पेट्रोल-डीजल के दामों में हुई कमी को देश की जनता के लिए दिवाली गिफ्ट बताया जा रहा है. पूछा जा रहा है कि केंद्र सरकार (Central Government) के उस फैसले का आप स्वागत करते हैं या नहीं, जो पेट्रोल-डीजल (Petrol-Diesel) अब सस्ता हो गया है.
केंद्र सरकार के साथ-साथ कई राज्य सरकारों ने भी वैट घटाने की घोषणा की है. उस संदर्भ में कहा जा रहा है कि यह डबल दिवाली गिफ्ट है.
गैर-बीजेपी सरकारों की ओर उंगलियां दिखाई जा रही हैं कि वे अपने प्रदेश के लोगों को डबल दिवाली गिफ्ट देने में कमी क्यों कर रही हैं. सारी कवायद का मतलब यहीं आकर सिमट जाता है- डबल इंजन की सरकारें डबल दिवाली गिफ्ट दे रही हैं और सिंगल इंजन वाली गैर-बीजेपी सरकारें कोताही दिखा रही हैं.
सच्चाई क्या है?
उत्तर प्रदेश में डबल दिवाली गिफ्ट के बाद पेट्रोल और डीजल दोनों 12 रुपये प्रति लीटर सस्ता हुआ है. अब कीमत घटकर सौ रुपये प्रति लीटर से कम हो गयी है. मनोवैज्ञानिक तौर पर यूपी के लोग इसे महसूस करेंगे, जहां फरवरी-मार्च में चुनाव होने जा रहा है.
29 विधानसभा और 3 लोकसभा की सीटों पर हुए चुनाव के बाद इस फैसले को भूल-सुधार के तौर पर देखा जा रहा है. गोवा, कर्नाटक, और गुजरात में भी जल्द चुनाव होने वाले हैं और यहां भी केंद्र-राज्य सरकारों के दिवाली गिफ्ट का असर पेट्रोल की कीमत में 12 रुपये प्रति लीटर और डीजल में 17 रुपये प्रति लीटर कमी के तौर पर सामने है.
पहले महंगाई रोकने के लिए तेल पूल घाटा था, आज बेफिक्र तेल पूल मुनाफा है
प्रश्न यह है कि डबल दिवाली गिफ्ट से आम जनता पर पेट्रोल-डीजल के कारण महंगाई की मार कम हो जाएगी? ऐसा नहीं लगता. फर्क सिर्फ इतना ही है कि 100 रुपये से अधिक कीमत होगी या फिर थोड़ा कम. असल बात यह है कि केंद्र और राज्य सरकारों ने पेट्रोल-डीजल को कमाई का स्रोत बना लिया है. इस नजरिए में बदलाव आने जा रहा है या नहीं?
पेट्रोल-डीजल पर पहले की सरकारों की सोच और अब की सरकार की सोच में बहुत बड़ा फर्क है. पहले सरकार इस पर नियंत्रण रखती थी ताकि महंगाई पर नियंत्रण रहे.
इसके लिए अंतरराष्ट्रीय मूल्य के उतार-चढ़ाव से बचने के लिए केंद्र सरकार ने बजट में ही प्रावधान कर रखा था. तेल पूल घाटा हुआ करता था. मगर, 2010 और 2014 में क्रमश: पेट्रोल और डीजल के मूल्य डी-कंट्रोल कर देने या बाजार के हवाले कर देने के बाद स्थिति बदल गयी. अब सरकार तेल पूल घाटे से निकलकर तेल पूल मुनाफे की नीति पर चली आयी. सरकार तेल से कमाई करने लगी है. जाहिर है महंगाई की फिक्र पर मुनाफे की फिक्र भारी पड़ गयी.
मोदी सरकार में पेट्रोल-डीजल पर बढ़ती गयी एक्साइज ड्यूटी
आपको यह याद दिलाने की जरूरत है कि 2014 में पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 9.48 रु/ली और डीजल पर 3.56रु/ली थी. एक्साइज ड्यूटी में ताजा कटौती से पहले तक यह पेट्रोल पर 32.90 रुपये प्रति लीटर थी जबकि डीजल पर 31.80 रुपये प्रति लीटर. 2014 से 2020 के दौरान नरेंद्र मोदी की सरकार में पेट्रोल पर 23.42 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 28.24 रुपये प्रति लीटर उत्पाद शुल्क में बढोतरी हुई.
