समलैंगिक विवाहों (Same-Sex Marriages) का मुद्दा अदालत में है, इसी बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरफ से भी इसपर बयान आया है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले (Dattatreya Hosabale) ने मंगलवार यानी 14 मार्च 2023 को कहा कि RSS समलैंगिक विवाहों (Same-Sex Marriages) पर केंद्र के मत से सहमत हैं और उन्होंने दावा किया कि विवाह केवल विपरीत लिंग के व्यक्तियों के बीच हो सकता है.
होसबोले ने कहा कि विवाह कोई समझौता नहीं है बल्कि ये संस्कार है और संघ समाज के मुताबिक बात करता है. उन्होंने आगे कहा,
विवाह दो विपरीत लिंग के बीच हो सकता है. हिंदू जीवन में विवाह 'संस्कार' है, यह आनंद के लिए नहीं है. दो व्यक्ति विवाह करते हैं और समाज के लाभ के लिए एक परिवार बनाते हैं . विवाह न तो यौन आनंद के लिए और न ही अनुबंध के लिए है.दत्तात्रेय होसबोले, RSS महासचिव
दरअसल, समलैंगिक विवाह का मामसा सुप्रीम कोर्ट में है. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इसे पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेजा है. इस मामले पर 18 अप्रैल को अदालत में अगली सुनवाई होगी.
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका का किया विरोध
दरअसल, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं का विरोध किया है, जिसमें दावा किया गया है कि वे व्यक्तिगत कानूनों और स्वीकृत सामाजिक मूल्यों के नाजुक संतुलन के साथ "पूर्ण विनाश" का कारण बनेंगे.
सुप्रीम कोर्ट में संविधान पीठ को क्यों भेजा केस?
सोमवार (13 मार्च) को, सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को समान-लिंग विवाहों को कानूनी मान्यता देने की याचिकाओं को यह कहते हुए भेज दिया कि यह "बहुत ही मौलिक मुद्दा" है.
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि याचिका उन अधिकारों से संबंधित मुद्दों को उठाती है जो प्रकृति में संवैधानिक हैं और इसलिए, पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा सुनवाई की जानी चाहिए.
अदालत के सामने उठाए गए बहुत सारे मुद्दे ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के प्राकृतिक संवैधानिक अधिकार के अनुसार शादी करने के अधिकार से संबंधित हैं. हमारा मानना है कि संविधान के 145 (3) के तहत 5 न्यायाधीशों द्वारा इस मुद्दे का समाधान किया जाना चाहिए. हम इस मामले को संविधान पीठ के समक्ष सुनवाई का निर्देश देते हैं.सुप्रीम कोर्ट
केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, "विवाह केवल हिंदू के लिए एक कॉन्ट्रैक्ट नहीं है और मुस्लिम कानून में ऐसा हो सकता है. इस्लाम में भी, यह पुरुष और महिला के बीच है. जिस वक्त एक मान्यता प्राप्त संस्था के रूप में विवाह समान लिंग के बीच होता है, तो सवाल बच्चों के गोद लेने पर भी उठेगा. संसद को लोगों की इच्छा को जांचना और देखना होगा, बच्चे के मनोविज्ञान की जांच करनी होगी. क्या इसे इस तरह से उठाया जा सकता है, संसद सामाजिक लोकाचार का कारक होगी."
इस पर चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, "एक समलैंगिक या समलैंगिक जोड़े के गोद लिए बच्चे को समलैंगिक या समलैंगिक होना जरूरी नहीं है." बता दें कि अब इस मामले की सुनवाई 18 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में संविधान पीठ करेगी.
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