मोहम्मद जुबैर (Mohammed Zubair) 2017 तक बैंगलोर में एक टेलीकॉम कंपनी में इंजीनियर के रूप में काम कर रहे थे, इसके साथ ही वे गुमनाम तरीके से पार्ट टाइम एक प्रसिद्ध राजनेता का पैरोडी अकाउंट भी चलाते थे. तीन साल 'अनऑफिशियल सुब्रमण्यम स्वामी' फेसबुक पेज जिसे 'सुसुस्वामी' के नाम से भी जाना जाता है चलाने के बाद इसने काफी फाॅलोइंग और फैन हासिल कर लिए थे. लेकिन जिस तरह से राजनीतिक मुद्दों पर उनका मुखर रुख रहा और सरकार की कई नीतियों पर उन्होंने व्यंग्य किया, उसके कारण ज़ुबैर को अपरिहार्य रूप से ट्रोल का सामना करना पड़ा और अक्सर उन्हें धमकी भरे संदेश भी मिलते थे.
लेकिन बतौर फुल-टाइम फैक्ट-चेकर काम करने का निर्णय लेने के बाद के वर्षों में किसी भी नफरत और ऑनलाइन उत्पीड़न का उन्हें सामना नहीं करना पड़ा.
हाल ही में दिल्ली पुलिस ने जुबैर को 2018 में किए गए एक ट्वीट के संबंध में गिरफ्तार किया था. इसके बाद अदालत ने जुबैर को पुलिस हिरासत में भेज दिया था.
जिस समय जुबैर को हिरासत में भेजने की बात कही गई उस समय तक जुबैर के समर्थन में कई लोग सामने आ चुके थे, समर्थन करने वालों में उनके काम को फॉलो करने वाले फॉलोवर्स, कई विपक्षी दलों के नेता और साथ ही अंतरराष्ट्रीय पत्रकार नेटवर्क भी शामिल थे. जुबैर की गिरफ्तारी के कुछ घंटे बाद ही ट्विटर पर #IStandWithZuair दुनिया भर में नंबर 1 पर ट्रेंड करता रहा.
रेमन मैगसेसे अवार्डी पत्रकार और एनडीटीवी एंकर रवीश कुमार ने जुबैर की गिरफ्तारी के एक दिन बाद क्विंट को बताया था कि "जो काम मुख्यधारा यानी कि मेनस्ट्रीम मीडिया का होना चाहिए था, उस काम को व्यक्तिगत तथ्य-जांचकर्ताओं (फैक्ट चेकर्स) और स्वतंत्र प्लेटफार्मों द्वारा किया जा रहा है."
रवीश आगे कहते हैं कि "जुबैर को निशाना बनाकर पूरे फैक्ट-चेकिंग कम्युनिटी को चेतावनी दी जा रही है कि आज की जो फेक न्यूज है वह एक पॉलिटिकल सेटअप है, जिसमें भारी निवेश किया गया है और इसके साथ खिलवाड़ नहीं किया जाना चाहिए. इसका मलतब यह है कि जनता को फर्जी खबरें कंज्यूम करने दें, फेक न्यूज का भंडाफोड़ करके और फैक्ट्स का खुलासा करके खेल को खराब न करें."
वाशिंगटन डीसी स्थित कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (CPJ) ने जुबैर की तत्काल रिहाई के लिए तुरंत मांग की और कमेटी की ओर से कहा गया कि 'भारत में प्रेस की स्वतंत्रता का स्तर और नीचे चला गया.'
लेकिन कई सोशल मीडिया अकाउंट उनकी गिरफ्तारी का समर्थन करते हुए जुबैर के एक पुराने ट्वीट को प्रसारित कर रहे हैं, जिसमें उन्होंने लिखा था कि वह एक पत्रकार के तौर पर अपनी पहचान नहीं रखते हैं. ऐसे में बिना पत्रकारिता पृष्ठभूमि का एक व्यक्ति कैसे AltNews के सह-संस्थापक और पत्रकारिता का प्रतीक न केवल देश में बल्कि विश्व स्तर पर भी बन गया?
उनके मीडिया साथियों का कहना है कि एक पत्रकार के तौर पर अपनी पहचान बनाने में उनकी अनिच्छा के बावजूद भी आज वे अपने आप में एक पत्रकारिता का संस्थान हैं.
