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संडे व्यू: चुनाव व बजट का रिश्ता, स्मार्ट नहीं, सुरक्षित शहर चाहिए

पढ़ें रविवार को देश भर के अखबारों में छपे बेहतरीन आर्टिकल्स

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मच्छर मारने के लिए न्यूक्लियर स्ट्राइक

हिन्दुस्तान टाइम्स में करन थापर ने नोटबंदी के दो महीने बाद हालात का जायजा लिया है। करन लिखते हैं-नोटबंदी का असली मकसद काले धन को निकालना था. हालांकि काले धन को निकालने का काम पूरा हुआ है या नहीं कहा नहीं जा सकता.

मेरे ख्याल से नोटबंदी का फैसला मच्छर को मारने के लिए न्यूक्लियर हमले जैसा था. 8 नवंबर को 15.4 लाख करोड़ रुपयों को चलन से बाहर कर दिया गया. अब तक तीन रिपोर्टें आ चुकी हैं जिनके मुताबिक 30 दिसंबर तक इस रकम का 97 फीसदी बैंकों के पास आ चुका था.

अगर यह सच है तो इसके सिर्फ दो मतलब हो सकते हैं. पहला या तो पूरा ब्लैक मनी वापस आ चुका है या फिर आरबीआई देश में सर्कुलेशन में मौजूद करेंसी का आकलन कम किया था. अगर सारा पैसा बैंकों में जमा हो भी गया है तो भी यह नहीं माना जा सकता कि सारा सफेद धन ही है. यही वह समस्या सामने आती है, जिसका सामना बेहद मुश्किल होगा. क्या सरकार यह पता लगा पाएगी कौन सा डिपोजिट वैध है और किस पर टैक्स नहीं दिया गया है. सरकार ने यह कहा है कि यह पता लगाया जाएगा। काला धन जमा करने वाले नहीं बचेंगे लेकिन क्या यह काम इतना आसान होगा.

सीबीडीटी के पूर्व चेयरमैन ने 19 दिसंबर को ‘द हिंदू’ से इस कठिन काम का जिक्र करते हुए कहा था अगर इस देश के 45 करोड़ खातों के एक फीसदी की भी जांच की जाती है तो हर साल 45 लाख खातों को जांच की जाएगी. सीबीडीटी एक साल में 3 लाख खातों की जांच करता है. यानी 45 लाख खातों की जांच का मतलब 15 गुना ज्यादा खातों की जांच करनी होगी. क्या 45 लाख खातों की जांच के लिए हमारे पास प्रशिक्षित लोग हैं.

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राजनीति - जुबानी दबंगई का दंगल

जानी-मानी पत्रकार सागरिका घोष ने टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखे अपने लेख में राजनीति में लगातार बढ़ रही बदजुबानी की ओर ध्यान खींचा है. अमेरिका से लेकर भारत तक राजनीति में इन दिनों एक दूसरे को चोट पहुंचाने वाली भाषा का दखल है. डोनल्ड ट्रंप सीएनएन रिपोर्टर से कहते हैं- यू आर फेक न्यूज. तो तृणमूल सांसद कल्याण बनर्जी का कहना है कि मोदी किसी चूहे के बच्चे की तरह गुजरात लौट जाएंगे.

मोदी यूपीए सरकार को मां-बेटे की सरकार कहते रहे हैं. यहां तक कि उन्होंने गुजरात का सीएम रहते सोनिया गांधी को जर्सी गाय भी कह दिया था. अरविंद केजरीवाल के लिए उनके सभी आलोचक ‘दलाल’ हैं. मोदी के लिए पत्रकार न्यूज ट्रेडर और उनके मंत्रियों के लिए प्रेसिट्यूट हैं. यहां तक कि राजीव गांधी भी पीएम पर पद्मासन न करने के मामले में हमले कर चुके हैं.

सागरिका लिखती हैं- राजनीति अब विचारों का युद्ध न होकर व्यक्तित्वों का दंगल हो कर रह गई है. चूंकि हर पार्टी की राजनीति कमोबेश एक सी है इसलिए राजनीति अब वैचारिक प्रतिद्वंद्विता की बजाय नेताओं के बीच दंगल बन गई है. नोटबंदी पर बहस मोदी बनाम राहुल या मोदी बनाम ममता की लड़ाई में तब्दील हो गई.

