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फूलन:जिसके नाम से कांपते थे डाकू, उसे सियासतदानों ने नेता बना दिया

फूलन को बचपन से ही जातिगत भेदभाव का शिकार होना पड़ा

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एक मासूम लड़की, जिसकी 11 साल की उम्र में 20 साल बड़े शख्स से शादी कर दी जाती है, फिर वो गैंगरेप का शिकार होती है. अपने ऊपर हुए जुर्म का बदला लेने के लिए खुद हथियार उठाकर चंबल की डाकू बन जाती है. ये कहानी है चंबल की रानी, बीहड़ की दहशत फूलन देवी की, जिसके नाम भर से कांपते थे चंबल के बड़े-बड़े डाकू.

फूलन 11 सालों तक जेल की गुमनाम जिंदगी और फिर लोकतंत्र के मंदिर संसद भवन तक का सफर तय करती हैं. फूलन, जिसे बैंडिट क्वीन के नाम से जाना जाता है.

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फूलन देवी भले ही कभी दहशत का पर्याय मानी जाती हो , लेकिन उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुलायम सिंह यादव ने खुद समाजवादी पार्टी के टिकट पर फूलन को मिर्जापुर से चुनाव लड़वाया. फूलन जीतकर संसद भवन भी पहुंचीं, लेकिन अतीत का साया उनके साथ-साथ चलता रहा. संसद भवन से महज कुछ ही दूरी पर फूलन की हत्या कर दी गई. 
फूलन को बचपन से ही जातिगत भेदभाव का शिकार होना पड़ा
फूलन, जिसके नामा से कांपते थे बड़े-बड़े डकैत
(फोटो: ट्विटर)

11 साल की उम्र में हुई शादी

फूलन देवी का जन्म 10 अगस्त, 1963 को उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव गोरहा का पूर्वा में हुआ था. फूलन को बचपन से ही जातिगत भेदभाव का शिकार होना पड़ा. फूलन गरीबी और लोगों के बुरे व्यवहार का शिकार बनी, लेकिन उसकी जिंदगी उस वक्त बिल्कुल बदल गई, जब 11 साल की छोटी सी उम्र में उसकी शादी 20 साल बड़े शख्स से कर दी गई. शादी के बाद शुरू हुआ फूलन का मानसिक और शारीरिक शोषण.

शादी के तुरंत बाद इतनी छोटी सी उम्र में ही फूलन को दुराचार का शिकार बनना पड़ा. इसके बाद वो अपनी मां के घर भागकर वापस आ गई. अपने घरवालों के साथ मजदूरी करने लगी.

फूलन को बचपन से ही जातिगत भेदभाव का शिकार होना पड़ा
11 साल की उम्र में कर दी गई थी फूलन की शादी
(फोटो: ट्विटर)

जब फूलन बनी डकैत

फूलन जब 15 साल की थी, तब गांव के ठाकुरों ने उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया. इसके बाद न्याय पाने के लिए उन्होंने कई दरवाजे खटखटाए, लेकिन हर तरफ से उन्हें निराशा ही हाथ लगी. इसके बाद जो हुआ, उसने फूलन को डकैत फूलन देवी बना दिया.

इंसाफ के जूझती फूलन के गांव में कुछ डकैतों ने हमला किया. इस हमले में डकैत फूलन को उठाकर ले गए और उन्होंने भी उसके साथ कई बार दुष्कर्म किया. इसके बाद वहीं पर फूलन की मुलाकात विक्रम मल्लाह से हुई और इन दोनों ने मिलकर अलग डाकूओं का गिरोह बनाया.

22 लोगों को एक साथ मौत के घाट उतारा

फूलन तब सुर्खियों का हिस्सा बनीं, जब 1981 में उन्होंने कथित तौर पर सवर्ण जाति के 22 लोगों को मौत के घाट उतार दिया. यूपी और मध्य प्रदेश की पुलिस लंबे समय तक फूलन को पकड़ने में नाकाम रही. कहा जाता है कि उस दौर में पुलिस भी फूलन के नाम से खौफ खाती थी.

