केंद्र सरकार विवादित कृषि कानूनों (Farm Laws) को आखिरकार वापस लेने जा रही है. किसानों के 358 दिन के आंदोलन (Farmers Protest) के बाद सरकार ने ये फैसला लिया. खुद प्रधानमंत्री मोदी ने इसका ऐलान किया. पिछले साल 26 नवंबर को शुरू हुए इस आंदोलन की कहानी ऐसी है कि, लोग जुड़ते गए और कारवां बढ़ता चला गया. इस बीच संयुक्त किसान मोर्चा बनाया गया, जिसमें देशभर के किसान संगठन जुड़े. 26 जनवरी को हुई हिंसा के बाद कुछ इससे अलग हो गए, वहीं बाकी तमाम संगठनों ने लगातार लड़ाई जारी रखी.
लेकिन सरकार और उसके विवादित कानूनों के खिलाफ इस पूरी लड़ाई में किसान आंदोलन के कुछ ऐसे चेहरे सामने आए, जिन्होंने किसी भी मोड़ पर आंदोलन को कमजोर नहीं पड़ने दिया. चाहे कितने भी आरोप लगे हों, मीडिया में कुछ भी कहा गया हो... इन लोगों ने डटकर इन सब मुश्किलों का सामना किया.
राकेश टिकैत की ललकार
किसान आंदोलन में आज सबसे बड़ा नाम राकेश टिकैत का आता है, अगर कहा जाए कि टिकैत किसान आंदोलन का चेहरा बन गए तो ये गलत नहीं होगा. भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता के तौर पर 52 साल के टिकैत ने आंदोलन में कदम रखा, लेकिन जब-जब सरकार को चुनौती देने की बात आई तो वो खुद सामने आकर खड़े हो गए.
राकेश टिकैत का आंदोलनों से पुराना नाता रहा है, क्योंकि वो मशहूर किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे हैं. जिन्होंने भारतीय किसान यूनियन की शुरुआत की थी.
26 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च के दौरान हुई हिंसा के बाद गाजीपुर बॉर्डर पर भारी पुलिसबल तैनात कर दिया गया. इस दौरान टिकैत भी मान रहे थे कि जो हुआ है वो गलत हुआ है. तभी कुछ बीजेपी कार्यकर्ताओं ने गाजीपुर बॉर्डर पर जाकर किसानों के साथ झड़प की और उन्हें वहां से खदेड़ने की बात कही गई. लेकिन यही वो मोड़ था, जहां से आंदोलन को और धार मिली. राकेश टिकैत कैमरे के सामने रोते हुए नजर आए और उनके आंसुओं ने आंदोलन में चिंगारी का काम किया. यूपी से हजारों किसान कुछ ही घंटों में गाजीपुर बॉर्डर पर जुट गए. किसान महापंचायतें शुरू हो गईं. देशभर के कई किसान संगठनों ने ये ऐलान किया कि वो आंदोलन के साथ हैं और इसे वापस नहीं लिया जाएगा.
अब प्रधानमंत्री के कानूनों को वापस लेने के ऐलान पर राकेश टिकैत ने साफ किया है कि जब तक संसद से कानून रद्द नहीं कर दिए जाते हैं, किसान आंदोलन जारी रहेगा. साथ ही उन्होंने एमएसपी की भी बात कही है. यानी टिकैत सरकार को फिलहाल राहत देने वाले नहीं हैं.
जोगिंदर सिंह उगराहन
75 साल के पूर्व सैनिक जोगिंदर सिंह उगरान का नाम भी इस आंदोलन के बड़े चेहरों में से एक है. वो भारतीय किसान यूनियन एकता (उगराहन) के चीफ हैं. जिसे पंजाब के किसानों की समस्याओं को दूर करने के लिए साल 2002 में बनाया गया था.
उगराहन कृषि कानूनों के खिलाफ 2020 से ही आंदोलन कर रहे हैं. उन्होंने पंजाब में किसानों को इसके लिए एकजुट करने का काम किया.
उगराहन का नाम तब सामने आया, जब कुछ टीवी चैनलों ने उनके संगठन पर नक्सलियों के साथ लिंक के आरोप लगा दिए थे. क्योंकि एकता उगराहन के सदस्यों ने वरवर राव और उमर खालिद समेत अन्य लोगों की रिहाई की मांग की थी. इसके बाद जोगिंदर सिंह उगराहन ने कहा था कि,
"हमें हमेशा से ही गलत कहा जाता है, ये इसलिए क्योंकि हम आम लोगों के साथ हैं. वो हमें कुछ भी कह सकते हैं, लेकिन इससे ये तथ्य झूठा नहीं हो जाता है कि हम आम आदमी के लिए जमीन पर काम करते हैं. जिन लोगों को राजनीतिक कैद में रखा गया है, उनकी रिहाई को लेकर संयुक्त मांग को सरकार के सामने रखा गया था."
