Mothers Day 2022: आज हम आपको एक ऐसी बुजुर्ग विधवा मां के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी खुद की कोई संतान तो नहीं है, लेकिन शीला जो दूध बेचती हैं वही क्षेत्र के शिशुओं की रगों में दौड़ता है. शीला महिला सशक्तीकरण का जीता-जागता उदाहरण हैं.
विवाह के एक साल बाद ही शीला के पति की मौत हो गई. इसके बाद से वह साइकिल से गांव-गांव जाकर दूध बेचकर अपना जीवन यापन कर रही हैं. आज उनकी उम्र लगभग 63 वर्ष हो चुकी है, लेकिन उम्र को मात देकर वह आत्मनिर्भर बनीं और किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना मुनासिब समझा. गांवो में प्यार से लोग उन्हें शीला बुआ और शीला बहन कहते हैं. अब वो खुश हो कर बताती हैं कि छोटे-छोटे बच्चे मुझे अब दादी मां भी बोलने लगे है.
मशाल की तरह 'आत्मनिर्भर' का एक अनूठा उदाहरण है शीला मां
कहते हैं अगर पृथ्वी पर मां नही होती तो इस पृथ्वी पर कोई नही होता. कासगंज जनपद की सहावर तहसील के गांव खेड़ा की रहने वाली शीला देवी की शादी 1980 में हुई थी. विवाह के एक वर्ष बाद ही उनके पति की मौत हो गयी. इतनी कम उम्र में मानो उन पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा. पति की मौत के बाद शीला देवी वापस अपने पिता के घर आकर के गांव खेड़ा में रहने लगीं.
लेकिन आत्मनिर्भर मां किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती थी. उन्होंने हिम्मत दिखाते हुए अपने पिता की 4 बीघा जमीन में ही खेती-बाड़ी में हाथ बंटाना शुरू कर दिया.
पति की मौत के बाद पिता और मां का भी उठा साया
अभी धीरे-धीरे शीला देवी की जिंदगी की गाड़ी पटरी पर आई थी कि एक साल में ही उनके पिता और मां की मौत हो गई. पहले पति फिर मां-बाप की मौत ने उन्हें झकझोर कर रख दिया था. मगर शीला देवी के मजबूत अडिग इरादों ने हार नहीं मानी. अन्य महिलाओं की तरह नियति का खेल समझ शीला देवी अपने घर पर नहीं बैठीं.
जीविकोपार्जन के लिए उन्होंने एक-दो भैंसें खरीदी और फिर दूध के काम की शुरुआत की और पास के ही कस्बों में साइकिल से दूध बेचने जाने लगीं. आज वह 23 वर्ष बाद 63 साल की उम्र में भी साइकिल से घर-घर और दुकान-दुकान जाकर दूध बेचती हैं.
कुछ दूध उनकी भैसों से मिलता है तो कुछ दूध वह गांवों में पशुपालकों से खरीद लेतीं हैं और सुबह होते ही शहर की तरफ अपनी साइकिल से दूध बेचने के लिये निकल पड़ती है.
कठिन है शीला देवी की दिनचर्या का पालन करना
अगर हम शीला देवी की दिनचर्या की बात करें तो वो सर्दी हो या गर्मी रोज सुबह 4 बजे उठ जाती हैं. दूध की बड़ी कैनों को साइकिल पर लादकर 5 किलोमीटर दूर अमांपुर कस्बे में जाकर ग्राहकों को दूध बेचती हैं. फिर दोपहर ढाई बजे वापस घर आकर अपने लिए खाना बनाती हैं. उसके बाद सायं 4 बजे फिर साइकिल से गांवों में जाकर दूध खरीदना और दूध खरीदकर शाम 7 बजे वापस घर वापस आती हैं. फिर भैसों के चारे दाने से लेकर दूध निकालने तक के सारे काम शीला देवी खुद ही करतीं हैं. पति और मां-बाप की मौत के बाद शीला बुआ ने किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया. कड़ी मेहनत कर वह आत्मनिर्भर बनीं और अपने मजबूत इरादों से वो कर दिखाया, जिसको देख लोग दांतों तले उंगलियां दवा लेते हैं.
जमाना आज शीला बुआ की मिसाल देता है. 62 साल की उम्र में भी शीला बुआ उसी जोश-खरोश के साथ खुद ही साइकिल चलाकर 5 किलोमीटर दूर कस्बे में घर-घर दूध बेचने जाती हैं. वह अपने काम में गौरव महसूस करती हैं.
इन सरकारी योजनाओं का नहीं मिला लाभ
शीला मां का कहना है कि उनकी पेंशन बनी थी अब वह भी बंद हो गयी है. किसान सम्मान निधि योजना में भी रजिस्ट्रेशन कराया, लेकिन हमें अभी तक कोई लाभ नहीं मिला है, न ही आयुष्मान भारत योजना के तहत उनका कार्ड ही बना है. सिर्फ शौचालय ग्राम पंचायत की तरफ से मिला है. शीला बुआ ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और जिलाधिकारी से सरकारी योजनाओं का लाभ दिए जाने की मांग की हैं.
हर एक महिला 'रानी लक्ष्मी बाई' कहलाती है
उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग की सदस्य मिथलेश अग्रवाल कहती हैं कि हर एक महिला रानी लक्ष्मी बाई कहलाती है. जब एक बच्ची का जन्म होता है तो 'बिटिया रानी' कहलाती है लेकिन शादी होने के बाद जब वह अपने ससुराल पहुंचती है तो 'लक्ष्मी जी' के रूप में जानी जाती है. जब उस महिला के बच्चे होते हैं तो वह पूरे दिन बच्चो की परवरिश के लिये 'बाई' की तरह काम करती रहती है. हमारे समाज की हर एक महिला 'रानी लक्ष्मी बाई' कहलाती है.
(इनपुट-शुभम श्री वास्तव)
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