साल 1983 में इंदिरा गांधी सरकार ने फूलन देवी के सामने आत्मसमर्पण करने का प्रस्ताव रखा, जो उन्होंने मान लिया, क्योंकि उस वक्त तक उनके करीबी विक्रम मल्लाह की पुलिस मुठभेड़ में मौत हो चुकी थी. इस घटना ने फूलन को तोड़कर रख दिया था.
फूलन को बचपन से ही जातिगत भेदभाव का शिकार होना पड़ा
कैसे फूलन बनी डकैत
(फोटो: ट्विटर)
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जब फूलन ने किया आत्मसमर्पण

आत्मसमर्पण के लिए भी फूलन ने अपनी शर्तें रखी थीं. उन्‍होंने इसी शर्त पर आत्मसमर्पण किया था कि उन्‍हें फांसी की सजा नहीं दी जाएगी. साथ ही उनके गिरोह के लोगों को 8 साल से ज्यादा की सजा नहीं दिए जाने की शर्त भी थी. सरकार ने फूलन की सभी शर्ते मान लीं. शर्तें मान लेने के बाद ही उन्‍होंने अपने साथियों के साथ आत्मसमर्पण किया था.

11 साल तक फूलन जेल में रहीं

11 सालों तक फूलन जेल में रहीं, इसके बाद साल 1994 में उन्‍हें रिहा किया. दो साल बाद 1996 में फूलन ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा और वो जीतकर संसद पहुंच गईं.

फूलन को बचपन से ही जातिगत भेदभाव का शिकार होना पड़ा
आत्मसमर्पण के लिए भी फूलन ने अपनी शर्तें रखी थीं.
(फोटो: ट्विटर)
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2001 में हुई हत्या

बीहड़ के जंगलों में सालों गुजारने वाली फूलन को पुलिस कभी पकड़ नहीं पाई, लेकिन जब वो शहर में रहने लगीं, तो कातिलों का आसान शिकार बन गईं. 25 जुलाई, 2001 फूलन का दिनदहाड़े कत्ल कर दिया गया.

दिल्ली में शेर सिंह राणा ने फूलन देवी के आवास पर गोली मारकर हत्या कर दी थी. उनकी हत्या उस वक्त की गई, जब वो अपराध का रास्ता छोड़कर आम जिंदगी जीने के सपने देख रही थीं.

अपनी जिंदगी का ज्यादातर वक्त जंगलों में गुजारने वाली फूलन के लिए दिल्ली का आलीशान बंगला अशुभ साबित हुआ और उसी घर में फूलन की हत्या कर दी गई.

खुद को राजपूत गौरव के लिए लड़ने वाला योद्धा बताने वाले शेर सिंह राणा ने फूलन की हत्या के बाद दावा किया था कि उसने 1981 बेहमई में मारे गए सवर्णों की हत्या का बदला लिया है.

फूलन के नाम पर बनी फिल्म

डायरेक्टर शेखर कपूर ने फूलन देवी के जीवन पर फिल्म बैंडिट क्वीन भी बनाई थी, जिस पर खुद फूलन ने आपत्ति जताई थी. इसके बाद कई कट्स के साथ इस फिल्म को रिलीज कर दिया गया. इस फिल्म के बाद फूलन पूरी दुनिया में जानी जाने लगीं.

टाइम मैग्जीन ने फूलन को दुनिया की 15 विद्रोही महिलाओं में चौथे पायदान पर जगह दी थी. कहा जाता है कि फूलन ने कानून जरूर तोड़ा था, लेकिन उसने दबंगों से बगावत की थी, उसके साथ जुर्म करने वालों से बदला लिया था.

सालों पहले खुद फूलन ने एक इंटरव्यू में कहा था, मेरे साथ समाज के एक वर्ग ने ज्यादती की, जिसका बदला मैंने लिया.

फूलन गरीब परिवार से थीं, पिछड़ी जाति की थीं. उनकी जिंदगी में कांटे ही कांटे थे, समाज के बिछाए कांटों के बीच फूलन ने हालात को देखते हुए वो रास्ता बनाया, जो उसे अपराध की दुनिया की तरफ ले गया.

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