'AltNews' की शुरुआत
जब जुबैर बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी का पैरोडी अकाउंट चला रहे थे, तब बीजेपी सरकार की आलोचना करने वाले कुछ अन्य लोकप्रिय पेज भी सुर्खियां बटोर रहे थे. उनमें से एक को ‘Truth of Gujarat’ के नाम से पुकारा जाता था, इस पेज को प्रतीक सिन्हा चलाते थे जोकि इंजीनियर से एक्टिविस्ट बने थे. जुबैर-प्रतीक एक-दूसरे को नहीं जानते थे लेकिन 2015 में किस्मत से एक घटना हुई जब जुबैर ने अपने पेज पर ‘Truth of Gujarat’ पेज की एक तस्वीर बिना किसी क्रेडिट दिए पोस्ट की थी.
"जब प्रतीक ने जुबैर से संपर्क किया, तो उन्होंने (जुबैर ने) माफी मांगी. लेकिन उस एक बातचीत ने दोनों के बीच बातचीत की एक श्रृंखला के द्वार खोल दिए थे और वे दोनों एक-दूसरे के काम की तारीफ करने लगे."जैसा कि प्रतीक की मां निर्झारी सिन्हा ने याद करते हुए कहा
निरझारी, ऑल्टन्यूज (AltNews) के निदेशकों में से एक के तौर पर भी काम करती हैं, उन्होंने क्विंट से बात करते हुए कहा कि मैं और प्रतीक 2017 में जुबैर से पहली बार मिले थे. वे कहती हैं कि “वह (जुबैर) किसी काम के लिए अहमदाबाद आया था जहां हम तीनों मिले थे. उस मुलाकात के दौरान हमने बढ़ते पॉलिटिकल प्रोपेगेंडा और फर्जी खबरों के साथ-साथ फैक्ट-चेकिंग की आवश्यकता के बारे में बात की थी.
इस तरह से उस साल फरवरी में AltNews अस्तित्व में आया, जिसके दो सह-संस्थापक प्रतीक और जुबैर थे. 2018 तक जब तक जुबैर ने बेंगलरु में अपनी आर्थिक रूप से सुरक्षित नौकरी छोड़ने का साहस जुटाया नहीं था तब तक वे संस्थान (AltNews) के प्रति पूरी तरह से कमिटेड नहीं थे.
उसके बाद से 38 वर्षीय इस शख्स (जुबैर) ने खुद को इस काम में खपा दिया है, जिसमें वायरल फोटो को रिवर्स-सर्च करने और उनके आसपास बुने गए फेक नैरेटिव का पर्दाफाश करने जैसे कार्य शामिल थे. हालांकि पिछले कुछ वर्षों में उनका काफी समय और ऊर्जा घृणा और नफरत भड़काने वाले वीडियो की पड़ताल करने में खर्च हुई, यह एक ऐसा काम है जिसकी अनदेखी अधिकांश मीडिया द्वारा की जाती है.
क्विंट से बात करते हुए, पत्रकार रवीश कुमार ने कहा कि ज़ुबैर ने आज-कल जो फर्जी खबरें उजागर की हैं उनमें से अधिकांश 'गोदी' मीडिया और उसके पारिस्थितिकी तंत्र को उजागर करती हैं.
रवीश आगे कहते हैं कि "मुख्यधारा के मीडिया ने खुद को फैक्ट-चेकिंग से दूर कर लिया है, क्योंकि आईटी सेल, गोदी मीडिया और सत्तारूढ़ राजनीतिक दल फर्जी खबरों और गलत सूचनाओं पर पनप रहे हैं."
वे आगे कहते है कि "उनके झूठ की जांच-पड़ताल करना सरकार को चुनौती देना है, जिसके परिणामस्वरूप अंततः केस का सामना करना पड़ता है और जेल जाना पड़ता है...काफी व्यक्तिगत जोखिम पर जुबैर ने इस महत्वपूर्ण प्रयास को जारी रखा है."
जुबैर की धर्म संसद की रिपोर्ट '
जुबैर ने दिसंबर 2021 में एक वीडियो सीरीज जारी की जो कि उत्तराखंड के हरिद्वार में हुई 'धर्म संसद' से संबंधित थी. इस 'धर्म संसद' में कई हिंदू धर्मगुरुओं और संतों ने मुसलमानों के नरसंहार का आह्वान किया था.
