कैबिनेट मीटिंग के बाद किसानों को लेकर कुछ फैसले लिए गए. जिसे लेकर केंद्रीय कृषि मंत्री ने खुद सामने आकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इसके बाद अखबार की हेडलाइंस में इसे किसानों को सौगात बताया गया. लेकिन हर साल दो बार यही होता है. सरकार की तरफ से घोषणा होती है कि किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोतरी. इसे हर बार ऐसे पेश किया जाता है, जैसे इतिहास में पहली बार सरकार किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य दे रही है. लोगों को लगता है कोई बहुत बड़ी चीज हुई है, लेकिन असली सच्चाई कुछ और ही है.
पिछले 50 साल से किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की सरकार की स्कीम है, जिसकी साल में दो बार घोषणा होती है. वही घोषणा इस बार भी हुई है. हर साल की तरह उसमें थोड़ा इजाफा हुआ है और इसके अलावा सरकार ने किसानों को लोन देने वाली अपनी पुरानी स्कीम का दोबारा अनाउंसमेंट कर दिया. अब इसे कैसे समझें? समझने के दो ही तरीके हैं.
बड़ी घोषणा के साथ बताई पुरानी स्कीम
पहले तो क्रेडिट स्कीम में पूछें कि इस बार किसानों की जो तकलीफ है उसके लिए क्या नई चीज हुई है? दूसरा एमएसपी में बढ़ोतरी के बारे में पूछें कि क्या पहले से ज्यादा है? क्या महंगाई से बेहतर है? क्या किसान की लागत को कवर करके उसे मुनाफा देती है?
जहां तक क्रेडिट की बात है तो पुरानी क्रेडिट स्कीम को दोहरा दिया गया है. स्कीम है कि किसान को 7 परसेंट ब्याज के हिसाब से लोन दिया जाता है और अगर वो वक्त पर लौटाता है तो उसे तीन परसेंट की छूट मिल जाती है. लेकिन सरकार ने फिर इसकी घोषणा की, मानो ये कोई नई घोषणा हो.
“किसान को अभी चाहिए था कि इस कोरोना वायरस के चलते उसे जो नुकसान हुआ है, उसमें उसका तीन महीने का ब्याज सरकार माफ कर दे. लेकिन सरकार ने कहा कि आप देरी से चुकाइए, पर चक्रवृद्धि ब्याज आप पर लगता जाएगा.”योगेंद्र यादव
पिछले 5 साल मे सबसे कम बढ़ी MSP
अब एमएसपी की बात करते हैं. हर साल ये बढ़ता है, लेकिन सवाल ये है कि पिछले साल जो बढ़ोतरी की थी, क्या उससे ज्यादा बढ़ोतरी हुई है? धान को ले लीजिए, पिछले साल सरकार ने इसे 1750 से बढ़ाकर 1815 किया था, यानी 3.7 फीसदी बढ़ाया था. वहीं इस साल 1815 से बढ़ाकर 1868 रुपये कर दिया है, 2.9% बढ़ाया है, जो कि पिछले साल से भी कम है और सरकार कह रही है कि ताली बजाओ.
“पिछले पांच सालों में 14 फसलों पर जो एमएसपी बढ़ाई गई है, उनमें धान, ज्वार, मूंगफली, सूरजमुखी, सोयाबीन जैसी बड़ी फसलों में पिछले पांच साल की सबसे कम बढ़ोतरी इस साल हुई है और इसे किसानों को सौगात की तरह पेश किया जा रहा है.”योगेंद्र यादव
आखिर में किसान के हाथ खाली
सरकार बार-बार ये कहती है कि किसान को लागत का डेढ़ गुना दाम दिया जा रहा है. लेकिन हर बार इस बात को छिपाया जाता है कि किसान की संपूर्ण लागत का डेढ़ गुना दाम नहीं है, ये आंशिक लागत का दाम है. जिससे किसान के पास 5 या 10 परसेंट ही बचत होगी.
सवाल ये भी है कि ये एमएसपी कितने किसानों को मिलेगा. आज भी चारों तरफ से खबरें आ रही हैं कि मध्य प्रदेश में किसान गेंहूं बेचने के लिए सात दिन तक लाइन में खड़े हैं. बिहार में मकई की एमएसपी 1700 से ज्यादा है लेकिन किसान 1200 में उसे बेच रहा है. हरियाणा पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाके को छोड़ दें तो ज्यादातर जगह सरकार का ये घोषित दाम भी नहीं मिल रहा है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)