(अगर आपके मन में भी खुदकुशी का ख्याल आ रहा है या आपके जानने वालों में कोई इस तरह की बातें कर रहा हो, तो लोकल इमरजेंसी सेवाओं, हेल्पलाइन और मेंटल हेल्थ NGOs के इन नंबरों पर कॉल करें.)
राजस्थान (Rajasthan) के कोटा (Kota) जिले में सोमवार, 12 दिसंबर को अलग-अलग घटनाओं में कोचिंग करने वाले तीन छात्रों की आत्महत्या से मौत हुई. इसके अलावा भरतपुर में खुदकुशी से एक और छात्र की मौत का मामला सामने आया. ये छात्र देश के अलग-अलग हिस्सों से कोचिंग के लिए आए थे. पुलिस के मुताबिक दो छात्र बिहार और एक मध्य प्रदेश का रहने वाला था. बिहार के दो मृतक छात्रों की पहचान अंकुश आनंद और उज्जवल कुमार के रूप में हुई है, जो 16 और 18 साल के थे और एक ही प्राईवेट हॉस्टल में रहते थे.
आनंद मेडिकल एग्जाम (NEET) की तैयारी कर रहा था और अंकुश जेईई की तैयारी कर रहा था. रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश के शिवपुरी के छात्र प्रणव वर्मा की मौत जहर खाने से हुई है, जो NEET की कोचिंग करने कोटा आया हुआ था.
राजस्थान में आत्महत्या के मामले पिछले कई वर्षों से रिपोर्ट किए जा रहे हैं. गौर करने वाली बात ये है कि सुसाइड मामलों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी देखने को मिल रही है.
बीते वर्षों में क्या हालात?
साल 2020
राजस्थान पुलिस की स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (SCRB) की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020 में राज्य में आत्महत्या के कुल 5658 मामले सामने आए थे, जो कि 2019 की संख्या से काफी ज्यादा थे. आत्महत्या के मामले में अगर कोटा की बात करें तो कोटा सिटी में कुल 173 मामले और कोटा रूरल में 126 मामले सामने आए थे.
साल 2019
एससीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक राजस्थान में साल 2019 के दौरान आत्महत्या के कुल 4531 मामले सामने आए थे. यह संख्या पिछले साल यानी 2018 से ज्यादा थी. इस साल कोटा सिटी में 136 और कोटा रूरल क्षेत्र से 38 मामले सामने आए थे.
साल 2018
एससीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक राजस्थान में साल 2018 में आत्महत्या के कुल 4333 मामले रिपोर्ट किए गए. यह संख्या पिछले साल यानी 2017 (4188 मामले) से काफी अधिक थी. 2018 में कोटा सिटी में 114 और कोटा रूरल क्षेत्र में 33 लोगों ने आत्महत्या की थी.
राजस्थान के अन्य इलाकों के अलावा कोटा में रहने वाले स्टूडेंट में भी आत्महत्या के मामलों में लगातार बढ़ोतरी देखने को मिली.
राजस्थान का कोटा शहर पूरे भारत में कोचिंग हब के नाम से जाना जाता है. हर साल 2 लाख से ज्यादा स्टूडेंट्स मेडिकल और इंजीनियरिंग के एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी करने के लिए यहां आते हैं. कई बार स्टूडेंट मानसिक दबाव और तनाव की वजह से आत्महत्या कर लेते हैं.
राज्य सरकार की गाइडलाइन्स
राज्य के कोचिंग संस्थानों में पढ़ने वाले छात्रों द्वारा आत्महत्या की घटनाओं के मामले में हाईकोर्ट के डायरेक्शन के बाद राज्य सरकार ने दिशा-निर्देश जारी किया.
The Free Press Journal की रिपोर्ट के मुताबिक IIT और मेडिकल की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों में मानसिक तनाव और आत्महत्या के बढ़ते मामलों को देखते हुए, राजस्थान सरकार ने इसी साल नवंबर महीने में कोचिंग में पढ़ने वाले छात्रों को मानसिक सहायता और सुरक्षा प्रदान करने के लिए राज्य में चल रहे कोचिंग संस्थाओं के लिए गाइडलाइन जारी की थी.
