प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में इस बार कोरोना वायरस के मुद्दे पर बात की है. पीएम मोदी ने कहा, ''कोरोना वायरस ने दुनिया को कैद कर दिया है. ये ज्ञान, विज्ञान, गरीब, संपन्न, कमजोर, ताकतवर हर किसी को चुनौती दे रहा है. ये न तो राष्ट्र की सीमाओं में बंधा है, न ही ये कोई क्षेत्र देखता है और न ही कोई मौसम.''
पीएम मोदी ने कहा,
- सबसे पहले मैं सभी देशवासियों से क्षमा मांगता हूं और मेरी आत्मा कहती है कि आप मुझे जरूर क्षमा करेंगे क्योंकि कुछ ऐसे निर्णय लेने पड़े हैं जिसकी वजह से आपको कई तरह की कठिनाइयां उठानी पड़ रही हैं
- बहुत से लोग मुझसे नाराज भी होंगे कि ऐसे कैसे सबको घर में बंद कर रखा है. मैं आपकी दिक्कतें समझता हूं, आपकी परेशानी भी समझता हूं लेकिन भारत जैसे 130 करोड़ की आबादी वाले देश के पास, कोरोना के खिलाफ लड़ाई के लिए, ये कदम उठाए बिना कोई रास्ता नहीं था
- कुछ लोगों को लगता है कि वो लॉकडाउन का पालन कर रहे हैं तो ऐसा करके वो मानो जैसे दूसरों की मदद कर रहे हैं, ये भ्रम पालना सही नहीं है
- ये लॉकडाउन खुद के बचने के लिए है. आपको अपने को बचाना है, अपने परिवार को बचाना है
- जो हमारे फ्रंट लाइन सोल्जर्स हैं. खासकर हमारी नर्सेज बहनें हैं, नर्सेज का काम करने वाले भाई हैं, डॉक्टर हैं, पैरा मेडिकल स्टाफ हैं, ऐसे साथी जो कोरोना को पराजित कर चुके हैं. आज हमें उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए
- धन और किसी खास कामना को लेकर नहीं, बल्कि मरीज की सेवा के लिए, दया भाव रखकर कार्य करता है, वो सर्वश्रेष्ठ चिकित्सक होता है
- मुझे कुछ ऐसी घटनाओं का पता चला है जिनमें कोरोना वायरस के संदिग्ध या फिर जिन्हें होम क्वॉरंटीन में रहने को कहा गया है, उनके साथ कुछ लोग बुरा बर्ताव कर रहे हैं. ऐसी बातें सुनकर मुझे अत्यंत पीड़ा हुई है, यह दुर्भाग्यपूर्ण है
- कोरोना वायरस से लड़ने का सबसे कारगर तरीका सोशल डिस्टेंसिंग है, लेकिन हमें ये समझना होगा कि सोशल डिस्टेंसिंग का मतलब सोशल इंटरेक्शन को खत्म करना नहीं है. वास्तव में ये समय अपने सभी पुराने सामाजिक रिश्तों में नई जान फूंकने का है, रिश्तों को तरो-ताजा करने का है
पीएम मोदी ने कहा, ‘’एक प्रकार से ये समय हमें ये भी बताता है कि सोशल डिस्टेंसिंग बढ़ाओ और इमोशनल डिस्टेंस घटाओ.’’
इसके अलावा पीएम मोदी ने कहा, ''हमारे यहां कहा गया है- 'एवं एवं विकार,अपी तरुन्हा साध्यते सुखं', यानी बीमारी और उसके प्रकोप से शुरुआत में ही निपटना चाहिए. बाद में रोग असाध्य हो जाते हैं, तब इलाज भी मुश्किल हो जाता है. आज पूरा हिंदुस्तान, हर हिंदुस्तानी यही कर रहा है.''
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