तब मुख्यधारा की मीडिया ने जुबैर के वीडियों के आधार पर उस सभा की रिपोर्ट की. उस समय जुबैर का ट्विटर अकाउंट आने वाले हफ्तों में आने वाली अधिकांश खबरों का स्रोत बन गया था. कार्यक्रम (सभा) में जो नफरती भाषण (हेट स्पीच) दिया गया था उसको लेकर सशस्त्र बलों के 6 पूर्व प्रमुखों और 100 से अधिक प्रतिष्ठित हस्तियों ने प्रधान मंत्री और राष्ट्रपति को पत्र लिखकर इसे (हेट स्पीच को) राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया था. इसके बाद कार्यक्रम में मुख्य वक्ताओं में से एक यति नरसिंहानंद को 15 जनवरी को हरिद्वार पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था.
भारत में हेट क्राइम्स पर नजर रखने वाले और धर्म संसद सहित कई रिपोर्टों पर जुबैर के साथ मिलकर काम करने वाले पत्रकार अलीशान जाफ़री का कहना है कि "अगर ज़ुबैर ने उन सभी वीडियो को अपने ट्विटर प्रोफाइल पर पोस्ट नहीं किया होता, तो इनमें से कुछ भी संभव नहीं होता. एक एक्सक्लुसिव इंवेस्टिगेटिव पीस के तौर पर वह अपनी बाई-लाइन के साथ आसानी से रिपोर्ट लिख सकता था लेकिन इस मुद्दे पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान आकर्षित करने के लिए उन्होंने सभी पत्रकारों के लिए इसे ओपन सोर्स के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए इसे पूरा ट्वीट किया."
अलीशान जाफ़री ने बताया कि जुबैर अपनी परिस्थितियों के कारण पत्रकार बनने के लिए मजबूर हुए. वे बताते हैं कि "आपके पास उस अंतर को भरने के अलावा कोई विकल्प नहीं है जब आप उस समाचार को नहीं पढ़ते या देखते हैं जिसे तत्काल कवर करने की आवश्यकता है, जब मुख्यधारा के मीडिया में कोई भी उस जिम्मेदारी को नहीं ले रहा था, तब जुबैर ने यही किया है."
हालांकि जुबैर सिर्फ एक पत्रकार ही नहीं बने, वह अक्सर एक समाचार एजेंसी के रूप में भी काम करते थे. जुबैर अत्यावश्यक सूचनाओं का प्रसार करते हुए अक्सर न्यूज साइकल को उस दिशा में ले जाते थे जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता होती थी. अलीशान कहते हैं कि "कल्पना कीजिए कि आपका काम इतना प्रभावशाली है कि यह हर दो सप्ताह में न्यूज साइकल को ब्रेक करता है और मुख्यधारा के मीडिया को उन मामलों पर ध्यान देने के लिए मजबूर करता है."
जुबैर की गिरफ्तारी के कुछ घंटे बाद स्वामी आनंद स्वरूप ने इसका जश्न मनाते हुए फेसबुक पर पोस्ट डाले. उन्हाेंने लिखा "मोहम्मद जुबैर को गिरफ्तार कर लिया गया है. अब उन्हें समझ में आ गया होगा कि फर्जी मुकदमों में संतों को सलाखों के पीछे भेजने का नतीजा क्या है."
स्वामी आनंद स्वरूप धर्म संसद में शामिल उन हिंदू संतों में से एक थे जिनकी पुलिस ने जांच की थी.
एक ट्वीट जिससे बीजेपी को मिली 'वैश्विक शर्मिंदगी'
जुबैर ने खुद यह स्वीकार किया कि नरसंहार के वीडियो ने उन पर काफी असर डाला था, लेकिन वह उस पर कायम रहे.
जिस वीडियो में मुसलमानों के नरसंहार का आह्वान किया गया था उसे पोस्ट करने के बाद उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा "इस बकवास के 11+ घंटे सुनने के बाद सो नहीं सकते."
जुबैर ने 27 मई को ज्ञानवापी मस्जिद विवाद पर टाइम्स नाउ की बहस की एक क्लिप शेयर की, जिसमें अब निलंबित बीजेपी प्रवक्ता नुपुर शर्मा दिखाई दे रही हैं. उस क्लिप में शर्मा को एक मुस्लिम सह-पैनलिस्ट पर भड़कते हुए और अंततः पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करते हुए देखा जा सकता है.
