ADVERTISEMENTREMOVE AD

POCSO के तहत यौन अपराधों के लिए "स्किन टू स्किन" संपर्क जरूरी नहीं : SC का फैसला

बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने फैसले में माना था कि POCSO अपराध के लिए स्किन टू स्किन संपर्क आवश्यक है

Published
भारत
2 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए 18 नवंबर को फैसला सुनाया कि यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत अपराध मानने के लिए "स्किन टू स्किन" संपर्क आवश्यक नहीं है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि यौन उत्पीड़न मानने का सबसे महत्वपूर्ण आधार यौन इरादा है, न कि बच्चे के साथ स्किन टू स्किन का संपर्क.

गौरतलब है कि बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने फैसले में माना था कि POCSO अपराध के लिए त्वचा से त्वचा का संपर्क आवश्यक है और उन दो आरोपियों को दोषी ठहराया और दो साल की जेल की सजा दी जिन्होंने एक नाबालिग के शरीर को गलत तरीके से छुआ था.

"स्पर्श का क्या मतलब है’?

सुप्रीम कोर्ट में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने बॉम्बे HC के फैसले का विरोध करते हुए तर्क दिया है कि HC के इस व्याख्या का मतलब होगा कि "कोई सर्जिकल ग्लव्स पहनकर एक बच्चे का शोषण कर सकता है और बच निकल सकता है". उन्होंने कहा कि इसे मिसाल के तौर पर लिया जाएगा और इसका रिजल्ट 'विनाशकारी' होगा.

दूसरी तरफ वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने आरोपियों की तरफ से तर्क दिया और कहा कि, "यौन इरादे के लिए शारीरिक संपर्क की आवश्यकता होती है, लेकिन इस मामले में, कपड़ों को छुआ गया था, त्वचा से नहीं"
0

मालूम हो कि POCSO अधिनियम यौन हमले को परिभाषित करता है. जब कोई "यौन इरादे से बच्चे की वजाइना, पीनस, एनस या ब्रेस्ट को छूता है या बच्चे को ऐसे व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्ति की वजाइना, पीनस, एनस या ब्रेस्ट को छूने को मजबूर करता है, या यौन इरादे से ऐसा कार्य करना जिसमें पेनेट्रेशन के बिना शारीरिक संपर्क शामिल है, तब इसे यौन हमला कहा जायेगा".

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान स्पर्श की व्याख्या पर सवाल उठाया था. कोर्ट ने कहा, "स्पर्श का क्या मतलब है, क्या बस एक स्पर्श? भले ही आपने कपड़े का एक टुकड़ा पहना हो, वो कपड़ों को छूने की कोशिश नहीं कर रहे हैं. हमें स्पर्श को उस अर्थ में देखना चाहिए जो संसद का इरादा था."

जस्टिस यूयू ललित, एसआर भट और बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने अपने फैसले में कहा-

"हमने माना है कि जब विधायिका ने स्पष्ट इरादा व्यक्त किया है, तो अदालतें प्रावधान में अस्पष्टता पैदा नहीं कर सकती हैं. यह सही है कि अदालतें अस्पष्टता पैदा करने में अति उत्साही नहीं हो सकती हैं"
ADVERTISEMENTREMOVE AD

गौरतलब है कि भारत के अटॉर्नी जनरल, राष्ट्रीय महिला आयोग, महाराष्ट्र राज्य और यूथ बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने बॉम्बे HC के आदेश को चुनौती देते हुए कहा था कि इस तरह की दृष्टिकोण का पूरे समाज और जनता पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा.

खास बात यह है कि मामले में दोषी की ओर से वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा न्याय मित्र के रूप में पेश हुए, जबकि उनकी बहन और वरिष्ठ वकील गीता लूथरा राष्ट्रीय महिला आयोग की ओर से पेश हुईं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बार एक भाई-बहन ने भी एक-दूसरे का विरोध किया है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×