आजादी के लिए संघर्ष से लेकर अब तक भारत (India) में छात्र आंदोलनों का लंबा इतिहास रहा है.तब से ही देश के सामाजिक और राजनीतिक ताने-बाने में भी इसका असर देखा गया है. हमने देखा है कि इन आंदोलनों में शामिल रहे कई छात्र आज राजनेता बन गए हैं.
और ऐसा केवल भारत में नहीं हुआ है, अन्य देशों में भी हुआ है. चूंकि शांतिपूर्ण प्रदर्शन का अधिकार संविधान में दिया गया है, इसलिए छात्रों को कानूनी रूप से आंदोलनों में हिस्सा लेने की अनुमति है. लेकिन क्या उन्हें ऐसे आंदोलनों में हिस्सा लेना चाहिए?
'' कॉलेज के छात्रों को राजनीतिक आंदोलनों में हिस्सा नहीं लेना चाहिए'' इस प्रस्ताव पर चर्चा के लिए ''द क्विंट' के एडिटर इन चीफ राघव बहल की अध्यक्षता में बहस से जुड़िए 18 नवंबर, शुक्रवार को, टाटा लिटरेचर लाइव- मुंबई लिटफेस्ट के 12वें एडिशन में.
इस डिबेट में प्रस्ताव के समर्थन में हिस्सा लेंगे अवॉर्ड जीत चुके लेखक हिंडोल सेन गुप्ता और मशहूर कॉलमनिस्ट और मीडिया वेबसाइड Churn की फाउंडर शुभ्रास्था. जबकि प्रस्ताव के विरोध में होंगे बॉम्बे हाई कोर्ट के वकील अभिनव चंद्रचूड़ और लेखिका एवं ऐक्टिविस्ट गुरमेहर कौर. इस डिबेट का लाइव देखें, द क्विंट पर शाम 7 बजकर 15 मिनट पर.
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