ADVERTISEMENTREMOVE AD

जेल में ट्विटर होता तो अपने खिलाफ चल रहे सभी फेक न्यूज का फैक्ट चेक करता- जुबैर

Mohammed Zubair Interview: जुबैर ने बताया- शिवसेना का कट्टर समर्थक साथी कैदी उन्हें जमानत मिलने पर क्यों रोने लगा

Published
भारत
7 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

जेल में रहने के 23 दिन के दौरान मोहम्मद जुबैर (Mohammed Zubair Interview) को कई बार सोशल मीडिया तक पहुंच और फेक न्यूज का खुलासा करने की काफी जरूरत महसूस हुई. आखिरकार पिछले पांच सालों से उनकी जिंदगी फैक्ट चेकिंग के इर्द-गिर्द ही घूम रही है. लेकिन एक आदत से ज्यादा इस बार एक और ज्यादा जरूरी मजबूरी इसका कारण थी- ये महसूस करना कि वो खुद ही लगातार फेक न्यूज का विषय बन गए थे.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

20 जुलाई को जेल से रिहा होने के कुछ दिन बाद क्विंट से बात करते हुए जुबैर ने कहा कि जब वो जेल में थे तब वो उनके खिलाफ लगातार झूठे प्रचार से परेशान थे.

हंसते हुए उन्होंने कहा कि “जब मुझे मेरे बारे में फेक न्यूज चलने का पता चला तो मैं यही सोच पा रहा था कि अभी मेरे पास सोशल मीडिया होता तो तुम सबकी बैंड बजाता. सब पोल खोल देता. ”

हर ट्वीट के लिए उन्हें दो करोड़ मिलने, बांग्लादेश के साथ कनेक्शन से लेकर एक प्रमुख चैनल की सूत्रों पर आधारित खबर जिसमें ये कहा गया कि पिछले कुछ दिनों में उनके खाते से 50 लाख रुपये का ट्रांजैक्शन हुआ है-27 जून को दिल्ली पुलिस के गिरफ्तार किए जाने के बाद से जुबैर के बारे में कई दुर्भावनापूर्ण अफवाहें फैलाई जाती रहीं.

जब वो जेल में थे तब उनके वकील उन्हें इन खबरों और अफवाहों के बारे में बताते थे और हालांकि वो इन सब के बारे में ज्यादा सोचने की कोशिश नहीं करते थे लेकिन एक खबर को लेकर वो सच में काफी परेशान हो गए थे.

'लगा था कि अब कोई भी ऑल्ट न्यूज को डोनेट नहीं करेगा लेकिन...'

जुबैर ने क्विंट को बताया कि “जब मुझे पता चला कि रेजरपे ने पुलिस को ऑल्ट न्यूज को दान देने वाले सभी लोगों की जानकारी दे दी है, तो मैं काफी गुस्से में था. क्योंकि दान देने से पहले जान-पहचान वाले और दोस्त कई बार मुझसे पूछते थे ‘जुबैर भाई, हमारी निजी जानकारी तो किसी के साथ साझा नहीं की जाएगी ना?’ और मैं उन्हें हमेशा आश्वस्त करता कि उनका डेटा सुरक्षित है. मुझे लगा जैसे मैंने उनका भरोसा तोड़ा है.”

जुलाई के पहले हफ्ते में जुबैर की गिरफ्तारी के कई दिनों बाद, ऑल्ट न्यूज द्वारा दान लेने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पेमेंट गेटवे रेजरपे ने ऑल्ट न्यूज को दान देने वाले सभी लोगों के नाम दिल्ली पुलिस को दे दिए थे. ऑल्टन्यूज ने एक बयान जारी कर कहा था रेजरपे ने ऐसा करने से पहले उनके साथ संपर्क नहीं किया था जबकि रेजरपे का कहना था कि पुलिस के साथ जांच में “सहयोग करना उनके लिए अनिवार्य” है.

ऑल्टन्यूज को दान देने वालों की निजी जानकारी पुलिस के साथ साझा किए जाने से जुबैर न सिर्फ निराश थे बल्कि उन्हें इस बात को लेकर भी पक्का विश्वास था कि इससे भविष्य में ऑल्टन्यूज के विकास पर बुरा असर पड़ेगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

जुबैर ने कहा “ मुझे लगा कि डर के कारण लोग हमें दान देना छोड़ देंगे.” लेकिन उन्हें हैरानी हुई जब जेल से रिहा होने के बाद उन्हें पता चला कि उनके जेल में रहने के दौरान ऑल्टन्यूज को मिलने वाला दान दोगुने से भी ज्यादा हो गया है. उन्होंने कहा “ये सच में दिल को छू लेने वाला था. मुझे महसूस हुआ कि लोगों का ऑल्टन्यूज के साथ सच्चा भावनात्मक जुड़ाव है और यही मायने रखता है.”