बलबीर सिंह राजेवाल
पंजाब में राजेवाल का नाम लगभग सभी लोग जानते हैं. राजेवाल ने भारतीय किसान यूनियन से अलग होकर अपना खुद का किसान संगठन बनाया. 77 साल के राजेवाल संयुक्त किसान मोर्चा के अहम नेता हैं. साथ ही इस आंदोलन में उनकी भूमिका भी काफी अहम रही है. बताया जाता है कि बलबीर सिंह राजेवाल ने ही अकालियों को पंजाब में कृषि क्षेत्र में संशोधन को लेकर कई अहम सुझाव दिए थे. उनके इस कद की वजह से ही कई छोटे किसान संगठनों ने उनका साथ दिया.
डॉक्टर दर्शनपाल
किसान आंदोलन में तमाम संगठनों को एकजुट करने में 70 साल के डॉक्टर दर्शनपाल की भी अहम भूमिका रही. पंजाब के क्रांतिकारी किसान यूनियन के अध्यक्ष दर्शनपाल पिछले कई सालों से किसानों की मांगों को लेकर काम कर रहे हैं. वो किसानों के कर्जमाफी का मुद्दा लगातार उठाते आए हैं.
जैसे ही उनका संगठन किसान आंदोलन के साथ जुड़ा, उन्होंने तमाम छोटे संगठनों और लोगों को जोड़ना शुरू कर दिया. दर्शनपाल को प्रदर्शन स्थल पर तमाम तरह के कामकाज संभालने के लिए दिए गए, जिन्हें उन्होंने बखूबी पूरा किया.
गुरनाम सिंह चढ़ूनी
गुरनाम सिंह चढ़ूनी के तेवर भी सरकारों की परेशानी का सबब बनते आए हैं. 66 साल के चढ़ूनी हरियाणा के कुरुक्षेत्र से आते हैं और हरियाणा में बीकेयू (चढ़ूनी) संगठन का नेतृत्व करते हैं.
चढ़ूनी ने हरियाणा में कई आंदोलनों का नेतृत्व किया और राज्य के तमाम किसान नेताओं को अपने साथ एकजुट करने का भी काम किया.
हरियाणा के करनाल में जब एसडीएम ने किसानों के सिर फोड़ने का आदेश दिया था तो उस दौरान चढ़ूनी ने खट्टर सरकार के सामने चुनौती पेश की थी और बड़े आंदोलन के बाद हरियाणा सरकार को झुकने पर मजबूर किया था.
हनन मोल्ला
अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) के महासचिव हनन मोल्ला कृषि कानूनों के खिलाफ आवाज उठाने वाले चेहरों में शामिल हैं. मोल्ला 1980 और 2009 में सांसद भी रह चुके हैं. कृषि कानूनों को रद्द करने का ऐलान होने के बाद हनन मोल्ला ने कहा कि उनका संगठन आंदोलन करता रहेगा, जब तक एमएसपी पर गारंटी नहीं दी जाती है.
शिव कुमार शर्मा (काकाजी)
शिव कुमार शर्मा को उनके साथी किसान काकाजी के नाम से जानते हैं. शर्मा भी किसान आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले चेहरों में से एक हैं. शर्मा मध्य प्रदेश से आते हैं और उन्होंने आरएसएस से जुड़े किसान संगठन भारतीय किसान संघ के साथ 1998 में काम शुरू किया था. लेकिन जब उन्होंने 2012 में बीजेपी सरकार के खिलाफ कर्जमाफी और किसानों की आत्महत्या को लेकर प्रदर्शन किया तो उन्हें संगठन से निकाल दिया गया. 2017 में उन्हें प्रदर्शन के दौरान गिरफ्तार भी किया गया था. जिसके बाद शर्मा किसान आंदोलन का अहम हिस्सा बने और कई मोर्चों पर इस आंदोलन का नेतृत्व किया.
युधवीर सिंह
युधवीर सिंह भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्री महासचिव हैं. साथ ही वो संयुक्त किसान मोर्चा के अहम सदस्य भी हैं. उन्होंने खुलकर एमएसपी की गारंटी को लेकर मांग की और तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं को भी इस मांग की तरफ खींचा.
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