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क्या ‘मेक इन इंडिया’ का शेर अभी सो रहा है?

मोदी सरकार के मेक इन इंडिया प्रोग्राम का 4 साल बाद क्या है हाल

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वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज

कैमरा पर्सन: शिव कुमार मौर्या

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  • 25 सितंबर 2014
  • एक नई सरकार और आत्मविश्वास से लबरेज प्रधानमंत्री
  • उनका 40 मिनट से लंबा भाषण और फौलादी बब्बर शेर

कुछ ऐसे लॉन्च हुआ था मोदी सरकार का 'मेक इन इंडिया' प्रोग्राम. इस प्रोग्राम को प्रधानमंत्री ने देश-विदेश, हर जगह खूब प्रचारित किया. मेक इन इंडिया के तहत सपना दिखाया गया था कि बड़ी-बड़ी विदेशी कंपनियां भारत आएंगी और यहां मैन्युफैक्चर करेंगी. युवाओं को रोजगार मिलेगा और स्वरोजगार के भी अवसर पैदा होंगे. आम आदमी सपने पाल रहा था कि भारत अब मैन्युफैक्चरिंग हब बनने जा रहा है

सपने को पूरा करने के लिए निवेश की जरूरत

लेकिन इस सपने को पूरा करने के लिए चाहिए निवेश यानी इंवेस्टमेंट-देसी या विदेशी. दोनों की ही हालत कुछ खास ठीक नहीं है. पहले बात करते हैं FDI यानी फॉरेन डायरेक्ट इंवेस्टमेंट की. जिसके हालिया आंकड़े निराश करने वाले हैं. साल 2017-18 में एफडीआई की ग्रोथ रेट सिर्फ 3 परसेंट रही है.

ये पिछले 5 साल में एफडीआई की सबसे कम ग्रोथ रेट है. आंकड़े बताते हैं कि अक्टूबर 2014 से मई 2016 के बीच सिर्फ 1.6 फीसदी फ्रेश एफडीआई आया बाकी पुराने प्रोजेक्ट के विस्तार के लिए. मेक इन इंडिया के तहत कुल 25 सेक्टर को सेलेक्ट किया था. इन सेक्टर्स के लिए भी विदेशी निवेशकों का उत्साह कमजोर ही रहा

मतलब साफ है कि भारत के बाजार पर विदेशी निवेशक फिलहाल भरोसा नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि वो जनता की तरह सिर्फ वादे नहीं समझते हैं. उन्हें जमीनी स्तर पर अपने निवेश पर रिटर्न का भरोसा होना चाहिए

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प्राइवेट इंवेस्टमेंट के क्या हाल हैं?

अब बात करते हैं देसी निवेश यानी प्राइवेट इंवेस्टमेंट की, प्राइवेट निवेश के प्रस्तावों को ट्रैक करने वाली संस्था CMIE के मुताबिक, 2017 में निवेश प्रस्ताव में इससे पिछले साल के मुकाबले करीब 40 परसेंट की कमी आई. 2015 और 2016 में कुछ ऐसा ही हाल रहा, कम निवेश का ही असर देखिए कि पिछले चार साल में मैन्यूफेक्चरिंग सेक्टर रेंग रहा है. ये वो सेक्टर है, जिसकी बुनियाद पर मेक इन इंडिया टिका हुआ है.

जब प्रधानमंत्री आए, तो उनकी सरकार के पहले साल यानी 2014-15 से 2015-16 के बीच मैन्युफेक्चरिंग ग्रोथ 2.8 पर्सेंट रही. ये वो साल था, जब मेक इन इंडिया का नारा पूरे शबाब पर था. इसके बाद ग्रोथ थोड़ी बढ़ी, तो लगा कि हालात बदल रहे हैं. उसके अगले साल में ये करीब साढ़े 4 परसेंट तक पहुंच गया. लेकिन इसके बाद फिर गियर फिसल गया और ग्रोथ रेट लुटकर सवा 3 फीसदी तक रह गई

नौकरियों के हाल क्या हैं?

अब नौकरियों का हाल देख लीजिए, आंकड़े तो हर रोज नए-नए आ रहे हैं. लेकिन एक नमूने से आप बेरोजगारी का हाल समझ जाएंगे. हाल ही में भारतीय रेलवे में लोकोमोटिव पायलट समेत रेलवे के कई पोस्ट के लिए

90 हजार वैकेंसी निकली थी और आवेदन करने वाले थे 3 करोड़ लोग. आवेदकों में दसवीं पास से लेकर बीए, बीटेक, बीकॉम से लेकर पीएचडी तक की डिग्री हासिल करने वाले युवा शामिल थे. अब इससे आगे कुछ कहने की जरूरत है

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