'शिवसेना समर्थक कैदी रोया जब मुझे जमानत मिली'

पुलिस अधिकारियों के साथ बातचीत को लेकर जुबैर ने कहा कि ज्यादातर समय उनका रवैया दोस्ताना था लेकिन जब वो कुछ पुलिसवालों के और करीब आए तो उन्हें महसूस हुआ कि उनमें से ज्यादातर ये समझते हैं कि वहां क्या खेल चल रहा है.

जुबैर ने कहा कि “पुलिसवाले निजी तौर पर मुझसे कहते थे कि ‘सिर्फ कुछ ट्वीट के लिए आपको निशाना बनाया जा रहा है, हम जानते हैं ये कितना भयावह है.’ मैंने जितने भी पुलिस वालों से बात की उनमें से 70 फीसदी रवीश कुमार के फैन थे. बाकी के 30 फीसदी भी ये कहते थे कि ‘वो कई बार कुछ ज्यादा ही वामपंथी हो जाते हैं लेकिन वो अकेले ऐसे हैं जो प्रासंगिक मुद्दों पर बात करते हैं इसलिए ये चलता है.’ ये ज्यादातर निचले स्तर के अधिकारी थे. ”

जुबैर ने अपना फोन नंबर तिहाड़ जेल में बंद दो कैदियों को दिया, जिनमें से एक 50 साल के करीब का एक व्यक्ति है जो शिवसेना का कट्टर समर्थक है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD
“ शुरू में मुझे ऐसा लगा कि उसे ये लगा कि मैंने हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ कुछ कहा है. शायद उसने जेल में आने वाले अखबारों में ऐसा पढ़ा होगा. लेकिन जब मैंने उसे अपना पक्ष सुनाया तो वास्तव में वो मेरा दोस्त बन गया. एक बार जब उसे ये समझ में आ गया कि मैं क्या करता हूं और ऑल्टन्यूज क्या करता है तो उसने कहा कि ‘आपका काम बहुत जरूरी है.’ और हमारी दोस्ती और गहरी हो गई.”
जुबैर

ये दोस्ती इस हद तक बढ़ गई थी कि जब जुबैर को अदालत में पेशी के लिए सीतापुर या हाथरस ले जाया जाता तो ये कैदी उनकी वापसी का बेसब्री से इंतजार करते थे. और जब सुप्रीम कोर्ट ने जुबैर को जमानत दिए जाने का फैसला सुनाया तो उन्होंने जुबैर को गले लगा लिया और काफी देर तक रोते रहे. जुबैर ने कहा “ये सच में काफी प्यारा था”

जुबैर की जेल में उनके वार्ड के दूसरे कैदियों से भी दोस्ती हो गई थी जो हर हफ्ते होने वाली फोन कॉल में अपने बच्चों को जुबैर और उनसे दोस्ती के बारे में बताते थे.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

'प्रतीक सिन्हा नहीं होते तो जेल से बाहर नहीं आ पाता’

जुबैर को लगता है कि जेल अधिकारियों ने उनके साथ अभद्र व्यवहार नहीं किया इसका एक कारण सोशल मीडिया पर उन्हें फॉलो करने वालों की बड़ी संख्या भी हो सकती है. उन्होंने कहा कि “शायद उन्हें लगा होगा कि जेल से बाहर आकर मैं किसी मुद्दे या जेल में जिन मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है उसके बारे में ट्वीट करूंगा. किसी ने मुझे ये भी बताया कि मेरे आने के पहले जेल में ऐसी बहुत सी चीजें हो रही थीं जो नहीं होनी चाहिए थीं.”

तीन हफ्ते, जब तक जुबैर जेल में रहे, उनकी रिहाई की मांग को लेकर हैशटैग न सिर्फ भारत बल्कि दूसरे देशों में ट्रेंड करते रहे. जुबैर का कहना है कि उन्हें समर्थन की उम्मीद तो थी लेकिन इस हद तक नहीं.

जुबैर ने कहा कि “ आम तौर पर हर बार जब कोई गिरफ्तारी होती है तो गुस्सा कम हो जाता है. लेकिन मेरे लिए ये लगातार बना रहा. मैं सच में आभारी हूं ”

सोशल मीडिया पर समर्थन के बावजूद, इस तरह के हाई प्रोफाइल केस में जमानत पर बाहर आना आसान नहीं है-दिल्ली दंगों के मामलों में कई कार्यकर्ता दो साल से ज्यादा समय से जेल में हैं. उन्होंने कहा कि “शुरुआत में मैं जानता था कि मेरे खिलाफ कोई केस ही नहीं बनता. मुझे लगा कि ज्यादा से ज्यादा मुझे 7-8 दिन तक न्यायिक हिरासत में रखेंगे, लेकिन जब उत्तर प्रदेश में मेरे खिलाफ एक एसआईटी का गठन किया गया तो मैं काफी डर गया था. मैं मानसिक तौर पर खुद को 1-2 साल तक जेल में रखने की तैयार करने लगा था.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अगर कोई एक व्यक्ति है जिन्हें वो अपनी रिहाई का श्रेय देते हैं तो वो हैं ऑल्टन्यूज के सह-संस्थापक प्रतीक सिन्हा. जुबैर ने कहा कि “ अगर प्रतीक सिन्हा नहीं होते तो मैं अभी भी जेल में ही होता. वो और उनकी मां (निरझरी सिन्हा) ने मुझे बाहर निकालने के लिए दिन रात एक कर दिया. उत्तर प्रदेश के कई शहरों से मेरे खिलाफ गिरफ्तारी के वारंट निकाले जा रहे थे और वो उन सभी शहरों में सबसे अच्छे वकीलों का इंतजाम कर रहे थे जिससे कि मुझे जमानत मिल सके. उन्होंने जो किया वो कोई और नहीं करेगा. ”

