व्यापम केस में मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान को झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता केके मिश्रा के खिलाफ मानहानि की सजा को खारिज कर दिया है. दरअसल, मिश्रा ने आरोप लगाया था कि व्यापम मामले में मुख्यमंत्री शिवराज और उनकी पत्नी साधना सिंह सीधे तौर पर शामिल हैं. जिसके जवाब में मुख्यमंत्री शिवराज ने उन पर मानहानि का मुकदमा कर दिया. नवंबर 2017 में ट्रायल कोर्ट ने मिश्रा को दो साल की सजा सुनाई.
अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारी वकील ने राज्य सरकार के आदेश पर ‘जल्दबाजी’ में काम किया था.
पब्लिक प्रॉसीक्यूटर ने IPC की धारा 197/199 के तहत याचिका दायर की थी, जो उन्हें सरकारी कर्मचारियों की ओर से मानहानि के मामले दर्ज करने की इजाजत देता है.
मिश्रा के मुताबिक, उन्होंने व्यापम घोटाले में मुख्यमंत्री के परिवार की संलिप्तता का आरोप लगाया था. इस पर सरकार ने मानहानि की याचिका जिला कोर्ट में दायर की थी. कोर्ट ने 17 नवंबर, 2017 को उन्हें 2 साल की सजा सुनाई और साथ ही 25 हजार रुपये जुर्माना लगाया सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे प्रकरण को ही खारिज कर दिया है.
जस्टिस रंजन गोगोई, आर भानुमति और एम शांतनगुदार की बेंच ने कहा कि पब्लिक प्रॉसीक्यूटर ने माना है कि उन्होंने राज्य सरकार के आदेशों पर शिकायत दर्ज की थी.
मुख्यमंत्री की ओर से दाखिल मानहानि संबंधी यह प्रदेश का पहला मुकदमा था. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव ने ट्वीट कर कहा- झूठ की उम्र बहुत कम होती है, जीत हमेशा सत्य की होती है.
केके मिश्रा की ओर से सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ एडवोकेट विवेक तन्खा, केटीएस तुलसी, इंदिरा जयसिंह, दुष्यंत दवे, अजय गुप्ता, वैभव श्रीवास्तव और रविकांत पाटीदार खड़े हुए.
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