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National Girl Child Day:खेतों में ट्रैक्टर चलाकर परिवार को पाल रही किरण की कहानी

हर साल 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है.

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अक्सर लोग कहते हैं कि लड़कियां कहां भारी भरकम काम करेंगी, शायरों ने भी लड़कियों के लिए नाजुक, कोमल जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया. लेकिन उत्तर प्रदेश के कासगंज (Kasganj) की रहने वाली 19 साल की किरण ऐसे लोगों के मन में बसे धारनाओं को तोड़ रही हैं.

अपने परिवार के साथ गांव में ही रहने वाली किरण ट्रैक्टर से किसानों के खेतों की जुताई करती हैं और चारा काटने की मशीन चला करके परिवार को चला रही हैं.

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किरण के परिवार में कुल चार लोग हैं, पिता सत्यप्रकाश कश्यप, मां राम संजीवन, बड़ी बहन रिंकी की शादी हो गई है. घर चलाने से लेकर और पिता के इलाज का खर्चा अब किरण के कंधों पर है.

हर साल 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है. इस दिन को मनाने की शुरुआत साल 2009 से हुई. महिला बाल विकास मंत्रालय ने पहली बार साल 24 जनवरी 2009 को देश में राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया.

गांव के माफियाओं ने जमीन पर किया कब्जा

किरण की मां राम संजीवन बताती हैं कि पहले वो खेतों में जाकर मजदूरी करती थीं और अब अपने बीमार पति का इलाज बरेली से करवा रही हैं. गांव के ही रहने वाले कुछ दबंग लोगों ने खेत को अपने नाम करवा लिया, जिसके बाद में फैसला हुआ तो हमें कुछ पैसे मिल गए, जिससे एक पुराना टैक्टर खरीद लिया, अब उसको बेच दिया है और एक नया ट्रैक्टर लोन पर खरीद लिया है, जिसको अब उनकी बेटी किरण चलाती है और परिवार का भरण पोषण करती है.

किरण की मां कहती हैं,

जब हमारी बेटी महज 13 साल की थी, तभी से परिवार के भरण पोषण के लिए ट्रैक्टर से क्षेत्र के किसानों के खेतों पर जुताई करती है, जिस समय जुताई का काम खेतों में खत्म हो जाता है, वो चारा मशीन से गांव-गांव जाकर जानवरों के लिए चारा काटती है.

सरकारी योजनाओं का नही मिल रहा है फायदा

किरण की मां बताती हैं कि जबसे उनकी बेटी समझदार हुई है, तब से उन्हें कभी भी बेटा न होने का दुख नहीं होने दिया.

वो कहती हैं,

अब मेरे घर में मेरी बेटी ही है जो पूरे परिवार के खर्चे के साथ-साथ अपने बीमार पिता का इलाज भी करवा रही है और दो साल पहले अपनी बड़ी बहन रिंकी की शादी भी करवाई है. हमें सरकार की तरफ से मिलने वाली शादी की धनराशि भी नहीं मिला.

क्विंट हिंदी की टीम जब किरण के घर पर पहुंची, तो किरण अपने ट्रैक्टर के साथ काम करने निकल गई थी. अब किरण से मिलना था इसलिए हमारी टीम किरण के गांव से करीब चार किमी दूर श्री नगला गांव पहुंच गई. जहां हमने किरण से बात की. जह क्विंट की टीम पहुंची तो उस समय किरण पशुओं के चारा काटने की मशीन चला रही थी.

किरण कहती हैं,

घर की हालत सही न होने की वजह से हमारी पढ़ाई नहीं हो पाई है. दो साल पहले हमने नया ट्रैक्टर लोन पर खरीदा है, जिसकी अभी किस्तें भी नहीं चुका पाए हैं. ट्रैक्टर की एक तिमाही की 46400 रुपये की किस्त जाती है. पैसे इकट्ठा करके किस्तों को भरते हैं. ट्रैक्टर चलाना अब रोज की जिंदगी में शामिल है.
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वो आगे कहती हैं कि शुरुआत में लोग बातें करते थे, अब उन लोगों की बातों का कोई फर्क भी नहीं पड़ता है. जब हम काम करेंगे तभी तो खाने को मिलेगा. दो साल पहले मेरी बहन की शादी हुई है. उसमें भी सरकार की तरफ से जो पैसा मिलता है, वह भी नहीं मिला है. मैंने अपनी बहन रिंकी की शादी कर्ज लेकर की है.

मुझे वह कर्ज भी चुकाना है. कोरोना के समय हमको घर चलाने में बहुत ही दिक्कत हुई और कास्तकार के पास भी पैसे नही थे. हमारे पास राशनकार्ड भी नहीं है, ऐसे में हमें मुफ्त में मिलने वाला राशन भी नहीं मिल पा रहा है.

किरण और उसकी मां की बातों से हमें पता चला कि इस परिवार को सरकार की तरफ से चल रही योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है. जैसे की मुख्यमंत्री विवाह योजना, प्रधानमंत्री आवासीय योजना, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण, अन्न योजना, राशन कार्ड, आयुष्मान कार्ड, शौचालय इत्यादि.

जब इस बारे में क्विंट हिंदी ने दरियावगंज के ग्राम प्रधान भगवानदास से बात की तो उन्होंने बताया कि हम इस बारे में देखेंगे और कोशिश करेंगे कि इस परिवार को ज्यादा से ज्यादा सरकारी योजनाओं का लाभ दिलवाया जा सके.

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पटियाली क्षेत्र के खंड विकास अधिकारी मनीष वर्मा ने बताया कि इस परिवार के बारे में पता लगाया जायेगा, सचिव को मौके पर भेज करके जांच करवाई जायेगी और सरकारी योजनाओं का लाभ दिलवाया जाएगा.

कासगंज की जिला अधिकारी हर्षिता माथुर ने बताया कि इस परिवार के यहां पर टीम को भेजा जाएगा और अधिक से अधिक सरकारी योजनाओं का लाभ दिलवाने के लिए अधिकारियों को निर्देशित किया जाएगा और कोशिश की जाएगी कि सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सके.

इनपुट-शुभम श्रीवास्तव

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