अपेक्षित तौर पर ज़ुबैर की क्लिप ने शर्मा की टिप्पणियों पर बहुत से लोगों का ध्यान आकर्षित किया. लेकिन कोई भी कम से कम 16 देशों द्वारा व्यापक आलोचना का अनुमान नहीं लगा सकता था, जिन्होंने बीजेपी सरकार से यह मांग की थी कि वह अपने नेता के खिलाफ एक्शन ले.
अंततः पार्टी ने शर्मा की टिप्पणियों से खुद को अलग कर लिया और उन्हें निलंबित भी कर दिया. बीजेपी के 8 साल के शासन के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था.
और यह सब जुबैर के एक ट्वीट के साथ शुरू हुआ. यह ट्वीट अंतत: बीजेपी के लिए वैश्विक शर्मिंदगी का कारण बना, जिसे पार्टी नेतृत्व का कमजोर क्षेत्र माना जाता है.
पूजा चौधरी अल्ट न्यूज की सीनियर एडिटर हैं, उन्होंने क्विंट को बताया कि “उन्हें (जुबैर को) धमकियों का सामना करने की आदत है, लेकिन जब उनके ट्वीट ने वैश्विक ध्यान आकर्षित किया, तो बीजेपी समर्थकों से उन्हें जितनी नफरत मिली, वह हमारे द्वारा देखी गई किसी भी चीज से कहीं अधिक थी. इस बिंदु पर वापस सबकुछ ट्रेस किया जाने लगा. वे (बीजेपी समर्थक) उदयपुर सहित सभी हिंसाओं के लिए जुबैर को दोषी ठहराने लगे, लेकिन जुबैर ने केवल वही शेयर किया जो नेशनल टेलीविजन पर कहा गया था, एक पत्रकार के तौर पर उन्होंने अपना काम किया."
नूपुर शर्मा की टिप्पणियों के खिलाफ भारत में विरोध प्रदर्शन हुए, कुछ राज्यों में यह प्रदर्शन बढ़कर दंगे तक पहुंच गया. इसके बाद पुलिस ने जिन लोगों को दंगों में संदिग्ध होने का दावा किया उनमें से कुछ लोगों के घरों को भी ध्वस्त कर दिया गया.
तब से ज़ुबैर को धमकियों की बाढ़ आ गई है, जिसमें हिंदू शेर सेना का नेता भी शामिल हैं, जो जुबैर की गिरफ्तारी का जश्न मना रहे हैं.
विकास हिंदू ने अपने फेसबुक पर लिखा "यह जिहादी सुअर कुछ दिन पहले मुझे जेल भेजने की बात कर रहा था, आज खुद जेल चला गया."
बुल्ली बाई गिरफ्तारियों में भूमिका
इस साल 1 जनवरी को मुंबई की रहने वाली सिदरा पटेल को 'बुली बाई' सौदों के तहत ऑनलाइन नीलाम की गई 100 से अधिक मुस्लिम महिलाओं की सूची में अपना नाम मिला. इसके बाद सुबह सिदरा ने ज़ुबैर का एक ट्वीट देखा जिसमें कहा गया था कि उनके पास नीलामी से जुड़े सभी अर्काइव्ड लिंक और ट्वीट्स के स्क्रीनशॉट हैं, जिन्हें बाद में हटा दिया गया था.
सिदरा ने उस ट्वीट को शेयर करते हुए मुंबई पुलिस को टैग किया और उनसे कार्रवाई करने का आग्रह किया. इसके बाद उन्होंने इस मामले में FIR दर्ज कराई.
उस दिन के बाद, उसने जुबैर को एक मजबूत मामला बनाने में मदद करने और प्रासंगिक जानकारी एकत्र करने के लिए रात-दिन काम करते हुए पाया. जिसमें मुस्लिम महिलाओं को निशाना बनाने वाले अकाउंट के अपमानजनक ट्वीट, उनके सोशल मीडिया की पिछली हिस्ट्री खंगालना शामिल था.
सिदरा पटेल डेवलपमेंट प्रोफेशनल हैं. उन्होंने क्विंट को बताया कि “मैंने जनवरी महीने का पहला पूरा हफ्ता पुलिस स्टेशन जाने और औपचारिकताएं पूरी करने में बिताया, लेकिन जुबैर को इससे भी ज्यादा कई दिनों तक आराम नहीं मिला. उन्हें पूरी लगन से ऑनलाइन सभी सबूतों को खंगालना पड़ा."
