिल्ली के उपराज्यपाल की ओर से की गई एल्डरमैन (मनोनीत सदस्य) की नियुक्ति को लेकर आम आदमी पार्टी की मुख्य चिंता MCD में समीकरण बिगड़ने की है. एलजी ने जिन 10 लोगों को MCD में पार्षद मनोनीत किया है, उनका सीधा ताल्लुक बीजेपी से होने की चर्चा है. बीजेपी इस बार विपक्ष में है. ऐसे में इन मनोनीत पार्षदों की मौजूदगी से एमसीडी में बीजेपी को राजनीतिक बल मिल सकता है.
हालांकि, मनोनीत पार्षद मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव में वोट नहीं डाल सकते, लेकिन जोन स्टेंडिंग कमेटी के सदस्यों के चुनाव में वोट डाल सकते हैं. इससे एमसीडी में नीतिगत फैसले लेने वाली स्टैंडिंग कमेटी में AAP के समीकरण गड़बड़ा सकते हैं. जोनल इलेक्शन में भी इसका असर पड़ेगा. इसी वजह से AAP एल्डरमैन की नियुक्ति का कड़ा विरोध कर रही है.
दिल्ली मेयर और डिप्टी मेयर के लिए कौन कौन वोट करेगा?
दिल्ली के मेयर और डिप्टी मेयर के लिए चुने गए 250 पार्षद, दिल्ली के 14 विधायक और 7 लोकसभा के जबकि 3 राज्यसभा के सांसद. यानी कुल मिलाकर 274 वोट पड़ेंगे. बहुमत के लिए 138 वोटों की जरूरत होगी.
इसमें ध्यान रखने वाली बात ये है कि एलजी की ओर से मनोनीत 10 एल्डरमैन मेयर और डिप्टी मेयर के लिए चुनाव नहीं कर सकते. वहीं, जिन 14 विधायकों को वोट देने के लिए चुना गया है, उसमें 13 विधायक AAP से हैं और एक विधायक बीजेपी से है. ये हर साल रोटेशन के रूप में होगा. यानी इस साल जिन विधायकों ने मेयर-डिप्टी मेयर के लिए चुनाव किया है, वो अगली बार चुनाव नहीं करेंगे.
किस पार्टी के पास कितने वोट?
फिलहाल, AAP के पास 134 सीटें हैं. बीजपी के पास 104 और कांग्रेस के पास 9 सीट, जबकि 3 निर्दलीयों ने जीत हासिल की है.
मेयर-डिप्टी मेयर बनाने के लिए AAP के पास कितना वोट?
AAP के पास 134 पार्षद + 13 विधायक + 3 राज्यसभा सांसद= 150 वोट
बहुमत का आंंकड़= 138 वोट
यानी आप बहुमत के आंकड़े से भी 12 वोट आगे है. ऐसे में अगर सबकुछ ठीक रहा तो दिल्ली में मेयर और डिप्टी मेयर का पद AAP के खाते में जाएगा. लेकिन, इसमें एक पेंच है. क्या पेंच है वो आगे जानेंगे.
मेयर-डिप्टी मेयर बनाने के लिए BJP के पास कितना वोट?
BJP के पास 104 पार्षद + एक विधायक + 7 लोकसभा के सांसद= 112 वोट
बहुमत का आंकड़ा= 138 वोट
यानी बीजेपी मेयर और डिप्टी मेयर बनाने के बहुमत के आंकड़े (138) से 26 वोट दूर है.
मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव में पेंच क्या है?
दरअसल, दिल्ली के डिप्टी मेयर और मेयर के चुनाव में दलबदल का कानून लागू नहीं होता है, जो विधानसभा और लोकसभा सदस्यों के साथ होता है. ऐसे में किसी भी पार्टी का पार्षद अपने विवेक के मुताबिक किसी भी पार्टी के उम्मीदवार को वोट दे सकता है. ये गोपनीय तरीके से होता है.
मान लीजिए कि अगर AAP का कोई पार्षद BJP को वोट दे देता है और इस बात की जानकारी पार्टी को हो जाती है तो पार्टी उसे सिर्फ प्राथमिक सदस्यता से निकाल सकती है, लेकिन उसकी पार्षद पद की सदस्यता को रद्द नहीं करवा सकती है.
स्टेंडिंग कमेटी सदस्यों में क्या है समीकरण?
6 जनवरी को ही स्टेंडिंग कमेटी के सदस्यों का चुनाव होना था. लेकिन, हंगामे की भेंट चढ़ी कार्यवाही से चुनाव टल गया. स्टेंडिंग कमेटी के सदस्यों के चुनाव में BJP-AAP में कड़ा मुकाबला दिख रहा है. 6 सदस्यों के लिए 7 लोगों ने नामांकन दाखिल किया है. AAP की तरफ से 4 और BJP की तरफ से 3 सदस्यों ने नामांकन दाखिल किया है.
इसमें ध्यान रखने वाली बात ये है कि इसमें नामित 14 विधायक और 10 सांसद चुनाव नहीं करेंगे. यानी इसमें सिर्फ 250 पार्षद ही वोट डालेंगे. इस हिसाब से AAP के पास 3 सदस्य कन्फर्म हैं और BJP के पास 2 सदस्य कन्फर्म हैं. छठे सदस्य के लिए दोनों पार्टियों के बीच कांटे की टक्कर है. लेकिन, यहां भी एक पेंच हैं. क्योंकि, इन स्टेंडिंग कमेटियों के लिए आम चुनाव की तरह चुनाव नहीं होगा.
आम चुनाव से कैसे भिन्न है स्टेंडिंग कमेटी का चुनाव?
