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भारत में कोहराम मचा  रहा है दुनिया का सबसे ‘डर्टी फ्यूल’ 

दुनिया का सबसे गंदा ईंधन कहा जाने वाला यह फ्यूल कई देशों में बैन लेकिन भारत बना इसका डंपिंग जोन 

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इस बार के बजट में दिल्ली-एनसीआर को पराली के पॉल्यूशन से बचाने के लिए फंड के इंतजाम के बाद केंद्र सरकार के फैसले की खासी तारीफ हुई. हर साल पश्चिमी यूपी, पंजाब और हरियाणा के खेतों में पराली जलाने से दिल्ली की हवा खराब होने का खमियाजा दिल्ली-एनसीआर की बड़ी आबादी को भुगतना पड़ता है.

लेकिन सिर्फ दिल्ली-एनसीआर ही नहीं देश के दूसरे शहरों और कस्बों की हवा में जहर घोल रहे पेटकोक के गुनाह पर ज्यादा बात नहीं हो रही है. पेट यानी पेट्रोलियम कोक, जिसे दुनिया का सबसे ‘डर्टी फ्यूल’ कहा जाता है, सबसे ज्यादा सल्फर वाला ईंधन है और फैक्ट्रियों में इसे बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है.

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पिछले साल अक्टूबर में जब सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर, यूपी और राजस्थान, हरियाणा में पेट कोक के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया तो अचानक लोगों का ध्यान इस पर गया.

पेट कोक का सफर शुरू होता है कनाडा से, जहां कोलतार की खदानें हैं. वहां से यह अमेरिकी तटों पर पहुंचता है, जहां रिफाइनिंग करके इससे पेट्रोल और डीजल अलग कर लिया जाता है. फिर जो बच जाता है उसे कहते हैं पेटकोक, जिसे दुनिया का सबसे गंदा ईंधन कहा जाता है. चूंकि अमेरिका में अब इसके इस्तेमाल पर प्रतिबंध है. लिहाजा जलने पर भारी कार्बन, सल्फर और हैवी मेटल से हवा को जहरीला बनाने वाले इस पेट कोक को निर्यात कर दिया जाता है.

भारत और चीन पेटकोक के बड़े आयातक देश रहे हैं. लेकिन चीन ने अब इस पर सख्त प्रतिबंध लगा दिया है.लिहाजा भारत पेट कोक का डंपिंग जोन बन गया है. आज लगभग 45 देशों से भारत में पेट कोक आता है.

पेटकोक क्यों है इतना खतरनाक

पेट्रोल और डीजल की तुलना में पेट कोक में सल्फर का स्तर हजार गुना से अधिक होता है. डीजल में सल्फर का स्तर 10 पीपीएम होता है, जबकि पेटकोक में इसकी मात्रा 65,000 से 75000 पीपीएम तक होता है. फिर सवाल यह उठता है कि भारत में इतने अधिक सल्फर वाले ईंधन के इस्तेमाल की इजाजत क्यों है?

यह ठीक है कि सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर और कुछ अन्य राज्यों फैक्टरियों में ईंधन के तौर पर पेटकोक के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया है और बाकी राज्यों को भी ऐसा करने की सलाह दी है लेकिन अपने यहां प्रदूषण रोधी नियमों का पालन किस अंदाज में हो रहा है यह सबको पता है.

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इस्तेमाल की बड़ी वजह है सस्ता होना

भारत में बड़े जेनरेटरों, स्टील और सीमेंट उद्योग में पेट कोक का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है. डीजल की तुलना में सस्ता होने की वजह से पेटकोक और फर्नेस ऑयल का इस्तेमाल ये इंडस्ट्री करती हैं. हैरानी इस बात पर है कि भारी प्रदूषण फैलाने वाले पेटकोक के आयात पर कोई प्रतिबंध नहीं है. इस पर टैक्स छूट मिलती है और जीएसटी के तहत इस पर किए गए खर्च पर रिफंड मिलता है.

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चूंकि कोयला महंगा है इसलिए कुछ दिनों पहले तक उद्योग चूरा कोयला का इस्तेमाल कर रहे थे जो कि इससे सस्ता है. लेकिन इस बीच,चीन में पेटकोक पर बैन लग गया और इसके दाम में भारी गिरावट आ गई. लिहाजा भारत में बड़े पैमाने पर इसका आयात शुरू हो गया. आज लगभग 45 देशों से भारत में पेटकोक आता है. पिछले कुछ वर्षों में देश में पेट कोक का इस्तेमाल जबरदस्त ढंग से बढ़ा है. एक आंकड़े के मुताबिक 2010-11 में देश में लगभग 10 लाख टन पेटकोक का आयात होता था लेकिन 2017-18 में यह बढ़ कर 44 लाख टन पहुंच चुका था.

महंगे ईंधन की परेशानी से जूझ रहे उद्योगों की समस्या और देश में बढ़ते वायु प्रदूषण से हर साल होने वाली 12 लाख मौतों के बीच बचाव विकल्प क्या है? विशेषज्ञों का मानना है, या तो हम अपना पेट कोक इस्तेमाल करें और बाहर से इसे यहां न आने दें. या फिर नेचुरल गैस और बिजली का इस्तेमाल करें. लेकिन बिजली अभी इतनी सस्ती नहीं है. लिहाजा इंडस्ट्री सस्ता होने की वजह से पेटकोक का ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं.

बचाव का क्या हो रास्ता

पेटकोक इस्तेमाल को काबू करने का एक रास्ता यह हो सकता है कि इसे उन्हीं उद्योगों में इस्तेमाल की इजाजत दी जाए, जहां उत्सर्जन काबू करने का मैकेनिज्म लागू हो. सीमेंट उद्योग में इसके इस्तेमाल की इजाजत इसलिए दी गई है कि इसके खंगर प्लांट के उत्सर्जन मानक लागू हैं. दुनिया भर में सबसे ज्यादा पेट कोक का इस्तेमाल सीमेंट उदयोग में ही होता है.

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सच तो यह है कि देश में पेटकोक के इस्तेमाल पर कोई ठोस और साफ पॉलिसी नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआ, हरियाणा, राजस्थान और यूपी में इस पर बैन लगा दिया है जबकि आंध्र प्रदेश, तेलगांना, गुजरात और कर्नाटक जैसे राज्यों ने पेटकोक के इस्तेमाल की इजाजत दे रखी है. ऐसे हालात में भारी सल्फर की मौजूदगी वाले पेटकोक का इस्तेमाल देश में कैसे रुकेगा.

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