सिदरा के लिए उस सूची में उसका नाम ढूंढ़ना पहले से ही दर्दनाक था. इसके बाद सभी सबूतों को हासिल करने का काम उनके लिए और अधिक कठिन बन गया था. उन्होंने बताया कि "हर बार जब भी पुलिस कोई विशेष स्क्रीनशॉट मांगती, तो मैं जुबैर की तरफ रुख करती. मैं उन स्क्रीनशॉट को दोबारा देखने की स्थिति में नहीं थी, मेरे हाथ कांप रहे होते थे. लेकिन जुबैर ने धैर्यपूर्वक मेरी मदद की और सभी स्पेसिफिक स्क्रीनशॉट मुझे फॉरवर्ड किए."
4 जनवरी को इस मामले में तीन गिरफ्तारियां की गईं, इसके बाद अगले दो हफ्तों के दौरान दो और गिरफ्तारियां की गईं. सिदरा कहती हैं कि "जुबैर की कड़ी मेहनत ने इन गिरफ्तारियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन जुबैर कभी भी इसका श्रेय लेने की परवाह नहीं करते हैं. वह उन विरले लोगों में से एक हैं जो इस देश को बेहतर बनाने के लिए निस्वार्थ भाव से काम करते हैं."
ट्विटर पर जुबैर के पांच लाख से ज्यादा फॉलोअर्स हैं, जो कि अल्ट न्यूज के अपने फॉलोवर्स के साथ मिलकर उन्हें देश में सबसे ज्यादा फॉलो किए जाने वाले और पढ़े जाने वाले पत्रकारों में से एक बनाता है. लेकिन इस प्रसिद्धि के बावजूद वो विनम्र हैं. निर्झारी बताती हैं कि "कई बार प्रतीक को टीवी डिबेट में हिस्सा लेने के लिए कहा जाता था, लेकिन वह काम के सिलसिले में यात्रा पर रहता था, ऐसे में प्रतीक के स्थान पर जुबैर को डिबेट में जाने के लिए कहते लेकिन वह हमेशा इसके लिए काफी अनिच्छुक रहे. वह एक बहुत ही शांत और मीडिया से दूर रहने वाला व्यक्ति है, जो अपनी ओर ध्यान आकर्षित नहीं करना चाहता."
2017 में जब जुबैर 'अनऑफिशियल: सुब्रमण्यम स्वामी' चला रहे थे, तब उन्होंने क्विंट से बात करते हुए कहा था कि भले ही गुमनाम होकर काम करते हैं लेकिन इसके बावजूद भी वह अपने परिवार के लिए डरते हैं. उन्होंने कहा था कि "मेरा भी एक परिवार है."
सभी तरह के हेट स्पीच के खिलाफ
जुबैर की गिरफ्तारी की रात रिपब्लिक टीवी के एडिटर अर्नब गोस्वामी ने एक प्राइमटाइम शो किया जिसमें उन्होंने फैक्ट-चेकर पर आरोप लगाते हुए कहा था कि "इन्होंने इसे हिंदू धार्मिक भावनाओं को आहत करने का धंधा बना लिया है."
अल्टन्यूज ने अक्सर विपक्षी दलों द्वारा चलाए जा रहे दुष्प्रचार या फेक न्यूज का भंडाफोड़ किया है और सभी पहलुओं पर सवाल उठाया है.
इससे पहले जून में जब नूपुर शर्मा की टिप्पणी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हिंसक रूप लेने लगे, तब जुबैर ने AIMIM नेता इम्तियाज जलील का एक वीडियो ट्वीट किया जिसमें भीड़ को उकसाया गया था.
जुबैर ने अपने ट्वीट में लिखा था "यह हेट स्पीच है, प्योर और सिंपल."
हफ्तों बाद जुबैर ने इलियास शराफुद्दीन (एक मुस्लिम व्यक्ति) का एक वीडियो पोस्ट किया, जिसे ज़ी न्यूज द्वारा नियमित रूप से अपनी बहस में आमंत्रित किया गया था, इलियास शराफुद्दीन हिंदू धर्म के खिलाफ नफरत फैला रहा था.
जुबैर ने ट्वीट करते हुए लिखा "क्यों @ZeeNews @sudhirchaudhary इलियास शराफुद्दीन जैसे लोगों को आमंत्रित कर रहा है, जो एक लाइव टीवी जहां लाखों लोग बहस देख रहे होते हैं वहां पर हिंदू धर्म का अपमान करते हुए और हिंदू मान्यताओं पर हंसते हुए दिखाई दे रहा है."
