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प्रिया के 26 सेकेंड ने स्कूल वाली मोहब्बत के कई साल जिंदा कर दिए

आपको भी याद होंगे स्कूल वाली मोहब्बत के कई फसाने

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प्रिया. प्रिया प्रकाश वारियर. स्कूल यूनिफॉर्म में एनुअल फंक्शन के दौरान अपनी मोहक मुस्कुराहट बिखेरती लड़की. भवों की उचकन में थिरकन भरकर युवा दिलों के लिए वक्त को थाम देने का काम करने वाली 16-17 बरस की मासूमियत. नैनों की अठखेली के जवाब में नैन अटकाता वो लड़का भी तो. और न जाने कितनी पीढ़ियों को अपने स्कूली दिनों की यादों में डुबो देने वाली अल्हड़, शोख, शरारती स्कूल वाली मोहब्बत. ये यादों का ही तो वो सिलसिला है जो 26 सेकेंड के वीडियो से शुरू हुआ और 72 धड़कनों वाले दिल को झकझोर गया. जानते हैं प्रिया या फिल्म सैराट के आर्ची-पर्शया की स्कूली मोहब्बत सबको क्यों लुभाती है?

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चलते हैं जरा स्कूल के उन दिनों में...

ऊपर जो सवाल है उसके जवाब के लिए स्कूल के दिनों में ही लौटना होगा. चलिए, आहिस्ता से देहरी लांघते हैं और लौट चलते हैं 5, 10, 15, 20 या उससे भी ज्यादा बरस पीछे. और अगर आप अब भी स्कूल में हैं तो बस आगे पढ़ते रहिए कई और तजुर्बे जुटाने के लिए!

याद है, वो रुमाल जो किसी बहाने से लिया गया था और एक बार गिरने पर उठा लिया गया. वापस देने के लिए हाथ बढ़ाया और फिर ही दिल ही दिल में कुछ पिघलने के बाद हाथ वापस खींच लिया. वो रुमाल आज भी रखा होगा. महफूज. उससे उन दिनों की खुशबू आती है.

याद है, SUPW की वो कॉपी जो क्लास 8 में, नहीं...नहीं क्लास 7 में ही कुछ नोट्स कॉपी करने के लिए उसे दी गई थी. जब वो कॉपी वापस मिली तो उसके बीचों-बीच गुलाब की कुछ पत्तियां मिली थीं. उसी रोज जमा करानी थी वो कॉपी लेकिन चुपके से बैग में रख ली और टीचर से पिटाई भी खा ली. किताबों की अलमारी में वो कॉपी आज भी है. महफूज. सूखे फूलों से उन दिनों की खुशबू आती है.

याद है, लंच के लिए चुपके से जूनियर क्लास में जाना और वहां से बच्चों को डांट कर क्लास खाली करा लेना. और जब बड़ी-बड़ी मूंछों वाले गार्ड भैया ने शिकायत कर दी थी तो कितना डर लगता था कि अब क्या होगा. टीचर से लेकर पैरेंट्स तक सबसे वादा भी करते थे लेकिन निभाते नहीं थे. तब वक्त चुरा कर लाते थे और जूनियर क्लास में घुस जाते थे.

स्कूली दिनों की वो छुअन, वो एहसास

याद है, वो स्कूल ड्रामा कॉम्पिटिशन जिसमें कोई दिलचस्पी न होने के बावजूद सिर्फ इसलिए नाम रजिस्टर कराया कि तुम्हारा नाम लिखा था वहां. नहीं आता था ड्रामा लेकिन एक्टिंग करने की एक्टिंग बहुत अच्छी आती थी. किरदार के बहाने हाथ थामने के मौके बहुत भाते थे. वो इंटरस्कूल ड्रामा कॉम्पिटिशन जीतने के बाद बैकस्टेज गले लगने की यादें अब भी चेहरे पर मुस्कुराहट ले ही आती हैं.

वो बाल जो स्वेटर पर छूटा था और डायरी में गुम हो गया...बार-बार देखे जाने के लिए.

स्कूल प्रेयर के लिए जमा होते वक्त कतार में प्यार का तार कितनी बार झंकार छोड़ जाता था. वो एक कनखी, वो एक इशारा, वो एक मुस्कान जैसे 6 घंटे के स्कूल का इंसेंटिव हो.

स्कूल बस जानबूझकर मिस करके सिटी बस का सबसे लंबा रूट लेकर घर पहुंचना और डांट खाना, दोनों याद नहीं रहते. याद रहता तो बस उस रूट पर एक-दूसरे के साथ बिताया गया वक्त.

स्कूल कॉरिडोर की 15 मीटर की दूरी में सबकी नजरों के बीच जो हाथ टकरा जाता था, वो छुअन बहुत देर और बहुत दिनों तक बाकी रहती थी.

याद है, फ्रेंच लेखक मोपंसा की वो कहानियों की किताब जो यूं ही ले ली गई थी ताकि फिर से मुलाकात का कोई तो बहाना हो.

एनुअल फंक्शन में एक-दूसरे की पसंद का रंग, उन दिनों के मासूम प्यार का रंग कितना गाढ़ा कर जाता था.

गर्मी की लंबी छुट्टियां हों या सर्दियों के गुलाबी दिन, उस एक चेहरे को देखे बिना गुजारना मुश्किल होता था.

आज प्रिया प्रकाश और रोशन अब्दुल रऊफ को देखकर स्कूली मोहब्बत के सबसे मासूम, मखमली, सपनीले और सजीले दिन जिंदा हो रहे हैं. दो साल पहले मराठी फिल्म ‘सैराट’ को देखकर भी ऐसा ही हुआ था. ये वो दिन हैं जब प्यार अपने सबसे निर्मल, पवित्र और अनछुए अहसास लिए धड़कता है. यही वजह है कि जब-जब उस खालिस प्यार की कोई धड़कन कहीं दिल तक पहुंचती है तो दिल मचल-मचल जाता है और अपने-अपने हिस्से की यादों में खो जाता है.

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