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Ram Setu: रामसेतु विवाद क्या है, क्यों उठ रही राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने की मांग

सेतुसमुद्रम जहाजरानी नहर परियोजना क्या है?

Published
भारत
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रामसेतु (Ram Setu) को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने की मांग वाली याचिका पर 26 जुलाई को चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने इस मामले में सुनावई होनी थी, लेकिन मामला सूचीबद्ध नहीं होने की वजह से सुनवाई नहीं हो सकी. ऐसे में प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि स्वामी द्वारा मामले का उल्लेख करने के बाद वह अगले सप्ताह याचिका पर सुनवाई करेगी. ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने की मांग क्यों की जा रही है? और ये भी जानेंगे की रामसेतु का राम से क्या संबंध है? और इस पर वैज्ञानिकों का क्या मत है?

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बता दें, बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इस याचिका में कोर्ट से अनुरोध किया गया था कि रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने के लिए वो केंद्र को निर्देश दे.

साथ ही उन्होंने शीर्ष अदालत से एक आदेश पारित करने और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को राष्ट्रीय महत्व के एक प्राचीन स्मारक के रूप में राम सेतु के संबंध में एक विस्तृत सर्वेक्षण करने के लिए भारत संघ को शामिल करने का निर्देश देने का भी आग्रह किया था.

बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा कि वह मुकदमे का पहला दौर पहले ही जीत चुके हैं, जिसमें केंद्र ने 'राम सेतु' के अस्तित्व को स्वीकार किया था. उन्होंने कहा कि तत्कालिन संबंधित केंद्रीय मंत्री ने सेतु को राष्ट्रीय विरासत घोषित करने की उनकी मांग पर विचार करने के लिए 2017 में एक बैठक बुलाई थी, लेकिन उसके बाद इस मामले कुछ नहीं हुआ.

क्या है रामसेतु?

धार्मिक मान्यता

हिंदू धर्म के महाकाव्य रामायण के मुताबिक रामसेतु का निर्माण भगवान राम ने अपने वानर सेना के साथ मिलकर किया था. रामसेतु का निर्माण नल और नील नाम के दो वानरों ने किया था. कहा जाता है कि जब रावण ने सीता का अपहरण कर लिया था, तब लंका पर चढ़ाई के लिए भगवान राम ने इस पुल का निर्माण कराया था. इस पुल के जरिए भगवान राम की सेना लंका में प्रवेश की थी.

वैज्ञानिकों के मुताबिक

वैज्ञानिकों का मानना है कि रामसेतु मानव निर्मित नहीं है, बल्कि प्रवाल भित्ति की वजह से प्राकृतिक रूप से बना है.

क्या है प्रवाल भित्ति?

प्रवाल भित्ति समुद्र के भीतर स्थित चट्टान है, जो प्रवालों द्वारा छोड़े गए कैल्सियम कार्बोनेट से निर्मित होती है. भारत में ये मन्नार की खाड़ी और अंडमान निकोबार द्वीप समूह में पाई जाती हैं. दुनिया के सबसे ज्यादा प्रवाल हिंद-प्रशांत क्षेत्र में पाए जाते हैं. ये भूमध्य रेखा के 30 डिग्री तक के क्षेत्र में पाए जाते हैं.

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कहां से कहां तक है रामसेतु?

रामसेतु को आदम ब्रिज भी कहा जाता है. तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी तट पर पत्थर के द्वारा बनाया गया था. यह दक्षिण भारत में रामेश्वरम के पास पंबन द्वीप से श्रीलंका के उत्तरी तट पर मन्नार द्वीप तक बना हुआ है.

कितना किलोमीटिर लंबा है रामसेतु?

दुनिया में आदम ब्रिज के नाम से जाना जाने वाला रामसेतु पुल की लंबाई करीब 30 मील या 48 किमी है. यह ढांचा मन्नार की खाड़ी और पॉक स्ट्रेट को एक दूसरे से अलग करता है.

सेतु समुद्रम परियोजना के बाद उठी थी राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने की मांग

क्या है सेतु समुद्रम परियोजना?

दरअसल, साल 2005 में तत्कालीन UPA सरकार ने सेतु समुद्रम परियोजना का ऐलान किया था. भारत सरकार सेतु समुद्रम परियोजना के तहत तमिलनाडु को श्रीलंका से जोड़ने की योजना पर काम कर रही थी. इससे व्यापारिक फायदा होने की बात कही जा रही थी. अगर यह परियोजना अमल में लाई गई होती तो बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के बीच समुद्री मार्ग को सीधी आवाजाही के लिए खोल देती. इस मार्ग के शुरू होने से जहाजों को 400 समुद्री मीलों की यात्रा कम करनी होती, जिससे लगभग 36 घंटे समय की बचत होती. इस समय इसके लिए जहाजों को श्रीलंका की परिक्रमा करके जाना होता है.

इस परियोजना के तहत रामसेतु के कुछ इलाके को गहरा कर समुद्री जहाजों के आने जाने लायक बनाया जाना था. इसके तहत बड़े जहाजों के आने-जाने के लिए करीब 83 किलोमीटर लंबे दो चैनल बनाए जाने थे. इसके लिए सेतु की चट्टानों को तोड़ना जरूरी था. इस परियोजना से रामेश्वरम, देश का सबसे बड़ा शिपिंग हार्बर बन जाता. तूतिकोरन हार्बर एक नोडल पोर्ट में तब्दील हो जाता.

माना जा रहा था कि सेतु समुद्रम परियोजना पूरी होने के बाद सारे अंतरराष्ट्रीय जहाज कोलंबो बंदरगाह का लंबा मार्ग छोड़कर इसी नहर से गुजरते. अनुमान था कि हर साल 2000 या इससे अधिक जलपोत इस नहर का उपयोग करते. साथ में ये भी अनुमान लगाया गया था ये परियोजना के चालू होने के 19वें वर्ष में 5000 करोड़ रूपए से अधिक का व्यवसाय करने लगती, जबकि इसकी लागत उस समय 2000 करोड़ ही थी.

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