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बिरसा मुंडा: अंग्रेजों से आदिवासी अस्मिता की लड़ाई लड़ने वाला नायक

आज बिरसा मुंडा की जयंती है, प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर याद किया

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भारत
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झारखंड के लिए बिरसा मुंडा वैसे ही हैं जैसे कोई भगवान. लोग घरों में उनकी तस्वीर रखते हैं. बाकी देवी-देवताओं के साथ उनकी पूजा करते हैं. आज उन्हीं बिरसा मुंडा की जयंती है. 15 नवंबर 1875 को झारखंड के रांची में उनका जन्म हुआ था.

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इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करते हुए लिखा, भगवान बिरसा मुंडा जी को उनकी जयंती पर शत-शत नमन. वे गरीबों के सच्चे मसीहा थे, जिन्होंने शोषित और वंचित वर्ग के कल्याण के लिए जीवनपर्यंत संघर्ष किया. स्वतंत्रता आंदोलन में उनका योगदान और सामाजिक सद्भावना के लिए किए गए उनके प्रयास देशवासियों को सदैव प्रेरित करते रहेंगे."

बिरसा मुंडा का संघर्ष

बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी. लेकिन उनके संघर्ष के आयाम कई थे. अंग्रेजों की चाल उन्होंने बहुत जल्द समझ ली थी. अंग्रेज आदिवासियों की जल-जंगल-जमीन को हड़पना चाहते थे. सो मुंडा ने उनके जंगल कानून का पुरजोर विरोध किया. अंग्रेज सरकार को ये मंजूर नहीं हुआ और उन्हें 1895 में जेल में डाल दिया गया. दो साल की जेल हुई थी, हालांकि बाद में उन्हें जल्दी रिहा कर दिया गया. फिर मुंडा के नेतृत्व में आदिवासियों ने थानों पर हमला बोला.

एक तरफ तो बिरसा मुंडा को गुलामी मंजूर नहीं थी. दूसरी तरफ उन्हें आदिवासी समाज और संस्कृति की बेकद्री बर्दाश्त नहीं हो रही थी. इसलिए मिशन स्कूल को छोड़ दिया. उनके प्रभाव में ढेर सारे आदिवासी जो ईसाई बन चुके थे वापस अपने धर्म में लौटने लगे.

अंग्रेजों के पास बंदूकें थीं लेकिन बिरसा और उनके साथी तीर कमान से मुकाबला करते रहे. ऐसी कई मुठभेड़ हुई जिसमें बड़ी संख्या में आदिवासियों की मौत हुई. बिरसा फिर गिरफ्तार कर लिए गए. लेकिन झारखंड में आजादी की जो लौ मुंडा ने जलाई वो ज्वाला बन चुकी थी. अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह और तेज हो गया. महज 25 साल की उम्र में रांची की जेल में बिरसा की मौत हो गई. हालांकि 9 जून, 1900 को उनकी मौत कैसे हुई, ये सस्पेंस आज तक खत्म नहीं हुआ.

बिरसा को भगवान मानने लगे लोग

एक तरफ तो बिरसा मुंडा अंधविश्वास के प्रबल विरोधी थे, दूसरी तरफ उनके प्रति ऐसी आस्था थी कि लोग उन्हें भगवान का ही अवतार मानने लगे थे. जैसे ये मान्यता थी कि अगर बिरसा मुंडा किसी को छू लें तो बीमारी दूर हो जाती है.

मुंडा समाज को बचाने के लिए न सिर्फ बाहर के दुश्मनों से लड़ रहे थे बल्कि अपने समाज के अंदर की बुराइयों को भी दूर करने की कोशिश कर रहे थे. तीर कमान के साथ नजर आने वाले बिरसा बेवजह हिंसा के विरोधी थे. अपने समाज को नशे से दूर रहने की सलाह देते थे.

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