राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को मोदी सरनेम पर टिप्पणी के लिए कोर्ट ने मानहानि केस में दोषी पाया है. इस केस में उन्हें दो साल की सजा सुनाई गई है. हालांकि इसके बाद उन्हें जमानत मिल गई है. लेकिन 2 साल जेल की सजा होने के बाद क्या कोई सासंद/विधायक अपने पद पर बना रह सकता है? क्या इस फैसले से राहुल गांधी की सांसदी पर खतरा मंडरा रहा है?
जवाब है हां.
राहुल गांधी केरल की वायनाड सीट से सांसद हैं लेकिन अब दोषी पाए जाने के बाद उनकी सदस्यता खतरे में हैं.
क्या कहता है कानून?
10 जुलाई 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने लिली थॉमस बनाम भारत संघ मामले में एक बड़ा फैसला दिया था. कोर्ट ने फैसला दिया कि अगर कोई विधायक, सांसद या विधान परिषद सदस्य किसी भी अपराध में दोषी पाया जाता है और इसमें उसे कम से कम दो साल की सजा होती है तो ऐसे में वो तुरंत अयोग्य घोषित माना जाएगा.
राहुल गांधी को भी 2 साल की सजा मिली है. ऐसे में उनकी सदस्यता खतरे में हैं.
बता दें कि 10 जुलाई 2013 से पहले ऐसा नहीं था. इससे पहले, जिस भी सांसद, विधायक और एमएलसी को सजा मिलती थी वह अपनी सीट पर तब तक बने रहे जब तक कि उन्होंने जिला अदालतों, उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में सभी न्यायिक उपाय खत्म न हो गए हो.
10 जुलाई, 2013 को जस्टिस एके पटनायक और एसजे मुखोपाध्याय की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(4) को असंवैधानिक घोषित कर दिया, जिसने निर्वाचित प्रतिनिधियों को उनकी दोषसिद्धि के खिलाफ अपील करने के लिए तीन महीने की अनुमति दी थी.
अब जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत अगर किसी सांसद/विधायक को दो साल या उससे अधिक के कारावास की सजा सुनाई जाती है, तो वह व्यक्ति कारावास की अवधि और छह साल की अवधि के लिए अयोग्य हो जाता है.
तो क्या राहुल गांधी की सदस्यता खत्म हो जाएगी?
कानून के आधार पर कहे तो हां. लेकिन इस मामले को अगर किसी और अदालत में चुनौती मिलती है या किसी ऊपरी अदालत में फैसले के खिलाफ अपील दायर होती है और वह अदालत मामले पर रोक (स्टे) लगा दें तो सदस्यता जाने से बच सकती है.
लाइव लॉ के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने इस बात की पुष्टि की है कि, सांसद या विधायक की सजा को अपीलीय अदालत (जिस अदालत में फैसले को चुनौती मिले) द्वारा सीआरपीसी की धारा 389 के तहत रोक दिया गया हो तो जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 लागू नहीं होगा यानी सदस्यता नहीं छिनी जा सकती. अपात्रता तब तक लागू नहीं होगी जब तक कि अपील का फैसला नहीं हो जाता.
बता दें कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत ही लालू प्रसाद यादव, जयललिता, बिहार के जगदीश शर्मा, हमीरपुर से बीजेपी विधायक अशोक कुमार सिंह चंदेल, कुलदीप सेंगर, आजम खान, अब्दुल्ला आजम, अनिल कुमार साहनी, अनंत कुमार सिंह, ममता देवी मोहम्मद फैजल और विक्रम सैनी जैसे कई नेताओं की सदस्यता जा चुकी है.
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