अयोध्या, काशी और मथुरा के बाद उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के संभल में शाही जामा मस्जिद (Sambhal Jama Masjid) के मंदिर होने का दावा किया जा रहा है. इस मामले में 19 नवंबर को सिविल कोर्ट में एक याचिका दायर की गई. कोर्ट के आदेश के बाद उसी दिन शाम में एडवोकेट कमिश्नर की टीम ने करीब दो घंटे तक मस्जिद का सर्वे किया.
रविवार, 24 नवंबर की सुबह एडवोकेट कमिश्नर की टीम दोबारा सर्वे के लिए मस्जिद पहुंची थी. इस दौरान पथराव किया गया और कई गाड़ियों में आग भी लगा दी गई. पुलिस ने भीड़ को नियंत्रण में करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े और लाठीचार्ज किया.
बवाल के दौरान फायरिंग भी हुई, जिसमें चार लोगों के मौत की पुष्टि हुई है. वहीं पुलिस अधीक्षक के पीआरओ के पैर में गोली लगी, सर्किल अधिकारी को छर्रे लगे हैं. हिंसा में 15 से 20 सुरक्षाकर्मी घायल हुए हैं.
रविवार को सर्वे के दौरान क्या हुआ?
मुरादाबाद कमिश्नर आंजनेय कुमार सिंह ने मीडिया से बातचीत में बताया, "शुरुआत में सब कुछ ठीक था. लगभग दो घंटे तक ठीक-ठाक सर्वे हुआ, कोई दिक्कत नहीं हुई. इस दौरान वहां भीड़ जमा हो गई. पहले लोगों ने नारेबाजी की, इसके कुछ देर बाद पथराव शुरू हो गया. पुलिस ने भीड़ को मौके से हटाया. लोग मस्जिद परिसर तक नहीं पहुंच पाए."
उन्होंने आगे कहा,
"11 बजे के बाद जब टीम सर्वे करके निकली तो भीड़ ने खूब पथराव करना शुरू कर दिया. तीन तरफ से पथराव हो रहा था. पुलिस ने उसके लिए बल प्रयोग किया ताकि सुरक्षित रूप से सर्वे टीम को निकाला जा सके. आंसू गैस के गोले भी छोड़े और प्लास्टिक बुलेट्स का भी इस्तेमाल किया गया. वहां पर तीन तरफ से तीन ग्रुप थे, इसी बीच गोली चली. गोली कौन से ग्रुप ने किस पर चलाई, ये कैसे हुआ... लेकिन जो गोली चली उसमें एसपी के पीआरओ के पैर में गोली लगी. हंगामे के दौरान डिप्टी कलेक्टर का पैर फ्रैक्चर हो गया. CO साहब को छर्रा लगा है. करीब 15-20 जवान घायल हुए हैं.
कमिश्नर सिंह ने बताया कि मस्जिद के ऊपर भी पथराव हुआ था.
सुबह साढ़े सात बजे से लेकर 11 बजे तक चले इस सर्वे के बाद एडवोकेट कमिश्नर का सर्वे पूरा हो गया. पूरे सर्वे की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी कराई गई है. अब इस मामले में एडवोकेट कमिश्नर 29 नवबंर को अपनी रिपोर्ट कोर्ट में पेश करेंगे.
कोर्ट में याचिका और सर्वे का आदेश
हरि शंकर जैन, पार्थ यादव, महंत ऋषिराज गिरि सहित 8 लोगों की ओर से सिविल कोर्ट में याचिका दायर की गई है. हिंदू पक्ष की ओर दायर याचिका में दावा किया गया है कि जहां पर जामा मस्जिद है, वही भगवान महादेव और भगवान विष्णु का सदियों पुराना श्री हरिहर मंदिर है, जो भगवान कल्कि को समर्पित है.
इस दावे के बाद विवाद बढ़ गया है. सवाल है कि किस आधार पर मंदिर होने की बात कही जा रही है.