रवीश कुमार ने क्विंट को बताया कि "जुबैर ने जिन लोगों का पर्दाफाश किया है, वे ही उन पर सिलेक्टिव होने का आरोप लगाते हैं."
रवीश आगे बताते हैं कि "इसके अलावा, अगर कुछ पत्रकार जुबैर को सिलेक्टिव कहते हैं, तो यह उनकी जिम्मेदारी है कि जो जुबैर कवर नहीं पा रहे उसे कवर करें, सिर्फ उसे दोष न दें. वहीं जब फेक न्यूज और हेट स्पीच की बात आती है तो जुबैर के सभी कामों की गहन जांच से पता चलेगा कि उन्होंने किसी को भी नहीं बख्शा."
गिरफ्तारी का बहाना
2020 के एक मामले के लिए दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल की साइबर यूनिट ने 27 जून को ज़ुबैर को बुलाया था.
इस केस में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो द्वारा दायर एक शिकायत के आधार पर यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) की धाराओं के तहत दिल्ली पुलिस ने जुबैर के खिलाफ मामला दर्ज किया था.
हालांकि दिल्ली हाई कोर्ट ने उसी साल सितंबर में इस मामले में पुलिस को जुबैर के खिलाफ कार्रवाई करने से रोक दिया था. इसके अलावा दिल्ली पुलिस ने इस साल मई में एक सुनवाई में उच्च न्यायालय को बताया कि जुबैर द्वारा किया गया ट्वीट "कोई संज्ञेय अपराध नहीं है".
लेकिन हाल ही में जब जुबैर को पूछताछ के लिए बुलाया गया था तब पुलिस ने जुबैर पर 2018 में किए गए एक ट्वीट के लिए आईपीसी की धारा 153 ए (शत्रुता को बढ़ावा देना) और 295 ए (जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण आचरण, धार्मिक भावनाओं को भड़काने का इरादा) के तहत तहत मामला दर्ज किया. यह जुबैर के खिलाफ छठवीं FIR थी.
ट्वीट में जुबैर ने एक होटल के बोर्ड की तस्वीर शेयर की है जिसमें 'हनीमून होटल' के बजाय 'हनुमान होटल' कर दिया गया था.
'हनुमान भक्त' के नाम से एक ट्विटर हैंडल ने ट्वीट पर दिल्ली पुलिस को टैग करते हुए कहा: "हमारे भगवान हनुमानजी को हनीमून से जोड़ना हिंदुओं का सीधा अपमान है क्योंकि वह ब्रह्मचारी हैं. कृपया उचित कार्रवाई करें."
इस ट्विटर हैंडल पर केवल एक फॉलोवर था, अब यह हैंडल मौजूद नहीं है.
उस ट्वीट के आधार पर दिल्ली पुलिस ने जुबैर के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी. दिल्ली पुलिस ने एक बयान में कहा "मोहम्मद जुबैर की उक्त पोस्ट में जो तस्वीर और शब्द हैं वह एक विशेष धार्मिक समुदाय के खिलाफ अत्यधिक उत्तेजक हैं और उन्हें जानबूझकर पोस्ट किया गया है जो लोगों के बीच नफरत को भड़काने के लिए पर्याप्त हाेने से कहीं अधिक है. यह सार्वजनिक शांति बनाए रखने के लिए हानिकारक हो सकता है."
हालांकि, जैसा कि बाद में कई सोशल मीडिया यूजर्स ने बताया कि जुबैर ने उस ट्वीट में जो तस्वीर पोस्ट की थी वह हृषिकेश मुखर्जी की कॉमेडी फिल्म किसी से ना कहना (1983) की है. रिलीज के बाद से यह फिल्म कई बार टीवी पर प्रसारित हो चुकी है.
पूजा कहती हैं कि "लेकिन पुलिस को केवल जुबैर के पहले के ट्वीट्स को खुरेदने और उन्हें पेश करने के लिए केवल एक बहाना चाहिए था."
जुबैर की गिरफ्तारी के एक दिन बाद, पीएम मोदी ने जर्मनी में G7 देशों के साथ '2022 रेजिलिएंट डेमोक्रेसीज स्टेटमेंट' पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें "ऑनलाइन और ऑफलाइन अभिव्यक्ति तथा विचारों की आजादी की रक्षा" करने का वचन दिया गया था.
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