राजस्थान (Rajsthan) अपने गठन के समय से ही ऐतिहासिक स्थलों, शौर्य गाथाओं के साथ यहां के मरुस्थल और रेगिस्तान के जहाज ऊंट को लेकर पहचान रखता है. देश-विदेश में बैठा व्यक्ति राजस्थान की कल्पना करे और उसमें ऊंट शामिल न हों, ऐसा हो नहीं सकता. लेकिन अब रेगिस्तान का जहाज कहे जाने वाले ऊंट के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.
राजस्थान में ऊंटों की संख्या तेजी से कम हो रही है. आलम ये है कि राजस्थान की पशुगणना में 2014 से 2019 के बीच ऊंटों की संख्या में 35 प्रतिशत की चौंकाने वाली गिरावट दर्ज की गई है. आंकड़े बेहद चिंताजनक और सोचने पर मजबूर करने वाले हैं. राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में गांवों की व्यवस्था से जुड़ा ये पशु यकायक कहां लुप्त होता जा रहा है.
पशुगणना के सरकारी आंकड़े बताते है कि देश के कुल ऊंटों की संख्या का लगभग 84.43 प्रतिशत ऊंट राजस्थान में है.
तीस वर्षों से ऊंटों की संख्या में गिरावट
पशुगणना के मुताबिक, गत 30 वर्षों से ऊंटों की संख्या में नियमित तौर पर गिरावट हो रही है. गिरावट के इस आंकड़े की जानकारी राजस्थान और केंद्र सरकार दोनों को है, लेकिन इसके बावजूद भी रेगिस्तान के इस जहाज को बचाने के लिए अभी तक कोई क्रांतिकारी कदम नहीं उठाए गए हैं.
ऊंटों से लगाया जाता था हैसियत का अंदाजा
राजस्थान में पांच साल के पशुगणना के आंकड़ों में यकायक तेजी से हुई गिरावट को लेकर कारण तलाशने पर कई कारणों में से एक महत्वपूर्ण कारण राजस्थान में 2015 में ऊंट के संरक्षण के लिए आया कानून सामने आया है. ऊंट संरक्षण के लिए सरकार ने 2015 में एक कानून बनाया था जिसका उद्देश्य ऊंटों की कटाई और उनके पलायन को रोकना था.
ऊंट-पालक किसान इस कानून को ही ऊंटों की घटती संख्या की एक बड़ी वजह मान रहे हैं. एक राज्य से दूसरे राज्य के बीच ऊंटों की खरीद-फरोख्त रुकने की वजह से इसकी कीमत में काफी कमी आई है. ऊंट पालक किसान इस वजह से अपने पशु को या तो खुले में छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं या गैरकानूनी तरीके से इसे बेचने की कोशिश कर रहे हैं.
पहले पश्चिमी राजस्थान के मरुस्थली इलाकों में व्यक्ति की हैसियत का अनुमान उसके पास कितने ऊंट है, उससे किया जाता था. राजस्थान में ऊंट पालना कभी काफी मुनाफे का सौदा हुआ करता था और ऊंट, संपत्ति की तरह देखे जाते थे.
कीमत में 80-90 फीसदी आई कमी
ऊंटों को लेकर पिछले तीस साल से काम कर रही पाली की लोकहित पशु पालन संस्थान के हनुमंत सिंह राठौड़ बताते है कि ऊंट पहले पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर-प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के लोग खरीदते थे. खरीदारों में अधिकतर किसान थे, जो दूध और खेती के काम से या भारी सामान ढोने के लिए ऊंट खरीदते थे, लेकिन नए कानून में प्रतिबंध के बाद यह सिलसिला बंद हो गया है.
ऊंट की कीमत में 80 से 90 फीसदी तक की कमी आई है. ऊंट पालने वाले बताते हैं कि 2015 से पहले जब यह कानून नहीं था, पांच से सत्तर हजार रूपये तक की कीमत में ऊंट बेचे जाते थे, लेकिन अब 3-4 साल के ऊंट के भी तीन हजार रुपये से ज्यादा नहीं मिलते.
"2015 के बाद से न तो आप ऊंट पर नकेल डाल सकते हो, न ही गाड़ी में जोत कर काम में ले सकते हो. ऐसे में अब इसका उपयोग क्या बच जाता है, पशु पालक इसे क्यों पालेगा?"हनुमंत सिंह राठौड़
2015 में राज्य सरकार के द्वारा बनाए गए ऊंटों के कानून को लेकर राजस्थान सरकार में पशुपालन मंत्री लालचंद कटारिया खुद कहते है कि ऊंट संरक्षण के लिए वर्ष 2015 में जो कानून बना है, उसमें आंशिक संशोधन की जरूरत है.
उन्होंने ये भी माना कि ये सही है कि प्रदेश में ऊंट संरक्षण के लिए जब से कानून बना है, तब से प्रदेश में ऊंटों की संख्या घटी है. राज्य के बाहर ले जाने पर प्रतिबंध ने ऊंट की उपयोगिता का कम कर दिया है.
कटारिया कहते है कि ऊंट तस्करी को रोकने और ऊंट संरक्षण के प्रभावी प्रयास नहीं किए गए तो ये सही है कि आने वाले समय में ऊंट हमें केवल म्यूजियम में ही देखने को मिलेगा.
हैरान करने वाले आंकड़ों पर एक नजर
2019 की पशु गणना के मुताबिक, देश के कुल ऊंटों की संख्या का 84.43 प्रतिशत राजस्थान में है. वर्ष 1992 में ऊंटों की सख्या 7.46 लाख थी. वर्ष 1997 में ऊंटों की सख्या 6.69 लाख, वर्ष 2003 में ऊंटों की सख्या 4.98 लाख, वर्ष 2007 में ऊंटों की सख्या 4.22 लाख, वर्ष 2012 में ऊंटों की सख्या 3.26 लाख और वर्ष 2017 में ऊंटों की सख्या 2.13 लाख ही रह गई.
गौशाला की तर्ज पर ऊंटशाला खोले जाने की कवायद
ऊंटों की लगातार कम होती संख्या को देखते हुए अब राजस्थान सरकार गौशालाओं की तर्ज पर ऊंटशालाएं खोलने का विचार कर रही है. हालांकि, हनुमंत सिंह राठौड़ सरकार की इस योजना को फिजूल ही मान रहे है. राठौड़ का कहना है कि ऊंट गाय की तरह शांत स्वभाव का नहीं होता है.
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