अपने बारे में ज्यादा से ज्यादा बोलने के स्याह पहलू उभर आए हैं. अचानक ऐसे राजनीतिक नेता सामने आ गए हैं जो टीवी और सोशल मीडिया में अपनी राय जाहिर करने में आगे है लेकिन हिंसक भाषा में. यह दुखद है कि डॉ. मनमोहन सिंह या तृणमूल के सुगत बोस अपनी-अपनी पार्टी में हाशिये पर पाए जाने वाले डायनासोर की तरह हो गए हैं. क्यों? इसलिए कि उनका व्यवहार बेहद शालीन है.

हालांकि थोड़े संतोष की बात यह है कि अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने वाले नेताओं के बीच नवीन पटनायक, अखिलेश यादव और नीतीश कुमार जैसे नेता भी हैं जो यह बताते हैं कि अपनी छाप छोड़ने के लिए कड़वी और अभद्र भाषा में बात करना जरूरी नहीं है. इस बारे में बराक ओबामा का कहना बिल्कुल मुफीद है- लोकतंत्र की क्षमता का बेहतर इस्तेमाल तभी ठीक से हो पाएगा जब इसमें आम लोगों की शालीनता का अक्स होगा.

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राज्यों के चुनाव से बजट का क्या वास्ता ?

राज्यों के चुनाव को देखते हुए विपक्षी दलों ने बजट पेश करने की तारीख आगे बढ़ाने को कहा है. टाइम्स ऑफ इंडिया में स्वामीनाथन एस अंकलसरैया ने विपक्षी दलों की इस मांग को वाहियात करार दिया है और कहा है कि चुनाव आयोग को उनकी इस मांग को तुरंत खारिज कर देना चाहिए.

भारतीय वोटर अब इतने भोले नहीं हैं कि बजट में घोषित कुछ लोक-लुभावन वादों पर अपने वोट भाजपा और सहयोगी पार्टियों पर न्योछावर कर दें. चुनाव आयोग को यह समझना होगा कि सरकार के लिए किसी भी तारीख को बजट पेश करने की घोषणा हास्यास्पद होगी.

दरअसल वोटरों को दशकों के अपने अनुभव से पता है कि ज्यादातर राजनेता धूर्त होते हैं. वे वादे तो बड़े करते हैं लेकिन निभाते बहुत कम हैं. इस देश में केंद्र और राज्य का हरेक वित्त मंत्री चुनाव से पहले लोगों को सौगात देता रहा है. लेकिन इतिहास बताता है कि इससे उनकी पार्टी को कोई खास चुनावी फायदा नहीं हुआ है. वोट हासिल करने के लिए खासी राजनीतिक मशक्कत की जरूरत होती है. अगर ओडिशा, मध्य प्रदेश, सिक्किम, त्रिपुरा और छत्तीसगढ़ में सरकारें बार-बार जीतती रही हैं तो इसलिए कि मुख्यमंत्रियों ने काम किया है.

नरेंद्र मोदी ने 31 दिसंबर का जो भाषण दिया, वह चुनावी था. उन्होंने ब्याज दर घटाने, सीनियर सिटीजन के लिए ब्या दर बढ़ाने और गर्भवती माताओं के लिए 6000 रुपये देने जैसी कई घोषणाएं की। बजट में भी ये घोषणाएं की जा सकती थीं.

कइयों का मानना है कि चुनाव से पहले सरकार यूनिवर्सिल बेसिक इनकम स्कीम की भी घोषणा कर सकती है. मोदी मानते हैं कि लोग पाकिस्तान के खिलाफ उनके कड़े रवैये, नोटबंदी और काले धन के खिलाफ उनके कदम पर वोट देंगे.

वहीं अकाली दल और समाजवादी पार्टी मानती हैं कि लोग आर्थिक विकास के नाम पर वोट देंगे. आम आदमी पार्टी भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने जेहाद को चुनाव जिताऊ मानती है. चुनाव में हार-जीत के लिए ये बेहद अहम मुद्दे हैं. इसलिए बजट चुनाव जीतवा सकता है, इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए। राज्यों के चुनाव के लिए वोटिंग से पहले इसका पेश होना कोई मायने नहीं रखता.

स्मार्ट ही नहीं सुरक्षित शहर भी चाहिए

हिन्दुस्तान टाइम्स में ललिता पणिकर ने महिलाओं के साथ लगातार छेड़खानी की वारदातों के मद्देनजर लिखा है हमारे शहर तब तक स्मार्ट नहीं माने जाएंगे जब तक यहां महिलाएं सुरक्षित महसूस न करें. पणिकर लिखती हैं- सुरक्षित पब्लिक ट्रांसपोर्ट होता और स्ट्रीट लाइट होती तो निर्भया जैसा भयानक हादसा नहीं होता.