बता दें कि संभल शहर के बीचों-बीच मोहल्ला कोट में जामा मस्जिद स्थित है. मस्जिद की आगे तरफ हिंदू आबादी और पीछे की तरफ मुस्लिम आबादी रहती है.
याचिका में बताया गया है कि यह इमारत एक संरक्षित स्मारक है जिसे प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम, 1904 के तहत 22 दिसंबर 1920 को अधिसूचित किया गया था. इसके साथ ही कहा गया है कि यह राष्ट्रीय महत्व की इमारत भी है.
क्विंट हिंदी से बातचीत में हिंदू पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा, "पहली बात ये कि यह ASI संरक्षित स्मारक है. सवाल ये है कि यह मस्जिद कैसे हो गई. यह ASI द्वारा नोटिफाइड स्मारक है. ASI कब कब्जे से हट गई. कब ASI का बोर्ड नोंचकर फेंक दिया गया. ASI को जाने के लिए उनसे इजाजत लेनी होती है."
बता दें कि विष्णु शंकर जैन वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद मामले में भी अधिवक्ता हैं.
याचिका में ASI पर "संबंधित संपत्ति पर नियंत्रण रखने में विफल" रहने का आरोप लगाया है. साथ ही कहा गया है कि "ASI के अधिकारी मूकदर्शक बने हुए हैं और वे मुस्लिम समुदाय लोगों द्वारा डाले गए दबाव के आगे झुक गए हैं."
याचिका में कहा गया है कि वादी हिंदू मूर्ति पूजक और भगवान शिव और विष्णु के उपासक हैं और ये उनका अधिकार है कि वो कल्कि अवतार के धर्मस्थल में प्रार्थना कर सकें. याचिकाकर्ताओं ने इस मस्जिद को सभी के लिए खोलने और यहां सभी के आने-जाने की व्यवस्था करने की मांग की है.
अदालत ने 19 नवंबर को याचिका स्वीकार करते हुए सर्वे का नोटिस जारी किया था. मामले में अगली सुनवाई 29 नवंबर को होगी.
"ये एक पॉलिटिकल स्टंट है"
वहीं, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि उन्हें मस्जिद को लेकर दायर याचिका के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. कोर्ट के आदेश के बाद ही जिला पुलिस और प्रशासन की तरफ से सर्वे को लेकर जानकारी दी गई.
क्विंट हिंदी से बातचीत में मस्जिद कमेटी के अध्यक्ष और अधिवक्ता जफर अली ने बताया कि उन्हें कोर्ट में दायर याचिका के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. वे कहते हैं, "हमें शाम 6 बजे डीएम साहब ने नोटिस दिया था. सर्वे करने आई टीम ने तकरीबन दो घंटे तक पूरी मस्जिद की वीडियोग्राफी की और फिर चले गए."
मुस्लिम पक्ष से जुड़े अधिवक्ता मसूद अहमद कहते हैं, "बाहर के लोगों ने यहां आकर दावा दायर किया है. यहां इस तरह की कोई बात नहीं है. इस तरह से हर मस्जिद के अंदर मंदिर और हर मंदिर के अंदर मस्जिद ढूंढना कोई अच्छी बात नहीं है. ये एक पॉलिटिकल स्टंट है. देश संविधान और कानून से चलता है."
इसके साथ ही वो कहते हैं, "एक ही दिन दावा दायर किया गया और उसी दिन सर्वे कमीशन करवा दिया गया. पता नहीं क्या जल्दी थी?"
हिंदू पक्ष के दावे का आधार
हिंदू पक्ष ने अपनी याचिका में कई ऐतिहासिक तथ्यों के जरिए मस्जिद के स्थान पर श्री हरिहर मंदिर होने का दावा किया है.
अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन दावा करते हुए कहते हैं कि बाबरनामा से लेकर आइन-ए-अकबरी और ASI की रिपोर्ट में ये बात है कि यहां पहले हिंदू मंदिर हुआ करता था, जिसे मस्जिद में तब्दील कर दिया गया.
