सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार, 7 दिसंबर को वकील-कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज (Sudha Bharadwaj) को दी गई डिफॉल्ट जमानत पर रोक लगाने के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) द्वारा दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया. भीमा कोरेगांव मामले में सुधा भारद्वाज की गिरफ्तारी के लगभग तीन साल बाद 1 दिसंबर को बॉम्बे हाई कोर्ट ने उन्हें डिफॉल्ट जमानत दी थी, जिसके खिलाफ NIA ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस रवींद्र भट और जस्टिस बेला त्रिवेदी की बेंच ने कहा कि बॉम्बे हाई कोर्ट के ऑर्डर में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है.
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी ने सुनवाई के दौरान राष्ट्रीय जांच एजेंसी का प्रतिनिधित्व करते हुए तर्क दिया कि हाई कोर्ट का यह मानना गलत था कि भारद्वाज डिफॉल्ट जमानत की हकदार थी. एडिशनल सॉलिसिटर ने 2020 के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का विरोध किया, जिसके आधार पर हाई कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला था.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने NIA की दलीलों में कोई दम नहीं पाया और अपील को खारिज कर दिया. नतीजतन सुधा भारद्वाज अब बुधवार, 8 दिसंबर को मुंबई में विशेष NIA कोर्ट के सामने पेश होंगी, जैसा कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने आदेश में निर्देशित किया था. NIA की यह कोर्ट तब संबंधित जमानत शर्तों को निर्धारित करने के बाद उन्हें डिफॉल्ट जमानत पर रिहा करेगा.
मजदूरों के अधिकारों के लिए लंबे समय से आवाज उठाने वाली कार्यकर्ता और आदिवासी अधिकार कार्यकर्ताओं की वकील सुधा भारद्वाज को 28 अगस्त 2018 को भीमा कोरेगांव मामले में कई अन्य कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार रक्षकों के साथ गिरफ्तार किया गया था. सुधा भारद्वाज मुकदमे के इंतजार में तीन साल से अधिक समय से हिरासत में हैं.
बॉम्बे हाई कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका को स्वीकार करते हुए मामले में आठ अन्य आरोपियों द्वारा दायर इसी तरह की याचिकाओं को खारिज कर दिया था.
हाई कोर्ट ने माना था कि नवंबर 2018 में सुधा भारद्वाज के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने के लिए पुणे पुलिस (जो शुरू में भीमा कोरेगांव मामले की जांच कर रहे थे) को अतिरिक्त समय देने के लिए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के पास ऐसा करने का अधिकार नहीं था. नतीजतन सुधा भारद्वाज सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत डिफॉल्ट जमानत की हकदार थीं.
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