महिलाओं की सुरक्षा की दृष्टि से भारतीय शहरों की हालत इतनी खराब है कि यूएन की ‘सेफ सिटीज, सेफ पब्लिक प्लेस’ योजना में शामिल पांच शहरों में दिल्ली भी एक है. पिछले कुछ अरसे से महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई तरह की बातें होती रही हैं- जैसे सीसीटीवी, पैनिक बटन और जीपीएस ट्रैकिंग की व्यवस्था. लेकिन इस तरह की बातें आधी-अधूरी रही हैं.

हिम्मत एप्प को गृह मंत्री ने एक साल पहले बड़े जोर-शोर से लांच किया था. लेकिन इसका कोई फायदा नहीं दिखा. उसी तरह आम आदमी पार्टी सरकार के महिलाओं की सुरक्षा को लेकर लाया गया 10 सूत्री कार्यक्रम भी नाकाम रहा है.

महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी हर स्मार्ट फोन में एक पैनिक बटन की व्यवस्था की बात करती रही हैं. क्या सभी महिलाओं के पास स्मार्ट फोन है. भारतीय शहरों में महिलाएं घर बाहर अपने जोखिम पर निकलती हैं.

पांच फीसदी महिलाएं भी खुद को सार्वजनिक जगहों में सेफ नहीं पातीं. सीसीटीवी और महिलाओं की सुरक्षा के मद्देनजर दूसरे गैजेट होने के बावजूद अपराधी खुलेआम घूमते हैं. उन्हें पता है कि वे पहचाने नहीं जाएंगे. अगर पकड़े जाएंगे तो भी छूट जाएंगे.

टेक्नोलॉजी से निश्चित तौर पर महिलाओं की सुरक्षा बढ़ेगी लेकिन जब तक कानून अपना काम नहीं करेगा वह सुरक्षित महसूस नहीं कर सकतीं. उम्मीद है कि स्मार्ट शहर और टेक्नोलॉजी पर इतना जोर दे रही सरकार महिलाओं की सुरक्षा को लेकर मजबूत प्रतिबद्धता दिखाएगी.

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स्लोडाउन के लिए तैयार रहें

इंडियन एक्सप्रेस में पी चिदंबरम ने नोटबंदी को लेकर सरकार पर फिर वार किया है। वह लिखते हैं – ग्रोथ के चार इंजन होते हैं- सरकार की ओर से किया जाने वाला खर्च, निजी खपत, निजी निवेश और निर्यात.

इनमें से दो इंजन निजी निवेश और निर्यात पिछले काफी महीनों से लड़खड़ाते आ रहे हैं। निजी खपत ठीक रही थी और इससे इकोनॉमी को रफ्तार मिली हुई थी. हालांकि 8 नवंबर को नोटबंदी के बाद इसे भी करारी चोट पहुंची है.

सिर्फ एक इंजन चलता हुआ लग रहा है और वह है सरकारी खर्च. ऐसे हालात में 2016-17 की ग्रोथ रेट की क्या उम्मीद की जाए? जवाब सीएसओ (सेंट्रल स्टेटिस्टिक्स ऑर्गेनाइजेशन ) ने दे दिया है.

सीएसओ ने कहा है कि जीडीपी ग्रोथ रेट 2015-16 की 7.56 की तुलना में 7.09 फीसदी रह जाएगी। निराशा की और भी तस्वीरें हैं. अक्टूबर- दिसंबर, 2015 और अक्टूबर-दिसंबर 2016 की तुलना करें तो पाएंगे कि सरकार की घोषित परियोजनाओं के मूल्यों में गिरावट आई है. अक्टूबर-दिसंबर, 2015 में इसकी वैल्यू 2,56,669 करोड़ रुपये की थी, जबकि अक्टूबर-दिसंबर, 2016 में यह महज 42,128 करोड़ रुपये की रह गई.

इसी तरह निजी परियोजनाओं के मूल्य में भी भारी गिरावट है. एक चीज साफ है- निवेश मूल्य तेजी से गिर रहा है. निवेश का गिरना नोटबंदी का और बड़ा स्याह रूप लेकर आएगा. इकोनॉमी की ग्रोथ घट जाएगी और इसका सीधा असर लोगों के रोजगार पर पड़ेगा. लोगों की छंटनी होगी और आय में इजाफे की रफ्तार धीमी रहेगी. गरीबी से निकलने वाले लोगों की तादाद कम रहेगी। निश्चित तौर पर अच्छे दिन तो नहीं आने वाले. 2017 में तो कतई नहीं.

