समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं (India Same Sex Marriage Plea) पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया है. केंद्र सरकार ने ऐसी सभी 15 याचिकाओं का विरोध किया, जिनमें समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग की गई है. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पेश किए गए अपने हलफनामे में कहा कि समलैंगिक विवाह को मंजूरी नहीं दी जा सकती है. ये एक परिवार की भारतीय अवधारणा के खिलाफ है. भारत में फैमिली की अवधारणा पति-पत्नी और उनसे पैदा हुए बच्चों से होती है. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से इन सभी याचिकाओं को खारिज करने की मांग की है.
केंद्र का कहना है कि समान सेक्स संबंध की तुलना भारतीय परिवार की पति, पत्नी से पैदा हुए बच्चों के कॉनसेप्ट से नहीं की जा सकती. विवाह की धारणा विपरीत सेक्स के मेल को मानती है. केंद्र ने कहा कि प्रारंभ में ही विवाह की धारणा अनिवार्य रूप से विपरीत सेक्स के दो व्यक्तियों के बीच मिलन से होती है.
"भारतीय परिवार अवधारणा के खिलाफ"
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि समलैंगिक संबंध और विषमलैंगिक संबंध स्पष्ट रूप से अलग-अलग वर्ग हैं, जिनको किसी भी सूरत में एक समान नहीं माना जा सकता है. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि समान-लिंग वाले लोगों के जीवन साथी के तौर पर रहने को भले ही अब डिक्रिमिनलाइज कर दिया गया है, इसके बावजूद पति, पत्नी और बच्चों की भारतीय परिवार की इकाई की अवधारणा के साथ इसकी तुलना नहीं हो सकती है.
केंद्र सरकार ने आगे कहा कि किसी भी देश का न्यायशास्त्र, चाहे वह संहिताबद्ध कानून के माध्यम से हो या सामाजिक मूल्यों, विश्वासों और सांस्कृतिक इतिहास पर हो, एक ही लिंग के दो व्यक्तियों के बीच विवाह को न मान्यता प्राप्त है और न ही स्वीकृत है.
"इसे निजता का मुद्दा नहीं माना जा सकता"
केंद्र ने कहा विवाह किसी व्यक्ति की निजता के क्षेत्र में केवल एक कॉन्सेप्ट के रूप में नहीं छोड़ा जा सकता है वो भी तब जब इसमें रिश्ते को औपचारिक बनाने और उससे उत्पन्न होने वाले कानूनी परिणामों जैसी चीज इसमें शामिल हो. विवाह, कानून की एक संस्था के रूप में, इसके कई वैधानिक और अन्य परिणाम हैं. इसलिए, इस तरह के मानवीय संबंधों की किसी भी औपचारिक मान्यता को दो वयस्कों के बीच सिर्फ एक निजता का मुद्दा नहीं माना जा सकता है.
"सामाजिक मूल्यों का ध्यान रखा जाए"
केंद्र सरकार ने कहा कि IPC की धारा 377 का डिक्रिमिनलाइजेशन समान-लिंग विवाह के लिए मान्यता हासिल करने के दावे को जन्म नहीं दे सकता है. केंद्र ने कहा कि प्रकृति में विषमलैंगिक तक सीमित विवाह की वैधानिक मान्यता पूरे इतिहास में एक आदर्श है और राज्य के अस्तित्व और निरंतरता दोनों के लिए बुनियादी पहलू है. केंद्र सरकार के जवाबी हलफनामे में कहा गया है कि इसलिए इसके सामाजिक मूल्य को ध्यान में रखते हुए विवाह के अन्य रूपों का बहिष्कार करना और केवल विषमलैंगिक विवाह को मान्यता देना राज्य का एक जरूरी हित है.
"समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती"
सुप्रीम कोर्ट सोमवार को इस मामले की सुनवाई करेगा. अपने 56 पेज के हलफनामे में सरकार ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने अपने कई फैसलों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की व्याख्या स्पष्ट की है. इन फैसलों की रोशनी में भी इस याचिका को खारिज कर देना चाहिए क्योंकि उसमें सुनवाई करने लायक कोई तथ्य नहीं है. मेरिट के आधार पर भी उसे खारिज किया जाना ही उचित है. कानून में उल्लेख के मुताबिक भी समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती. क्योंकि उसमे पति और पत्नी की परिभाषा जैविक तौर पर दी गई है. उसी के मुताबिक दोनों के कानूनी अधिकार भी हैं. समलैंगिक विवाह में विवाद की स्थिति में पति और पत्नी को कैसे अलग- अलग माना जा सकेगा?
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