ADVERTISEMENTREMOVE AD

समलैंगिक विवाह को मान्यता देने पर SC में सुनवाई शुरू, यहां क्या दलीलें दी गईं?

Same Sex marriage: जेंडर की अवधारणा यह नहीं कि आपके जननांग कहां हैं, यह कहीं अधिक जटिल है- CJI

Published
भारत
2 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने बुधवार, 18 अप्रैल से समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के लिए दायर की गयीं याचिकाओं पर सुनवाई करना शुरू कर दिया है. इस पीठ में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली शामिल हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कि अभी तक के सुनवाई में क्या-क्या हुआ?

ADVERTISEMENTREMOVE AD
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने आज सुनवाई के बीच जेंडर के दायरे और मुद्दे पर मौखिक चर्चा की कि क्या जेंडर किसी व्यक्ति के जैविक लिंग से परे भी विस्तारित होता है?

डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने पीठ के समक्ष कहा कि अगर अदालत को भारत में विवाह समानता प्रदान करनी है, तो इसे सेम-सेक्स मैरिज पर रोक नहीं लगानी चाहिए. इसके बजाय "शारीरिक लैंगिकता और लिंग स्पेक्ट्रम के साथ दो सहमत वयस्कों" को विवाह का अधिकार प्रदान करें.

एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश डॉ. सिंघवी ने तर्क दिया कि "ऐसे व्यक्तियों के संयोजन की एक पूरी श्रृंखला है, जिनकी विशेष जैविक विशेषताएं हैं. वे केवल पुरुष और महिला नहीं है. एक श्रेणी" सेक्स "है और दूसरी श्रेणी" जेंडर "है. इसलिए एक पुरुष शरीर को महिला मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियों में रंग सकता है, और इसके विपरीत भी संभव है."

सिंघवी ने कहा "अब LGBTQIA++ है. इस "++" में रंगों का एक पूरा स्पेक्ट्रम है. अब यदि आप एक ही व्यक्ति के विवाह को मानते हैं तो आपका मतलब समान-लिंग तक सीमित नहीं होना चाहिए. इसलिए सही सूत्रीकरण होना चाहिए "शारीरिक जैंडर और सेक्स स्पेक्ट्रम के साथ दो सहमत वयस्क."

वहीं, केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल ने तर्क दिया कि जैविक लिंग एक व्यक्ति का लिंग है. उन्होंने कहा कि "सामाजिक संबंधों की स्वीकृति कभी भी कानून के निर्णयों पर निर्भर नहीं होती है. यह केवल भीतर से आती है. मेरा निवेदन यह है कि विशेष विवाह अधिनियम की विधायी मंशा पूरी तरह से जैविक पुरुष और जैविक महिला के बीच संबंध रही है."

इस पर CJI चंद्रचूड़ ने सॉलिसिटर जनरल मेहता को इस बिंदु पर बीच में ही रोक दिया और मौखिक रूप से कहा कि "एक जैविक मनुष्य की धारणा पूर्ण है, जो अंतर्निहित है."

हालांकि, एसजी मेहता ने असहमति जताई और कहा कि "जैविक मनुष्य का अर्थ है, जैविक मनुष्य, कोई धारणा नहीं है."

वहीं, CJI की टिप्पणी का खंडन करते हुए एसजी मेहता ने कहा कि...

"जैविक पुरुष का मतलब जैविक जननांगों के साथ एक पुरुष है. मैं उस वाक्यांश का उपयोग नहीं करना चाहता था. यदि धारणा को पुरुष या एक महिला पर निर्णय लेने के लिए मार्गदर्शक कारक माना जाएगा तो मैं कई कार्य दिखाऊंगा जो आपको को अनायास ही नॉन वर्केबल बना देंगे. अगर मेरे पास एक पुरुष के जननांग हैं, हालांकि अन्यथा मैं एक महिला हूं, जैसा कि सुझाव दिया जा रहा है, मुझे सीआरपीसी के तहत क्या माना जाएगा? एक महिला? क्या मुझे 160 बयान के लिए बुलाया जा सकता है? कई मुद्दे हैं. यह बेहतर होगा अगर यह संसद के समक्ष जाए, संसद में प्रतिष्ठित सांसद हैं. संसदीय समितियां उस तरह से कार्य नहीं कर रही हैं जैसे हम संसद के कार्य को देखते हैं. समितियों में सभी दल के सदस्य होते हैं."
एसजी मेहता

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

0
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×