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Qutub Minar को लेकर विवाद, क्या सच में यहां हिंदू मंदिर था?

विश्व हिंदू परिषद ने दावा किया है कि Qutub Minar पहले Vishnu Stambh था.

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भारत
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ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) का मामला अभी ठंडा नहीं हुआ कि कुतुब मीनार (Qutab Minar) के इतिहास और नाम को लेकर देश में एक नया दावा किया जा रहा है. प्राचीन भारत की वास्‍तुकला के एक नायाब नगीने के इतिहास के अस्तित्व पर सवाल उठाया जा रहा है. ये अचानक नहीं हुआ है. देश में पिछले कुछ सालों से शहरों और इमारतों का नाम बदलने का एक ट्रेंड चल गया है. कभी ताजमहल को तेजोमहल कहा जा रहा तो कुतुबमीनार को सन टॉवर और विष्णु स्तंभ. ऐसे में जितने मुंह उतनी बातें की जा रही हैं.

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दरअसल, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के एक पूर्व अफसर ने कुतुब मीनार को लेकर बड़ा दावा किया है. उनका कहना है कि कुतुब मीनार का निर्माण 5वीं शताब्दी में सम्राट विक्रमादित्य ने कराया था, क्योंकि वे सूर्य की स्थितियों पर अध्ययन करना चाहते थे.

इंडिया टुडे को दिए इंटरव्यू में ASI के पूर्व रीजनल डायरेक्टर धर्मवीर शर्मा ने दावा किया कि कुतुब मीनार को कुतुबुद्दीन ऐबक ने नहीं बनवाया था. उन्होंने कहा कि यह कुतुब मीनार नहीं, सन टॉवर है. मेरे पास इस संबंध में बहुत सारे सबूत हैं. शर्मा ने ASI की तरफ से कई बार कुतुब मीनार का सर्वेक्षण किया है.

उन्होंने कहा कि कुतुब मीनार के टॉवर में 25 इंच का झुकाव है, क्योंकि यहां से सूर्य का अध्ययन किया जाता था. शर्मा ने बताया कि लोग दावा करते हैं कि कुतुब मीनार एक स्वतंत्र इमारत है और इसका संबंध करीब की मस्जिद से नहीं है. दरअसल, इसके दरवाजे नॉर्थ फेसिंग हैं, ताकि इससे रात में ध्रुव तारा देखा जा सके.

विश्व हिंदू परिषद बताता है विष्णु स्तंभ

विश्व हिंदू परिषद ने दावा किया है कि यह पहले विष्णु स्तंभ था. कुतुब मीनार को 27 मंदिरों को ध्वस्त करने के बाद प्राप्त सामग्री से बनाया गया था. अब विश्व हिंदू परिषद की मांग है कि उन सभी 27 मंदिरों का दोबारा निर्माण किया जाए, जिन्हें पूर्व में गिरा दिया गया था. साथ ही वहां हिंदुओं को पूजा करने की अनुमति दी जाए.

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कुतुब मीनार में गणेश मूर्तियों को लेकर हो चुका है विवाद

दरअसल, कुछ महीने पहले राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (NMA) ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से कु़तुब मीनार के परिसर में लगी हिंदू देवता गणेश की दो मूर्तियों को हाटने के लिए कहा था. इंडियन एक्प्रेस के मुताबिक NMA के अध्यक्ष ने कहा था कि ये मूर्तियां जहां पर लगी हैं, वो अपमानजनक है और उन्हें राष्ट्रीय संग्रहालय में भेज दिया जाना चाहिए.

कुतुब मीनार में भगवान गणेश की मूर्तियां

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक इन दो मूर्तियों को 'उल्टा गणेश' और 'पिंजरे में गणेश' कहा जाता है और ये 12वीं सदी में स्मारक कुतुब मीनार के परिसर में लगी हैं. 'उल्टा गणेश' मूर्ति, परिसर में बनी कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद की दक्षिण की ओर बनी दीवार पर लगी है. दूसरी मूर्ति में लोहे के पिंजरे में कैद गणेश इसी मस्जिद में ज़मीन के पास लगे हैं.

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी नेता और पूर्व राज्यसभा सांसद तरुण विजय ने बताया है ये मूर्तियां राजा अनंगपाल तोमर के बनाए 27 जैन और हिंदू मंदिरों को तोड़कर लाई गई थीं. इन मूर्तियों को जो जगह दी गई है वो भारत के लिए अवमानना का प्रतीक है और उसमें सुधार की जरूरत है.

कुतुब मीनार परिसर में क्या-क्या है?

दिल्ली के महरौली इलाके में स्थित कुतुब मीनार परिसर में मौजूद कुतुब मीनार और कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद, भारत में मुस्लिम सुल्तानों की ओर से निर्मित शुरुआती इमारतों में से एक है. मीनार और उससे सटी कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के निर्माण में वहां मौजूद दर्जनों हिन्दू और जैन मंदिरों के स्तंभों और पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था.

कुतुब मीनार के प्रवेश द्वार पर एक शिलालेख में लिखा भी है कि ये मस्जिद वहां बनाई गई है, जहां 27 हिंदू और जैन मंदिरों का मलबा था.
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बीबीसी के रिपोर्ट के मुताबिक इतिहासकार और प्रोफेर इरफान हबीब बताते हैं कि इसमें कोई शक नहीं है कि ये मंदिर का हिस्सा हैं. लेकिन, ये जो मंदिर थे, ये वहीं थे या आस-पास कहीं थे, इस पर चर्चा होती रही है. जाहिर सी बात है कि 25 या 27 मंदिर एक जगह तो नहीं रहे होंगे. इसलिए, इन स्तंभों को इधर-उधर से एकत्र करके यहा लाया गया होगा.

कुतुब मीनार का इतिहास

कुतुब मीनार को कुतुबुद्दीन ऐबक 1200 ईस्वी में बनवाया था. हालांकि, वे सिर्फ तलघर ही बनवा सके. उनके बाद इल्तुतमिश ने तीन मंजिलें बनवाईं और उनके बाद 1368 में फिरोज शाह तुगलक ने बाकी दो मंजिल बनवाई. पहली तीन मंजिलें लाल सैंडस्टोन से और चौथी-पांचवीं मंजिलें मार्बल और सैंडस्टोन से बनाई गई हैं.

वहीं, टॉवर के नीचे कुव्वत-अल-इस्लाम मस्जिद है, जिसे भारत में बनने वाली पहली मस्जिद कहा जाता है. मस्जिद के आंगन में एक 5 मीटर ऊंचा लोहे का स्तंभ है, जिसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह शुद्ध लोहे से बना हुआ है, लेकिन आज तक इस पर कभी जंग नहीं लगा. माना जाता है कि इस लौह स्तंभ का निर्माण राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने कराया था.

कुछ इतिहासकार मानते हैं कि कुतुबुद्दीन ऐबक के नाम पर ही इस मीनार का नाम पड़ा, जबकि कुछ इतिहासकार ये बताते हैं कि बगदाद के संत कुतुबद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर इस मीनार का नाम कुतुब मीनार रखा गया था.

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