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भविष्य का संघर्ष


इंडियन एक्सप्रेस में मेघनाद देसाई ने अमेरिका में डोनल्ड ट्रंप और भारत में नरेंद्र मोदी की जीत को एक जैसा बताया है. देसाई की नजर में दोनों आउटसाइडर थे और दोनों के जीत से भद्र लोक में काफी हंगामा मचा. वह लिखते हैं- बहरहाल, भारत और अमेरिका के बीच संबंध अटल बिहारी वाजपेयी के जमाने से ही सुधरने लगे थे.

जॉर्ज बुश और मनमोहन सिंह के शासन प्रमुख रहते दोनों देशों के बीच संबंधों में काफी गर्माहट आई. मोदी भारत को टॉप पर ले जाने चाहते हैं तो ट्रंप टॉप से तेजी से नीचे खिसक रहे अमेरिका को लेकर चिंतित हैं. वह अमेरिका को एक बार फिर महान बनाना चाहते हैं. ट्रंप और मोदी के बीच तालमेल एक नए बन रहे समीकरण में बेहद अहम होगा. नए समीकरण में एक तरफ भारत और अमेरिका होंगे तो दूसरी ओर रूस और चीन. आने वाले दिनों में अगर कहीं संघर्ष हुआ तो वह इलाका होगा भारत-चीन सीमा और दक्षिण चीन सागर.

ट्रंप अगर अमेरिका को महान बनाना चाहते हैं तो वह चीन को उसकी जगह भी दिखाना चाहते हैं. उन्हें लग रहा है चीन वैश्विक कारोबार का ज्यादा से ज्यादा हिस्सा हड़पता जा रहा है. यही वजह है कि ट्रंप ने ताइवान से दोस्ती का रुख दिखाया. ताइवान की तुलना में चीन को मान्यता देने में अमेरिका ने 25 साल लगाए थे. एक बार फिर अमेरिका चीन को काबू करना चाहता है. चीन को लेकर उनकी नीति बदल रही है. ट्रंप भोले नहीं हैं.

उन्हें पता है कि ताइवान जैसे देश से दोस्ती का रुख जाहिर कर वह चीन की बांह मरोड़ रहे हैं. भले ही अमेरिका-भारत और चीन-रूस के बीच संघर्ष की स्थिति न हो लेकिन ऐसी स्थिति भी नहीं है कि संघर्ष की स्थिति न दिख रही हो. पिछले 50 साल में ऐसी स्थिति नहीं दिखी थी.

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ट्विटर पर फतवा और भावुक राष्ट्रवाद


एशियन एज में आकार पटेल ने मोदी सरकार के राष्ट्रवाद की खासी खबर ली है. अमेजन कनाडा को तिरंगा वाले डोरमैट के मामले में ट्वीटर पर धमकी देकर एक बार फिर वाहवाही लूट रहीं सुषमा स्वराज के रवैये पर आकार ने अचरज जताया है.

आकार कहते हैं कि इस प्रकरण से तीन चीजें साफ हो गई हैं- 1.भारत ऐसा देश है, जहां नियम-कानून नहीं चलता. यहां मनमाने और अचानक फैसले होते हैं. 2. ऐसी चीजें रुकती नहीं.

अमेजन की ओर से डोर-मैट को वापस ले लेने के बाद तिरंगे वाली चप्पलें बेचे जाने की खबर आई. अब सुषमा स्वराज क्या करेंगी. वह कितनी बार इस तरह का रवैया दिखाएंगी. 3. इस तरह का उग्रवाद हमारे नेताओं के काफी मुफीद बैठता है.

पिछले साल भी इसी वक्त ऐसा ही उग्र राष्ट्रवाद का माहौल बना था जब देश के एक यूनिवर्सिटी में भारत विरोधी नारे लगाए जाने के आरोप में कुछ नौजवानों को गिरफ्तार कर लिया गया था. संसद से सड़क तक हंगामा मचा था. पीएम ने ट्वीट किया था- सत्यमेव जयते.

एक नौजवान को गिरफ्तार किया गया और उसकी पिटाई की गई थी. लेकिन क्या हुआ मोदी सरकार ने एफआईआर तक दर्ज नहीं की. रात गई, बात गई. सुषमा स्वराज ने एक बार फिर ढोंगी और फर्जी राष्ट्रवाद की बानगी पेश की है. यह बिल्कुल वक्त और ऊर्जा की बरबादी है. खास कर उन मंत्रियों के लिए जिनके पास काफी बड़ी जिम्मेदारी है. ऐस मंत्रियों को इस तरह के तमाशे में शामिल नहीं होना चाहिए.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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