देशभर में कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन लगाया गया. जिसने लाखों प्रवासी मजदूरों के रोजगार छीन लिए. इसके बाद कई राज्यों ने श्रम कानूनों को हटाया और उनमें बदलाव किए. तर्क ये दिया गया कि मजदूरों के हितों को देखते हुए ही ये फैसला लिया गया है. जिस पर विपक्ष ने कई सवाल उठाए थे. लेकिन अब आरएसएस से जुड़े ट्रेड यूनियन भारतीय मजदूर संघ ने इसके खिलाफ आवाज उठाई है. संघ ने राज्यों के उठाए इन कदमों को एंटी वर्कर करार दिया. साथ ही प्रदर्शन की चेतावनी भी दी है.
भारतीय मजदूर संघ की तरफ से मजदूरों के लिए बनाए गए कानूनों में संशोधन और उन्हें हटाए जाने को लेकर एक बयान जारी किया. जिसमें उन्होंने कहा,
“हाल ही में कई राज्यों ने एंटी-वर्कर (मजदूर हितों के खिलाफ) कदम उठाए हैं. ऐसा इतिहास में कभी नहीं सुना गया, यहां तक कि अलोकतांत्रिक देशों में भी ऐसा कम ही देखने को मिलता है.”भारतीय मजदूर संघ
देशभर में प्रदर्शन की चेतावनी
आरएसएस से जुड़े भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने कई राज्य सरकारों की ओर से श्रम कानूनों को हटाने या उसमें बदलाव किए जाने के विरोध में 20 मई को देश भर में प्रदर्शन करने की भी बात कही है. भारतीय मजदूर संघ के राष्ट्रीय महामंत्री विरजेश उपाध्याय ने कहा कि इसे लेकर राज्य इकाइयों ने मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा था लेकिन केवल मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने ही भारतीय मजदूर संघ के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की.
भारतीय मजदूर संघ ने कहा है कि मजदूरों की समस्याओं को लेकर 16 मई से 18 मई तक जिला प्रशासन को ज्ञापन दिया जाएगा. वहीं 20 मई को जिला मुख्यालयों पर राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन होगा.
भारतीय मजदूर संघ ने कहा कि श्रम कानूनों के उल्लंघन के कारण पहले से ही मजदूर संकट में चल रहे हैं. ऐसे में कानूनों को पूरी तरह से हटा देने या उनमें ढील देने से मजदूरों का और शोषण होगा.
बता दें कि विपक्ष इस मामले को लेकर लगातार बीजेप शासित सरकारों पर हमलावर है. कांग्रेस ने इसे मजदूरों का शोषण करना बताया था. लेकिन अब आरएसएस जैसे संगठन से जुड़े इस संघ ने भी यही बात कही है. जो केंद्र सरकार के लिए जरूर एक चिंता का सबब बन सकता है. इस ट्रेड यूनियन से देशभर के कई छोटे मजदूर संगठन जुड़े हैं.
कांग्रेस ने उठाए थे सवाल
कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्विटर पर श्रम कानूनों में हुए बदलाव के मुद्दे को उठाया था. उन्होंने कहा कि सरकार मजदूरों की आवाज दबाने की कोशिश कर रही है. राहुल ने ट्विटर पर लिखा था,
“अनेक राज्यों द्वारा श्रमकानूनों में संशोधन किया जा रहा है. हम कोरोना के खिलाफ मिलकर संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन यह मानवाधिकारों को रौंदने, असुरक्षित कार्यस्थलों की अनुमति, श्रमिकों के शोषण और उनकी आवाज दबाने का बहाना नहीं हो सकता. इन मूलभूत सिद्धांतों पर कोई समझौता नहीं हो सकता.”राहुल गांधी
बता दें कि मध्य प्रदेश ने सबसे पहले श्रम कानूनों के कई प्रवधानों को रद्द करने की बात कही थी. जिसके बाद उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, ओडिशा और गोवा जैसे राज्यों ने भी श्रम कानूनों को खत्म और उनमें बदलाव करने का फैसला किया.
क्यों हो रहा है विरोध?
दरअसल श्रम कानूनों में बदलाव से कई चीजें भी बदल चुकी हैं. जिसमें लेबर से एक हफ्ते में 72 घंटे ओवरटाइम कराने की मंजूरी दे दी गई है. यानी मजदूरों से 12 घंटे काम लिया जा सकेगा. भले ही इसके लिए ओवरटाइम की बात कही गई है, लेकिन मालिक उन्हें कितना ओवर टाइम देते हैं या फिर देते हैं या नहीं ये किसी को नहीं पता. कारखाने अपनी सुविधा के मुताबिक शिफ्ट बदल सकते हैं. जिससे कहीं न कहीं मजूदरों पर मनमाने तरीके से काम करवाने का शक जताया जा रहा है.
सरकारों के इस फैसले से उद्योगपतियों या फैक्ट्री मालिकों को जहां बड़ी राहत मिली है, वहीं मजदूर संगठनों को इस बात की आशंका है कि इससे मजदूरों का ही शोषण बढ़ने वाला है. कुछ राज्यों में ट्रेड यूनियनों को मान्यता देने वाला कानून भी खत्म कर दिया गया है. जिससे मजदूरों के अधिकारों को उठाने वाली आवाज दब जाएगी.
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