2002 गुजरात दंगे के दौरान हुए नरोदा गाम नरसंहार मामले (Naroda Gam Massacre Case) में सभी आरोपियों को बरी किया गया. अहमदाबाद की एक स्पेशल कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है. मामले में आरोपियों की लिस्ट में गुजरात की पूर्व मंत्री और बीजेपी नेता माया कोडनानी और बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी 86 आरोपियों में शामिल थे. 86 अभियुक्तों में से 18 मौत हो चुकी है.
इस फैसले को विशेष जांच एजेंसी (SIT) मामलों के विशेष न्यायाधीश एसके बक्शी की कोर्ट ने सुनाया है.
क्या है गुजरात का नरोदा गाम मामला?
28 फरवरी 2002 को, अहमदाबाद के नरोदा गाम क्षेत्र में कुंभार वास नामक इलाके के एक मुस्लिम महोल्ले में भीड़ ने घरों में आग लगाकर 11 मुसलमानों को जलाकर मार डाला था. इसके एक दिन पहले गोधरा ट्रेन जलाने के विरोध में बुलाए गए 'बंद' के दौरान, 58 यात्री मारे गए थे, जिनमें ज्यादातर कारसेवक अयोध्या से लौट रहे थे.
नरौदा गाम में नरसंहार 2002 के नौ बड़े सांप्रदायिक दंगों के मामलों में से एक था, जिसकी एसआईटी ने जांच की और विशेष अदालतों में सुनवाई हुई.
सितंबर 2017 में बीजेपी के सीनियर लीडर (अब केंद्रीय गृह मंत्री) अमित शाह, माया कोडनानी के बचाव पक्ष के गवाह के रूप में पेश हुए थे.
कोडनानी ने अदालत से अनुरोध किया था कि उन्हें यह साबित करने के लिए बुलाया जाए कि वो नरसंहार के दौरान गुजरात विधानसभा में थीं और उसके बाद सोला सिविल अस्पताल गई थीं.
अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए सबूतों में पत्रकार आशीष खेतान द्वारा किए गए एक स्टिंग ऑपरेशन का वीडियो और प्रासंगिक अवधि के दौरान कोडनानी, बजरंगी और अन्य लोगों की कॉल डीटेल शामिल है.
दंगे में आरोपी बनाए गए लोगों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 143 (गैरकानूनी विधानसभा), 147 (दंगा), 148 (घातक हथियारों से लैस दंगा), 120 (बी) (आपराधिक साजिश) और 153 (दंगों के लिए उकसाना) के तहत आरोप लगाए गए थे. इन अपराधों के लिए अधिकतम सजा मौत है.
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