इस तथ्य पर नजर डालना जरूरी है कि पेट्रोल पर 5 रुपये और डीजल पर 10 रुपये प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी घटा देने के बावजूद यह वर्तमान में कितना लिया जा रहा है और 2014 के मुकाबले अब की स्थिति क्या है-
ताजा शुल्क कटौती लागू होने के बाद भी उत्पाद शुल्क में यह बढ़ोतरी पेट्रोल और डीजल पर क्रमश: 18.42 रु/ली और 18.24 रु/ली रह गयी है. मतलब यह कि मोदी सरकार 2014 के मुकाबले अब भी तीन गुणा से ज्यादा पेट्रोल पर और लगभग 6 गुणा डीजल पर उत्पाद शुल्क वसूल रही है. बोलचाल की भाषा में कहें तो 2014 के मुकाबले केंद्र सरकार 18 रुपये प्रति लीटर से ज्यादा पेट्रोल और डीजल पर कमाई कर रही है और जनता के पॉकेट से रकम निकाल रही है.
जब कच्चा तेल महंगा था तो सस्ता था देश पेट्रोल-डीजल
जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल 112 डॉलर प्रति बैरल था तब यूपीए सरकार में पेट्रोल 65.76 रुपये प्रति लीटर बिक रहा था. आज कच्चा तेल 85 डॉलर प्रति बैरल के करीब है और पेट्रोल की कीमत 100 रुपये प्रति लीटर से ज्यादा हैं जबकि डीजल लगभग 86 रुपये प्रति लीटर से ज्यादा.
नरेंद्र मोदी की सरकार में कच्चे तेल, पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर एक नजर-
केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने संसद में जो जानकारी दी थी उसके मुताबिक 31 मार्च 2021 तक केंद्र सरकार ने पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी यानी उत्पाद शुल्क से 1 लाख करोड़ से ज्यादा और डीजल पर सवा दो लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की कमाई की. यानी सवा तीन लाख करोड़ रुपये की कमाई पेट्रोल-डीजल से की गयी.
पेट्रोल, डीजल और गैस पर एक्साइज ड्यूटी से कुल एक्साइज ड्यूटी 13,64,524 करोड़ वसूली गयी थी जो 2020-21 के जनवरी महीने तक यह बढ़कर 24,23,020 करोड़ रुपये हो गयी, यानी 77 फीसदी की बढ़ोतरी हुई.
पेट्रोल-डीजल को GST के दायरे में लाना वक्त की जरूरत
जब केंद्र सरकार पेट्रोल और डीजल पर मोटा टैक्स वसूल रही है तो वह राज्य सरकारों को भी ऐसा करने से नहीं रोक सकती. लिहाजा राज्य सरकारों का भी रुख वही है जो केंद्र सरकार का है. आज भी पेट्रोल-डीजल का बेसिक प्राइस 50 रुपये से कम के स्तर पर बना हुआ है.
ऐसे में यह दुगुने दाम पर बिके तो कम से कम इसे दिवाली गिफ्ट तो नहीं कहा जाएगा. मुनाफाखोरी का ऐसा उदाहरण रखा गया है जो निजी क्षेत्र के लोगों को निर्बाध मुनाफा कमाने का नैतिक बल देता है
पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने से क्यों बचाया गया?
जीएसटी के दायरे में आते ही पेट्रोल-डीजल पर कमाई का दायरा बंध जाता है और इसकी अधिकतम कीमत भी तय हो जाती है, जो किसी भी सूरत में 55 से 60 रुपये से अधिक नहीं हो सकती. लेकिन, यह व्यवस्था लागू करने से पहले केंद्र सरकार को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि राज्य सरकारों को इस व्यवस्था से जो नुकसान होने वाला है उसकी भी भरपाई केंद्र सरकार को करनी होगी.
जाहिर है कि सिर्फ राजनीतिक नारे गढ़ने के लिए दिवाली गिफ्ट जैसे आकर्षक पैकेजिंग के साथ प्रस्तुत होने के बजाए ठोस समाधान लेकर जनता के सामने आने की जरूरत है. इसके लिए देशव्यापी स्तर पर सभी प्रांतीय सरकारों के साथ और सर्वदलीय बैठक कर राष्ट्रीय नीति बनाने की पहल की जानी चाहिए ताकि पेट्रोल-डीजल की कीमतों को न्याय संगत बनाया जा सके.
(यह एक ओपिनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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