'अगर मैं ट्वीट करना छोड़ दूं तो भी वो मुझे निशाना बनाएंगे'

घर लौटने के बाद अब जुबैर का कहना है कि जेल में उसने अपने परिवार-उसके माता-पिता, पत्नी और तीन बच्चों की काफी कमी महसूस की. वो उनके साथ ज्यादा समय बिताने की योजना बना रहे हैं, खासकर सबसे छोटी बच्ची, एक बेटी जो सिर्फ साढ़े तीन महीने की ही है. लेकिन क्या वो अब भी ऑल्ट न्यूज में काम करने और उससे भी अहम ट्वीट करने की सोच रहे हैं?

जुबैर का कहना है कि “ अगर मैं ये सब छोड़ दूं तो मेरा परिवार सबसे ज्यादा खुश होगा क्योंकि उन्होंने खुद, प्रत्यक्ष तौर पर देखा है कि ये सब कितना खतरनाक है. लेकिन वो ये भी जानते हैं कि मैं ये सब कभी नहीं छोड़ूंगा. जब 2020 में मेरे खिलाफ पहली एफआईआर दर्ज की गई थी तब वो कहते थे ‘ये काम छोड़ दो, तुम्हारे पास नोकिया में इतनी अच्छी नौकरी है. हम कितना घूमते थे, आरामदेह जिंदगी जीते थे’ लेकिन अब वो जानते हैं कि ये ऐसा काम है जो मुझे करना है. ”
ADVERTISEMENTREMOVE AD

अपने ट्वीट्स पर जुबैर का कहना है कि वो “नरम रुख” अपनाने की सोच रहे हैं लेकिन इस बात को लेकर संदेह है कि इससे कुछ बदलेगा या नहीं.

उनका कहना है कि “ मैं शायद अब जिन शब्दों का इस्तेमाल करूंगा उसको लेकर और सावधानीपूर्वक विचार कर सकता हूं. लेकिन फिर मेरे खिलाफ दाखिल कम से कम से कम तीन एफआईआर मेरे ट्वीट को लेकर नहीं हैं बल्कि जो मैंने फैक्ट चेक किया है उसे लेकर हैं. इसलिए मुझे पता है कि अगर उन्हें मेरे खिलाफ केस दर्ज करना है तो वो कोई न कोई कारण ढूंढ ही लेंगे. ट्वीट करना या नहीं करना मायने नहीं रखता.”

जुबैर जिस एफआईआर के बारे में कह रहे हैं वो सुदर्शन न्यूज से जुड़े एक व्यक्ति की ओर से दर्ज कराई थी जिसने उस ट्वीट पर आपत्ति जताई थी जिसमें जुबैर ने बताया था कि सुदर्शन न्यूज ने एक कार्यक्रम के दौरान मदीना की अल मस्जिद अन नबावी की तस्वीरों का इस्तेमाल किया था और इसे गाजा की एक पुरानी तस्वीर पर लगाया था, साथ में मस्जिद पर बमबारी के गाफिक्स थे.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

'मैं वो करता हूं जो पत्रकारों को करना चाहिए था'

पिछले साल किए एक ट्वीट में जुबैर ने एक टिप्पणी का जवाब देते हुए कहा था कि वो एक पत्रकार नहीं है. और इसके बावजूद कई पत्रकार उसे एक पत्रकार मानते हैं और जब वो गिरफ्तार हुए कई उसके समर्थन में आगे आए.

अपनी बात को स्पष्ट करते हुए जुबैर कहते हैं कि “ मेरे कहने का मतलब था कि मैं पत्रकारिता की डिग्री लेने वाला पत्रकार नहीं हूं. मेरे पास सॉफ्टवेयर इंजीनियर की डिग्री है. मैंने उसी की पढ़ाई की है. लेकिन जब मैंने देखा कि पत्रकार वो नहीं कर रहे हैं जो उन्हें करना चाहिए तो मुझे ये जिम्मेदारी उठानी पड़ी, मुझे वो करना पड़ा जो उन्हें करना चाहिए था.”

जुबैर ने आगे कहा कि “ इस तरह देखा जाए तो मैं भी एक पत्रकार हूं. ”

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×