सरकार कोचिंग संस्थानों के प्रभावी नियमन के लिए बनाए गए 'राजस्थान निजी शिक्षण संस्थान नियामक प्राधिकरण विधेयक-2022' को अधिनियमित करने की प्रक्रिया शुरू की थी.
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने गाइडलाइन को मंजूरी देते हुए दावा किया था कि
अब कोचिंग संस्थानों में पढ़ने वाले छात्रों को तनावमुक्त और सुरक्षित माहौल मिलेगा.
गाइडलाइन में शामिल प्रावधान
स्टूडेंट पर कॉम्पटीशन और एकेडमिक प्रेशर की वजह से होने वाले मानसिक तनाव और अवसाद को दूर करने के लिए मनोचिकित्सा सेवाएं.
कोचिंग संस्थानों में पढ़ने वाले स्टूडेंट को आईआईटी और मेडिकल संस्थानों की प्रवेश परीक्षाओं में सफल नहीं होने की स्थिति में करिअर के अन्य विकल्पों के बारे में बताया जाएगा.
स्टूडेंट के कोचिंग संस्थान छोड़ने की स्थिति में एक आसान एक्जिट पॉलिसी और फी रिफंड का प्रावधान किया गया है.
कोचिंग संस्थान के खिलाफ स्टूडेंट की समस्याओं की रिपोर्ट करने के लिए एक शिकायत पोर्टल बनाया जाएगा.
कोचिंग सेंटर में कार्यरत सभी कर्मचारियों का पुलिस वेरिफिकेशन करवाना जरूरी होगा.
गलत और फर्जी कमिटमेंट करने वाले कोचिंग संस्थानों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.
राज्य और जिला स्तर पर एक निगरानी समिति का गठन किया जाएगा. इसमें माता-पिता, कोचिंग संस्थानों, गैर सरकारी संगठनों और सरकारी अधिकारियों के साथ मनोवैज्ञानिक और मोटिवेशनल स्पीकर्स होंगे.
संबंधित विभागों के शीर्ष अधिकारियों की एक स्टेट लेवल कमेटी गाइडलाइन के लागू होने की निगरानी करेगी.
राजस्थान की सरकार ने गाइडलाइन तो जारी किया लेकिन जमीन पर इसका असर देखने को नहीं मिला.
सरकार द्वारा जारी की गई इन गाइडलाइन्स को कोचिंग संस्थानों ने मानने से इनकार कर दिया और अभी तक कोटा में इन्हें लागू नहीं किया जा सका है.
हॉस्टल में एंटी-सुसाइड पंखों की योजना
2017 में तत्कालीन कलेक्टर रवि कुमार सुरपुर ने हॉस्टल के मालिकों के साथ मीटिंग करके सुसाइड रोकने से संबंधित सुझाव दिए थे. उन्होंने हॉस्टल में एंटी-सुसाइड पंखे लगाने की बात कही थी.
यानी ऐसे पंखे, जो 20 किलो से अधिक वजन होने पर नीचे गिर जाते हैं और हूटर बजने लगता है. इस तरह के पंखों का डेमो भी करवाया गया था.
कलेक्टर रवि कुमार सुरपुर ने उस वक्त सभी हॉस्टल को चेक करवाया और इसके बाद टीम बनाई गई थी. इस दौरान टाटा रिचर्स इंस्टीट्यूट की एक टीम कोटा भी आई थी, उन्होंने भी सुझाव को कारगर माना था. ये योजना कलेक्टर रोहित गुप्ता के समय तक चली.
कलेक्टर रोहित गुप्ता के जाने के बाद फिर से लापरवाही शुरू हो गई और हॉस्टल में सामान्य पंखे लगाए जाने लगे.
संस्थानों और हॉस्टल के मालिकों को नहीं देश की फिक्र?
अब सवाल ये उठता है कि सरकार के द्वारा जारी की गई गाइडलाइन्स को कोचिंग संस्थान क्यों नहीं लागू कर रहे हैं. इसके अलावा हॉस्टल के मालिकों को इस बात की फिक्र क्यों नहीं है कि स्टूडेंट सुसाइड न करें? क्या कोटा के कोचिंग हब बन जाने के बाद संस्थानों और हॉस्टल के मालिकों में अहंकार आ गया है या उन्हें देश के भविष्य की कोई फिक्र नहीं है?
(इनपुट- पंकज सोनी)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)