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Russia-Ukraine War लंबा खिंचा तो एक लाख करोड़ के घाटे में आ जाएगी इंडियन इकनॉमी

चुनाव बाद पेट्रोल-डीजल व गैस की कीमतें बढ़ेंगी. हमारे बजट में इतनी क्षमता नहीं है कि वह झटके आसानी से झेल जाए

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रूस-यूक्रेन वॉर (Russia Ukraine war) भारत की इकनॉमी (Indian Economy) के लिए चिंताएं खड़ी कर देने वाला साबित हो सकता है. युद्ध शुरू होने के दिन से ही धड़ाम से गिरते शेयर बाजार (Share Market) अभी तक नहीं उठ पा रहे हैं. क्रूड ऑयल के दाम उछाल में नए रिकॉर्ड बनाने लगे हैं. इस स्थिति का असर भारत पर पड़ना तय है. भारतीय स्टेट बैंक ने इस संबंध में एक शोध रिपोर्ट भी तैयार कराई है, जिसमें स्पष्ट आशंका है कि भारत सहित पूरे एशिया को इस जंग का नुकसान सहना पड़ेगा. अगर लड़ाई लंबी चली जाती है तो भारतीय अर्थव्यवस्था तकरीबन एक लाख करोड़ रुपए के घाटे में आ जाएगी.

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कैसे होगी राजस्व में कमी

एसबीआई की रिपोर्ट के अनुसार युद्ध की वजह से कच्चे तेल के दाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ते ही जा रहे हैं. इससे देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतें भी बढ़ाना पड़ती हैं. सरकार उत्पाद शुल्क में पर नियंत्रण कर के इन कीमतों को कंट्रोल करती है. अभी कच्चा तेल $110 प्रति बैरल तक पहुंच चुका है तो देश में पेट्रोल डीजल के दाम नियंत्रित करने के लिए सरकार को प्रति लीटर पर 10 से 15 रुपए तक पेट्रोल के दाम नियंत्रित करना होगा. इसके लिए उत्पाद शुल्क में कटौती होगी और सरकार को हर महीने 8 हजार करोड़ रुपए के राजस्व का घाटा होगा. यदि इसे पूरे साल जोड़ा जाए तो यह घाटा एक लाख करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है. ऐसे में अगले वित्त वर्ष में सरकार के राजस्व में 95 हजार करोड़ रुपए से एक लाख करोड़ रुपए के बीच की कमी नजर आ सकती हैं.

यह तय है कि चुनाव के बाद पेट्रोल-डीजल व रसोई गैस की कीमतें तेजी से बढ़ेंगी. सरकार के पास घूम फिरकर यही विकल्प सामने आता है. हमारे बजट में इतनी क्षमता नहीं है कि वह इस झटके को आसानी से झेल जाए,मतलब लंबे समय तक तेल की महंगाई की मार हम पर पड़ने की तैयारी पूरी है. एसबीआई के ग्रुप चीफ इकनॉमिक एडवाइजर सौम्यकांति घोष ने रिपोर्ट में यह आंकलन दिया है.

गिरते रुपए महंगे डॉलर का अंतर चिंतनीय

भारत पर दूसरा सीधा असर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुद्रा के दाम बढ़ने का होगा. भारत में कई सारे सामान और देश की जरूरत का 80% क्रूड ऑयल पूरी दुनिया से आयात होता है और इस आयात के दाम डॉलर में चुकाने होते हैं. इस युद्ध की वजह से रुपए की कीमत गिर रही है और डॉलर व रुपए के मूल्य में अंतर आ रहा है. आगे यह बहुत ज्यादा हो गया तो भारत को डॉलर के महंगा होने के कारण ज्यादा राशि का भुगतान आयात करने वाले देशों को करना पड़ेगा. इससे देश की अर्थव्यवस्था पर एकमुश्त असर पड़ेगा और जरूरत की हर चीज महंगी हो जाएगी.

आर्थिक हलचल मचना तय

जापान की शोध कंपनी नोमूरा ने भी ग्लोबल इकनॉमी को नुकसान होने और इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव होने संबंधी रिपोर्ट दी है. इसके अनुसार भारत दुनिया भर में तेल की कीमतों के खेल में फंसने वाले देशों में अव्वल होगा, क्योंकि तेल की कीमतों में अगर 10% की वृद्धि भी होती है तो भारत की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में 0.2% की गिरावट देखी जाएगी. इस गिरावट के साथ ही थोक महंगाई दर 1.2% और खेरीज महंगाई दर 0.4% बढ़ जाएगी.

नोमुरा ने इसके आगे की स्थिति का उल्लेख करते हुए कहा है कि महंगाई और अर्थव्यवस्था वृद्धि दर में गिरावट को नियंत्रित करने आरबीआई को नीतिगत दरों को बढ़ाने का फैसला लेना पड़ेगा, जिससे देश में आर्थिक हलचल मचना तय है.

दिग्गजों का मानना मुश्किल होगा समय

अर्थशास्त्रियों ने भी इसके तीव्र प्रभावों पर मुहर लगाई है. अर्थशास्त्री किरीट पारेख ने हाल ही में अपनी मीडिया चर्चाओं में कहा है कि कच्चे तेल की कीमतें अत्यधिक प्रेशर में हैं और आने वाले लंबे समय तक उनके ऐसे ही हाई लेवल पर बने रहने की संभावना है. इसका देश के आयात बिल पर असर पड़ेगा. कीमतें लंबे समय तक ऊंची रहीं तो देश की आर्थिक वृद्धि भी धीमी होने की पाॅसिबिलिटी है, भारत द्वारा आयात की जाने वाली अन्य वस्तुओं की कीमतें भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ेंगी. वैश्विक अर्थव्यवस्था भी इस प्रेशर के कारण प्रभावित होगी तो हमारे निर्यात पर भी इसका प्रभाव पड़ना तय है.

इंडिया रेटिंग्स के रिसर्च डायरेक्टर और अर्थशास्त्री सुनील सिन्हा के अनुसार इस हमले ने वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता बढ़ाई है और इसका असर तेल और अन्य जिंसों पर भी पड़ने लगा है. इन सबका सीधा असर भारतीय इकनॉमी पर पड़ेगा, क्योंकि भारत रूस से तेल और यूक्रेन से सनफ्लॉवर ऑयल का आयात करता है.

रेटिंग एजेंसी ICRA ने भी कहा है कि चूंकि हमारा देश आयातित तेल पर निर्भर है, इसलिए रूस के आक्रमण का शॉर्ट टर्म प्रभाव भारत पर मुद्रास्फीति के प्रेशर के माध्यम से होगा. तेल-गैस जैसे कुछ क्षेत्रों और लौह व अलौह धातुओं दोनों को इस प्रवृत्ति से कुछ लाभ हो सकता है, पर केमिकल, फर्टिलाइजर, गैस यूटिलिटी, रिफाइनिंग और मार्केटिंग जैसे तेल पर सीधे निर्भर रहने वाले सेक्टर पर नेगेटिव प्रभाव पड़ेगा.

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