13 दिसंबर 2001. जब देश की संसद पर आतंकियों ने धावा बोल दिया. प्रतीकों के लिहाज से ये बहुत बड़ा हमला था. उस इमारत पर आतंकवादी हमला, जो लोकतंत्र का मंदिर है. जहां इस देश के कानून बनते हैं. इसी हमले में शहीद हुए थे रामपाल. दिल्ली पुलिस में एएसआई, रामपाल. तत्कालीन उपराष्ट्रपति कृष्णकांत के ड्राइवर रामपाल.
भुलाए नहीं भूलता वो दिन
संसद हमले को 17 बरस गुजर चुके हैं, लेकिन शहीद रामपाल के पूरे परिवार को न वो दिन भूलता है और न ही वो दर्दनाक लम्हा जब रामपाल उनके बीच से चले गए. एक मां पीछे छूट गई. पत्नी अकेली हो गईं और बेटे...बेटों को तो जैसे कुछ समय तक ये एहसास जज्ब ही नहीं हुआ कि उन पर प्यार बरसाने वाले पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे. पिता को याद करते हुए बड़े बेटे करमवीर ने क्विंट को बताया:
मां को संभालना भी एक बहुत बड़ा संघर्ष था उस वक्त. हम भी छोटे थे, पापा भी रहे नहीं थे. पढ़ाई लिखाई करना तो दूर स्कूल जाना मुश्किल हो गया था, छोटा भाई काफी छोटा था, बहुत ही समस्या हो गई थी, उसके बाद धीरे-धीरे खड़े हुए...करमवीर, संसद हमले में शहीद रामपाल के बेटे
क्या हुआ था उस दिन?
13 दिसंबर 2001 को रामपाल हर दिन की तरह अपना फर्ज निभा रहे थे. वो उपराष्ट्रपति कृष्णकांत की गाड़ी में थे. तभी पीछे से एक एंबेसडर आई और उनकी कार से टकरा गई. जब इस बात को लेकर, एंबेसडर के ड्राइवर से उनकी झड़प हुई तो उसने चेतावनी देने के बाद गोली चला दी. एएसआई रामपाल शहीद हो गए. रामपाल की मां बेटे को भूलना भी चाहें तो भला कैसे? वो रोते हुए कहती हैं:
बेटे की याद कैसे नहीं आएगी, मेरा बालक चला गयाशहीद रामपाल की मां
पति के बाद पूरे परिवार को संभाला
शहीद रामपाल की पत्नी भगवनी के लिए ये 16 साल संघर्ष से भरे रहे. बच्चों को पढ़ाना, उनकी परवरिश, परिवार को संभालना सब खुद किया. रामपाल आज नहीं हैं लेकिन जिस हिम्मत और हौसले से उन्होंने देश की सेवा की, वो हौसला आज भी परिवार का जज्बा बढ़ाता है.
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रिपोर्टर- प्रोड्यूसर- शादाब मोइज़ी
कैमरा- शादाब मोइज़ी
वीडियो एडिटर- मोहम्मद इरशाद आलम
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