आम आदमी पार्टी (AAP) ने दिल्ली नगर निगम चुनाव (MCD Election) में बंपर जीत के बाद हाल में मेयर और डिप्टी मेयर पद के लिए क्रमश: शेली ओबेरॉय और आले मोहम्मद इकबाल की उम्मीदवारी पर मुहर लगाई है.
इसमें महज 29 साल के आले मोहम्मद इकबाल का नाम सबसे ज्यादा चौंकाने वाला है, जिन्होंने चांदनी महल से बीजेपी प्रत्याशी को करीब 17 हजार वोटों से मात दी थी. माना जा रहा है कि हाल के दिनों में अल्पसंख्यक राजनीति से कुछ दूरी बनाने वाली आम आदमी पार्टी ने अपने खिसकते मुस्लिम आधार को रोकने के लिए यह कदम उठाया है. लेकिन इस पर चर्चा करने से पहले जान लेते हैं कि शैली ओबेरॉय और मोहम्मद इकबाल कौन हैं.
शैली ओबेरॉय- पहली बार पार्षद बनीं, अब मेयर उम्मीदवार
शैली ओबेरॉय ने पहली बार नगर निगम का चुनाव लड़ा है, जिसमें उन्होंने बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता के क्षेत्र से बीजेपी प्रत्याशी दीपाली कुमारी को 269 मतों के बेहद कम अंतर से मात दी है. अब तक इस इलाके में बीजेपी का दबदबा था.
शैली ओबेरॉय का जन्म और परवरिश दिल्ली में ही हुई है, उन्होंने 2013 में आम आदमी पार्टी ज्वाइन की थी. वे 2020 तक पार्टी की प्रदेश महिला मोर्चा की उपाध्यक्ष थीं. उन्होंने इग्नू के स्कूल ऑफ मैनेजमेंट से पीएचडी की है और वे इंडियन कॉमर्स एसोसिएशन की आजीवन सदस्या भी हैं. उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी में विजिटिंग फैकल्टी के तौर पर अपनी सेवाएं भी दी हैं, इसके अलावा वे इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी, इग्नू और एनएमआईएमएस में भी काम कर चुकी हैं.
आले इकबाल मोहम्मद- तीसरी बार पार्षद, अब डिप्टी मेयर उम्मीदवार
एमसीडी में मेयर और डिप्टी मेयर के लिए 6 जनवरी, 2022 को मतदान किया जाएगा. आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार आले मोहम्मद इकबाल वार्ड क्रमांक 76 चांदनी महल से पार्षद बने हैं, वे आप विधायक शोएब इकबाल के बेटे हैं. बता दें शोएब इकबाल 6 बार विधायक रह चुके हैं, वे दिल्ली विधानसभा के उपाध्यक्ष भी रहे हैं. आप से पहले वे कांग्रेस में थे.
वहीं उनके बेटे आले मोहम्मद 2012 से लगातार पार्षद बनते आ रहे हैं, यह उनका तीसरा कार्यकाल है. उनकी 17 हजार वोटों की जीत, एमसीडी में सबसे बड़ी जीत है.
आम आदमी पार्टी पर हाल में लगे हैं मुस्लिम हितों के विरोध में काम करने के आरोप
चाहे पिछले विधानसभा चुनाव में 67 सीटें जीतने की बात हो या उससे पहले के दूसरे चुनाव, मुस्लिम बहुल इलाकों में आम आदमी पार्टी को बड़ी तादाद में मत मिलता रहा है. लेकिन अपनी राष्ट्रीय महत्वकांक्षाओं और हाल में बीजेपी के नैरेटिव को काउंटर करने के लिए आम आदमी पार्टी पर मुस्लिम हितों की उपेक्षा, यहां तक कि कई बार उनके खिलाफ काम करने के तक आरोप लगते रहे हैं. जैसे-
आम आदमी पार्टी के विधायक नरेश बाल्यान ने पत्रकार रिफत जावेद को जिहादी, तालिबानी तक करार दे दिया था, दरअसल रिफत जावेद ने भारतीय सेना की इफ्तार पार्टी को आयोजित करने वाले ट्वीट को डिलीट करने पर आलोचना की थी.
इसी तरह दिल्ली दंगों के लिए पार्टी नेता आतिशी मार्लेना और मनीष सिसोदिया ने रोहिंग्या मुस्लिमों और बांग्लादेशी मुस्लिमों को जिम्मेदार बताया था. आरोप लगाए गए कि इस्लामोफोबिया के राजनीतिक दोहन के लिए पार्टी ने ऐसा स्टैंड लिया.
दंगो के ठीक पहले शाहीन बाग के लंबे आंदोलन में भी आम आदमी पार्टी ने विशेष सक्रियता नहीं दिखाई थी, ना ही अरविंद केजरीवाल वहां पहुंचे थे. इसी तरह आम आदमी पार्टी पर सांप्रदायिक राजनीति पर चुप रहने के आरोप भी जब-तब लगते रहे हैं. फिर कई तरीकों से पार्टी बीजेपी की बहुसंख्यक राजनीति की कॉपी करती हुई भी नजर आई.
एमसीडी इलेक्शन- मुस्लिम वोट बैंक खिसका
हाल के एमसीडी चुनावों में भले ही आम आदमी पार्टी को एकतरफा जीत मिली हो, लेकिन 2020 के दंगा ग्रस्त इलाकों में मुस्लिम वोट कांग्रेस की तरफ खिसक गया. किसी भी हाल में यह जन समर्थन पार्टी के लिए विधानसभा चुनावों की तरह नहीं था. 9 सीटों पर सिमटने वाली कांग्रेस पूर्वी दिल्ली में बड़ी संख्या में मत बटोरने में कामयाब रही. हालांकि मध्य दिल्ली की कुछ मुस्लिम बहुल सीटों पर पार्टी, शोएब इकबाल जैसे मजबूत मुस्लिम नेताओं की बदौलत बड़ी जीत दर्ज करने में कामयाब रही.
मुस्लिमों तक दोबारा आउटरीच की कोशिश?
अब आले मोहम्मद इकबाल को डिप्टी मेयर का प्रत्याशी घोषित करना (जहां उनकी जीत बहुत हद तक पक्की है) पार्टी अपने खिसक रहे मुस्लिम आधार को समेटने की कवायद नजर आती है. हालांकि आले मोहम्मद ने इंडियन एक्सप्रेस अखबार के साथ बातचीत में इससे इंकार किया है. उन्होंने कहा कि
अरविंद केजरीवाल मुस्लिम कार्ड नहीं खेलते. 1977 से दिल्ली नगर निगम में किसी मुस्लिम को यह पद नहीं मिला है. मैं लगातार पार्षद बनता आ रहा हूं. मुझ पर उन्होंने भरोसा किया है.
लेकिन एमसीडी के वोटिंग पैटर्न को देखते हुए इतना तो साफ हो रहा है कि जरूरी मुद्दों पर समर्थन ना मिलने के चलते मुस्लिम वोट वापस कांग्रेस की तरफ खिसक रहा है. ऐसे में अगले लोकसभा चुनाव में मुस्लिम उस पार्टी को समर्थन कर सकते हैं, जो बीजेपी को हराने की तुलना में बेहतर स्थिति में हो, कुलमिलाकर बहुत संभावना है कि अगर कोर्स करेक्शन नहीं हुआ, तो यह वोट कांग्रेस के पाले में जा सकता है.
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