याचिका में दावा करते हुए कहा गया है, "1527-28 में बाबर सेना के लेफ्टिनेंट हिंदू बेग ने संभल में श्री हरिहर मंदिर को आंशिक रूप से ध्वस्त कर दिया था. मुसलमानों ने मंदिर की इमारत पर कब्जा कर लिया और उसे मस्जिद के रूप में इस्तेमाल करने लगे."
याचिका में बाबरनामा के हवाले से दावा किया गया है कि "933 हिजरी में उसने (हिंदू बेग) एक हिन्दू मंदिर को मस्जिद संभल में परिवर्तित कर दिया था; यह बाबर के आदेश पर किया गया था और इसकी स्मृति में एक शिलालेख है जो आज भी मस्जिद पर मौजूद है."
याचिकाकर्ताओं ने अपने दावे के पक्ष में अकबर के शासनकाल में फारसी भाषा में लिखे गए अबुल फजल के इतिहास 'आइन-ए-अकबरी' का भी हवाला दिया है.
हिंदू पक्ष की तरफ से दायर याचिका में भारत सरकार के गृह मंत्रालय, सांस्कृतिक मंत्रालय, भारत के पुरातत्व सर्वे, पुरातत्व सर्वे के मेरठ जोन के अधीक्षक, संभल के जिलाधिकारी और मस्जिद की प्रबंधन समिति को प्रतिवादी बनाया गया है.
150 साल पुरानी ASI की रिपोर्ट में क्या है?
याचिका में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की 145 साल पुरानी रिपोर्ट- 'Tours in the Central Doab and Gorakhpur 1874–1875 and 1875–1876' का हवाला दिया गया है. इस रिपोर्ट में पेज 24 से 27 तक संभल का जिक्र मिलता है. रिपोर्ट में कहा गया है, "संभल की मुख्य इमारत जामी मस्जिद है, जिसके बारे में हिंदू दावा करते हैं कि यह मूलतः हरि मंदिर था."
इसमें आगे कहा गया है,
"संभल के कई मुसलमानों ने मेरे सामने कबूल किया कि बाबर के नाम वाला शिलालेख जाली था और मुसलमानों को इमारत पर कब्जा सैनिक विद्रोह के समय तक, या उससे थोड़ा पहले, लगभग 25 साल पहले मिला था. उन्होंने इमारत पर बलपूर्वक कब्जा किया; और उस समय जिले के जज के सामने इस मामले को लेकर एक मुकदमा चला और मुसलमानों ने मुख्य रूप से जाली शिलालेख के जरिए और साथ ही सभी मुसलमानों के एक साथ मिलकर हिंदुओं के खिलाफ झूठी गवाही देने की वजह से, जो अल्पसंख्यक थे, यह मामला जीता."
ASI की रिपोर्ट में कहा गया है कि इमारत का "गुंबद ईंटों से बना है और कहा जाता है कि इसे प्रसिद्ध पृथ्वी राजा ने फिर से बनवाया था (जैसा कि यह अब है)."
रिपोर्ट में आगे कहा गया है, "...और मैं केवल इतना कह सकता हूं कि, कई जगहों पर जहां प्लास्टर टूटा हुआ था, जांच करने पर मैंने पाया कि कुछ जगहों पर पत्थर बाहर निकले हुए थे. मेरा मानना है कि मुसलमानों ने ज्यादातर पत्थरों को उखाड़ दिया, खास तौर पर उन पत्थरों को जिनमें हिंदू धर्म के निशान थे, और मूर्तियों को दबाकर पत्थरों का फर्श बना दिया..."
याचिकाकर्ताओं में से एक महंत ऋषिराज गिरी ने क्विंट हिंदी से कहा, "हमें पूजा का अधिकार दिया जाए. हम किसी की भावनाओं को आहत नहीं करना चाहते हैं. हम कोई नाजायज मांग नहीं कर रहे हैं. हम कानूनी प्रक्रिया के तहत अपनी मांग रख रहे हैं. कोर्ट जो फैसला करेगी, हमें मंजूर होगा."
हालांकि, मुस्लिम पक्ष ने हिंदू पक्ष के सभी दावों को खारिज कर दिया है.
