हिरासत में मौत के मामले में गुजरात की जामनगर कोर्ट ने बर्खास्त आईपीएस अफसर संजीव भट्ट को उम्रकैद की सजा सुनाई है. संजीव भट्ट के साथ उनके सहयोगी को भी उम्रकैद की सजा मिली है. 1990 में जामनगर में बंद के दौरान हिंसा हुई थी. उस वक्त संजीव भट्ट जामनगर के एएसपी थे.
बंद के दौरान हुई हिंसा के बाद पुलिस ने 133 लोगों को गिरफ्तार किया था. पुलिस कस्टडी में ही एक शख्स की मौत हो गई थी. उस शख्स के साथ मारपीट का आरोप संजीव भट्ट और उनके साथी पर लगा था. बाद में संजीव भट्ट और उनके साथी के खिलाफ केस दर्ज किया गया. 2011 में राज्य सरकार ने संजीव भट्ट के खिलाफ ट्रायल की परमिशन दी थी.
संजीव भट्ट को बिना किसी मंजूरी के गैरहाजिर रहने और आवंटित सरकारी वाहन के दुरुपयोग को लेकर 2011 में निलंबित कर दिया गया था, और 2015 में बर्खास्त कर दिया गया था.
अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया था कि यह मामला एक सांप्रदायिक दंगें से जुड़ा था जब भट्ट ने सौ से अधिक लोगों को हिरासत में लिया था और इनमें से एक हिरासत में लिए गए व्यक्ति की मौत उसकी रिहाई के बाद अस्पताल में हुई थी. मृतक प्रभुदास के घरवालों ने आरोप लगाया था कि संजीव भट्ट ने अपने साथियों के साथ प्रभुदास के साथ मारपीट की, जिस वजह से प्रभुदास की मौत हो गई.
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