दरअसल, MCD के स्टेंडिंग कमेटी के सदस्यों के लिए प्रिफेंसियल तरीके से चुनाव होगा. अगर किसी उम्मीदवार को फर्स्ट प्रिफरेंस वोट हासिल करके ही जीत चाहिए तो उसे 250 के सातवें हिस्से से एक ज्यादा पहला प्रिफरेंस हासिल करना होगा, जो कि 37 वोट बैठता है. इस लिहाज से आम आदमी पार्टी को 4 सीट जीतने के लिए 148 फर्स्ट प्रिफरेंस वोट चाहिए जबकि उसके पास महज 134 पार्षद हैं. इसी तरीके से भारतीय जनता पार्टी को 3 सीटें जीतने के लिए 111 पहला प्रिफरेंस चाहिए होगा जबकि उसके पास महज 105 ही पार्षद हैं.
ऐसे में कांग्रेस के 9 और 2 निर्दलीय पार्षद किसे वोट करेंगे या फिर वो वोटिंग के दौरान गैरहाजिर रहेंगे इस पर सारा खेल होगा. यानी की एक पार्षद अपनी प्राथमिकता के आधार पर कई सदस्यों को चुन सकता है. पहले प्रिफरेंस में अगर किसी उम्मीदवार को जीत हासिल नहीं होती है, तो उसके दूसरे प्रिफरेंस वोट गिने जाएंगे और जो भी उम्मीदवार 37 का आंकड़ा पहले पा लेगा वो जीत जाएगा.
बता दें कि 6 जनवरी की पहली बैठक से कांग्रेस के पार्षद गैरहाजिर रहे. इसी पर आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस बीजेपी का साथ दे रही है.
क्या होता है प्रिफेंसियल चुनाव?
इस चुनाव में कुल कितने वोट हैं और कुल कितनी सीटों पर चुनाव होना है. ये अहमियत रखता है. जितनी सीटों पर चुनाव होता है, उसमें 1 जोड़कर कुल वोटों से भाग देते हैं. फिर जितना परिणाम आता है उसमें 1 जोड़ देते हैं. ऐसे में आया परिणाम फर्स्ट प्रिफेंस का वोट माना जाता है.
जैसे:
MCD में कुल सीटेंः 250
6 सीटों पर चुनाव
250/6+1= 35.8 यानी 36
अब इस 36 में एक जोड़ देंगे
36+1= 37 यही फर्स्ट प्रिफेंस का वोट होगा.
यानि यहां दो संभावनाएं बनती हैं, पहला ये कि आम आदमी पार्टी के 4 सदस्य और बीजेपी के 2 सदस्य स्थाई समिति में जाएं या फिर दोनों पार्टियों के तीन-तीन सदस्य चुन कर आएंगे.
इस 6 स्टेंडिग कमेटियों के अलावा 12 और स्टेंडिंग कमेटी के सदस्य चुने जाएंगे, जो जोन आधारित होंगे. इसी में सबसे बड़ा पेंच हैं. जहां AAP का नुकसान हो सकता है.
क्यों महत्वपूर्ण है जोन आधारित 12 स्टेंडिंग कमेटियों का चुनाव
दिल्ली नगर निगम में 12 जोन हैं, जिनमें संख्याबल के हिसाब से देखें तो 8 पर आम आदमी पार्टी का कब्जा होगा तो 4 पर बीजेपी का. इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि दिल्ली के उपराज्यपाल ने जिन 10 पार्षदों (एल्डरमैन) को मनोनीत किया है वो इस स्टेंडिंग कमेटी के लिए वोट देंगे. ऐसा भी जरुरी नहीं कि वो 10 नामित पार्षद हर जोन में हों, बल्कि उनका मनोनयन एक या कुछ खास जोन में भी हो सकता है. ऐसे में एल्डरमैन जिस भी जोन में जाएंगे वहां का समीकरण बदल जाएगा. इसलिए अगर दो या तीन जोन में भी एल्डरमैन बहुमत पर असर डालें तो सारा गेम पलट सकता है.
क्यों महत्वपूर्ण हैं कमेटियां?
दरअसल, स्टेंडिंग कमेटी MCD की सबसे पावरफुल कमेटी होती है, जिसके पास ज्यादातर मामलों में सदन से अधिक अधिकार होते हैं. इसलिए 18 सदस्यों वाली स्टेंडिंग कमेटी में जो चेयरमैन बनेगा उसकी हैसियत कामकाज के लिहाज से मेयर से अधिक होगी. वो इसलिए क्योंकि MCD के तमाम वित्तीय और प्रशासनिक फैसले पहले स्थाई समिति में ही लिए जाते हैं, जिसपर सदन मुहर लगाता है, जो MCD की सर्वोच्च संस्था है.
मेयर नगर निगम के सदन की अध्यक्षता करता है, जिसकी बैठक महीने में एक बार ही होती है. जबकि, स्टैंडिंग कमेटी की बैठक हर हफ्ते होती है. सदन से चुने गए 6 सदस्यों के अलावा स्टैंडिंग कमेटी के लिए जो 12 और सदस्य चुने जाएंगे वो जोन से आएंगे. दिल्ली नगर निगम 12 जोन में विभाजित है और हर जोन से एक-एक सदस्य स्टैंडिंग कमेटी में आता है. ऐसे में अगर मेयर और डिप्टी मेयर पर AAP कब्जा हो जाता है और स्टेंडिंग कमेटियों में मात खा जाती है तो फिर MCD का कामकाज चलाना मुश्किल हो सकता है. AAP अपने एजेंडी को अच्छे तरीके से लागू करने में सफल नहीं होगी.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)