मस्जिद कमेटी के अध्यक्ष और अधिवक्ता जफर अली ने कहा, "हिंदू पक्ष के पास कोई सबूत नहीं है कि वहां पर मंदिर था. हमारे पास सारा प्रमाण, सारे सबूत, सारे साक्ष्य मौजूद हैं. हम इसको कोर्ट में प्रूव करेंगे."
अधिवक्ता मसूद अहमद कहते हैं, "मस्जिद को लेकर इस तरह की दावेदारी पहले कभी नहीं हुई है. ऐसा पहली बार हुआ है. यहां के हमारे हिंदू भाई भी इसको लेकर नाराज हैं कि कहां से लोग आकर यहां दावेदारी कर रहे हैं."
हिंदू पक्ष के दावों में कितना दम?
बृजेन्द्र मोहन शंखधर ने अपनी किताब 'संभल: एक ऐतिहासिक सर्वेक्षण' में बाबर या हिंदू बेग द्वारा मस्जिद निर्माण की बात को सिरे से खारिज किया है.
वे लिखते हैं, "अपने शासनकाल की शुरुआत में बाबर ने खुद संभल का दौरा किया था. हालांकि, इसमें कोई संदेह नहीं है कि उन्होंने संभल में जामा मस्जिद का निर्माण नहीं करवाया था, जिसे गलती से उनके नाम से जाना जाता है."
"जो मस्जिद अभी भी मौजूद है, उसका निर्माण अमीर हिंदू बेग ने भी नहीं करवाया था, जिसे कुछ इतिहासकारों ने इसका निर्माता बताया है. इस भव्य मस्जिद में लिए शिलालेख अब तक की सबसे बड़ी ऐतिहासिक जालसाजी हैं."
बृजेन्द्र मोहन शंखधर लिखते हैं, "यह मानना असंभव है कि बाबर ने ही विष्णु मंदिर के स्थान पर मस्जिद बनवाई थी, क्योंकि मुस्लिम शासन के इतने शताब्दियों के दौरान विष्णु मंदिर को इतने ऊंचे स्थान पर बने रहने की अनुमति कभी नहीं दी गई होगी."
इसके साथ ही वो लिखते हैं कि ASI की 1879 की रिपोर्ट ने बाबर की संभल मस्जिद के मिथक को स्पष्ट रूप से तोड़ दिया है.
तुगलक काल में मस्जिद निर्माण की बात
बीबीसी से बातचीत में संभल के इतिहास पर 'तारीख-ए-संभल' किताब लिखने वाले मौलाना मोईद कहते हैं, "बाबर ने इस मस्जिद की मरम्मत करवाई थी, ये सही नहीं है कि बाबर ने इस मस्जिद का निर्माण करवाया था.”
मौलाना मोईद कहते हैं, "ये ऐतिहासिक तथ्य है कि बाबर ने लोधी शासकों को हराने के बाद 1526 में संभल का दौरा किया था. लेकिन बाबर ने जामा मस्जिद का निर्माण नहीं करवाया था." उनके मुताबिक, बहुत संभव है कि इस मस्जिद का निर्माण तुगलक काल में हुआ हो. क्योंकि इसकी निर्माण शैली भी मुगल काल से मेल नहीं खाती है.
प्रिंसिपल एम. उसमान की किताब 'कठेर रूहेलखंड पश्चिमी भाग (600 ले 1857 ई.)' में भी इस बात का जिक्र है कि तुगलक काल में संभल में एक मस्जिद का निर्माण हुआ था. किले के अंदर और संभल क्षेत्र के किसी भी स्थान पर इस मस्जिद के निर्माण से पहले पूर्ण रूप से कोई पक्का भवन नहीं था और न ही किसी पक्के भवन के अवशेष थे.
अपनी किताब में एम. उसमान लिखते हैं, "पूर्व तुगलक सुलतान (नासिरुद्दीन महमूद) ने संभल में पुराने किले के पश्चिमी भाग में पक्की ईंटों से उस स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण कराया, जहां वर्तमान में जामा मस्जिद स्थित है."
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)