एक महिला पत्रकार ने 10 दिसंबर को दिल्ली के एक कोर्ट में आरोप लगाया कि पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर ने 1997 में उस समय उनका कथित रूप से यौन उत्पीड़न किया, जब वह एक अखबार में काम कर रही थीं, जिसके एडिटर अकबर थे. महिला पत्रकार गजाला वहाब ने अकबर के पत्रकार प्रिया रमानी के खिलाफ दायर की गई आपराधिक मानहानि शिकायत में रमानी के समर्थन में एक गवाह के रूप में अदालत के सामने अपना बयान दर्ज कराया.
भारत में #MeToo कैंपेन के दौरान अकबर का नाम आने और सोशल मीडिया पर इसकी चर्चा बढ़ने के बाद उन्होंने पिछले साल 17 अक्टूबर को केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था. इस सिलसिले में अकबर ने रमानी के खिलाफ एक निजी आपराधिक मानहानि की शिकायत दर्ज कराई थी. रमानी ने पिछले साल आरोप लगाया था कि अकबर ने 20 साल पहले उनका सेक्सुअल हैरेसमेंट किया था. उन्होंने अंग्रेजी अखबार ‘एशियन एज’ में जनवरी से अक्टूबर 1994 तक काम किया.
रमानी ने कोर्ट से कहा कि महिला के बयान से अकबर का ये दावा गलत साबित हो गया है कि उनकी 'प्रतिष्ठा बेदाग' रही है. वहाब ने अपने बयान में कहा-
“मेरी डेस्क अकबर के ऑफिस के ठीक बाहर इस तरह थी कि अगर उसका दरवाजा थोड़ा भी खुला होता तो वह मुझे देख सकता था. मैंने कई बार उसे मुझे देखते हुए पाया. अगर वहां कोई मिलने आता तो दरवाजा बंद होता, और जब वह अकेला होता, तो दरवाजा खुला रहता. बाद में उसने एशियन एज की इंटरनल मैसेज पर मुझे मेरे कपड़ों और रूपरंग को लेकर निजी संदेश भेजने शुरू कर दिए.”
उन्होंने आरोप लगाया कि बाद में अकबर ने उन्हें ऑफिस में बुलाकर उनके साथ यौन दुर्व्यवहार भी किया. अकबर ने यौन दुर्व्यवहार के सभी आरोपों से इनकार किया है. वहाब ने आगे कहा कि उन्होंने इस घटना के बारे में सीमा मुस्तफा को बताया, जो उस समय ब्यूरो चीफ थीं.
'जो करना था मुझे खुद करना था'
उन्होंने अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट विशाल पाहुजा को बताया, 'उन्होंने (मुस्तफा) कहा कि वह उसके व्यवहार से हैरान नहीं हैं और वह मेरी मदद करने में असमर्थ हैं और यह पूरी तरह से मेरी गलती थी और अब मुझे यह तय करना था कि आगे क्या करना है. मैं 26 साल की थी, अकेली उलझन में थी, असहाय और सबसे बड़ी बात थी कि (मैं) डर गई थी. एशियन एज में सेक्सुअल हैरेसमेंट की शिकायत सुनने के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी. इस तरह के मामलों को सुनने के लिए कोई इंटरनल कमेटी या नीति नहीं थी. जो करना था मुझे खुद करना था.'
उन्होंने आगे कहा, "अकबर न सिर्फ एशियन एज के चीफ एडिटर थे, वह सांसद भी थे और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता भी थे. उसकी ताकत और पहुंच को देखते हुए मैंने सोचा कि अपनी शिकायत को सार्वजनिक करना या इसके बारे में सोचना भी ठीक नहीं होगा. मेरा पूरा जीवन मेरे सामने था. पिछले तीन वर्षों के दौरान मैंने दिल्ली में रहने और काम करने के लिए अपने घर में लड़ाई लड़ी थी.”
वहाब ने कहा कि इसके बाद नवंबर 1997 में अकबर ने टैरो कार्ड रीडर वीनू सान्याल को मेरे पास भेजा और “जिन्होंने मुझसे कहा कि उन्हें मुझसे प्यार हो गया है और मुझे विरोध छोड़ देना चाहिए.” इस मामले में सान्याल अकबर के पक्ष से गवाह हैं. वहाब ने अदालत से कहा मीटू अभियान से उन्हें अपनी आपबीती साझा करने का हौसला मिला.
बुधवार को भी जारी रहेगी सुनवाई
रमानी ने अदालत से कहा कि वहाब की कहानी से अकबर का दावा पूरी तरह गलत साबित हो गया है. अदालत इस मामले में बुधवार को भी सुनवाई जारी रखेगी, जब वहाब से अकबर द्वारा जिरह की जा सकती है. वहाब ने बताया कि उन्होंने एशियन एज समाचार पत्र के दिल्ली ऑफिस में 1995 में नौकरी शुरू की थी. वर्ष 1997 की शुरुआत में ऑफिस नए भवन में ट्रांसफर हुआ, जहां उनकी डेस्क अकबर के केबिन के ठीक बाद थी. वर्ष 1998 की शुरुआत में वहाब ने एशियन एज छोड़ दिया. गजाला वहाब इस समय फोर्स पत्रिका की कार्यकारी संपादक हैं.
अकबर ने इससे पहले अदालत से कहा था कि ‘वोग’ पत्रिका में छपे लेख और उसके बाद किए ट्वीट से उनकी मानहानि हुई है और रमानी के “झूठे” आरोपों से उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है.
रमानी ने अदालत को बताया था कि उनके अकबर द्वारा कथित यौन दुर्व्यवहार के “खुलासे” की उन्होंने “निजी तौर पर भारी कीमत” चुकाई है और “इससे उन्हें कोई फायदा नहीं मिला है.” उन्होंने कहा कि उनके कदम से महिलाओं में बोलने की ताकत और कार्य स्थल पर अपने अधिकारों की समझ आएगी.
(इनपुट: भाषा)
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