महाराष्ट्र में MVA सरकार पर संकट के बादल छाए हुए हैं. शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे, कम से कम पार्टी के 20 विधायकों के साथ गुजरात के सूरत में एक रिसॉर्ट में डेरा डाले हुए हैं. ऐसे में महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी (MVA) सरकार का भविष्य अनिश्चित दिख रहा है.
सूत्रों के अनुसार, मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के करीबी सहयोगी शिंदे ने पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस और गुजरात बीजेपी अध्यक्ष सीआर पाटिल के साथ पूरी कवायद की योजना बनाई है.
ये पहला मौका नहीं है जब शिवसेना में आंतरिक विरोध हुआ है. शिवसेना के 30 से अधिक विधायकों के संपर्क में नहीं रहने के कारण उस समय की याद आ रही है जब 1966 में बाल ठाकरे द्वारा स्थापित दक्षिणपंथी पार्टी में आंतरिक विद्रोह हुआ था.
जब छगन भुजबल हुए थे शिवसेना विद्रोही
उद्धव ठाकरे सरकार में महाराष्ट्र सरकार में खाद्य और नागरिक आपूर्ति, उपभोक्ता मामलों के कैबिनेट मंत्री के रूप में कार्यरत, छगन भुजबल उन पहले विद्रोहियों में से एक थे जिनसे शिवसेना को निपटना पड़ा था.
साल था 1991. मझगांव के एक पार्टी विधायक भुजबल ने शिवसेना (B) के गठन के लिए पार्टी के 52 विधायकों में से 17 के समर्थन का दावा किया था. OBC ताकतवर भुजबल, बाल ठाकरे के चहेते थे. हालांकि, ठाकरे द्वारा मनोहर जोशी को महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता के रूप में नियुक्त करने के बाद दोनों अलग हो गए.
दिसंबर 1991 में भुजबल, शिवसेना के कुछ अन्य विधायकों के साथ, शरद पवार के विंग के तहत कांग्रेस में शामिल हो गए, जो अब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के प्रमुख हैं, जो महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा है.
NCP में अपने समय के दौरान, भुजबल ने उपमुख्यमंत्री और राज्य के गृह मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर काम किया.
जब चचेरे भाई ठाकरे ने छोड़ी सेना
हालांकि, शिवसेना को सबसे बड़ा झटका तब लगा जब बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने 2005 में पार्टी छोड़ दी. पार्टी छोड़ने के बाद राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना यानी मनसे नाम की पार्टी का गठन किया. उस समय मनसे को राज्य की राजनीति में बड़े पैमाने पर गेम-चेंजर के रूप में देखा गया.
राज ठाकरे ने 2005 शिवसेना के छोड़ने के पीछे पार्टी में लोकतंत्र की कमी को जिम्मेदार ठहराया था. हालांकि, मनसे ने तत्काल राजनीतिक सफलता भी प्राप्त की, क्योंकि नवगठित मनसे ने 2009 में 288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा में 13 सीटों पर जीत हासिल की थी. उसके बाद से पार्टी का ग्राफ नीचे की ओर ही बढ़ा है. क्योंकि, मनसे 2019 के विधानसभा चुनावों में केवल एक सीट जीतने में सफल रही.
बताया जाता है कि राज ठाकरे में स्पष्ट एजेंडे की कमी, एक दुर्गम नेता होने की छवि और भाई उद्धव ठाकरे के खिलाफ उनकी व्यक्तिगत टिप्पणियों ने उन्हें महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना के एक तेजतर्रार विकल्प की छवि को नुकसान पहुंचाया है.
नारायण राणे की कहानी
शिवसेना से निकाले जाने वालों में नारायण राणे का नाम भी चौंकाने वाला रहा है. नारायण राणे शिवसेना में एक शाखा प्रमुख के पद से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के नाम तक पहुंचे.
बता दें, साल 1999 में आठ महीने के लिए पहली शिवसेना-बीजेपी सरकार में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में नारायण राणे का नाम सामने आया था.
नारायण राणे को साल 2003 में पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में भी नामित किया गया था. लेकिन, राणे को 2005 में पार्टी से निष्कासित कर दिया गया, जब उन्होंने उद्धव के नेतृत्व को चुनौती दी थी. उन पर 'पार्टी विरोधी गतिविधियों' का आरोप लगाया गया था, जब उन्होंने आरोप लगाया था कि शिवसेना में टिकट और पद उम्मीदवारों को बेचे गए थे.
इसके बाद वह जल्द ही अन्य विधायकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए थे. लेकिन, साल 2017 में राणे ने कांग्रेस छोड़ दी थी. ये कहते हुए कि कांग्रेस पार्टी में कोई गुंजाइश नहीं है, उन्हें सीएम पद का वादा किया गया था. इसके बाद उन्होंने अपना खुद का संगठन, महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष बनाया, जिसका उन्होंने 2019 में बीजेपी में विलय कर दिया. उसके बाद वो राज्यसभा के लिए चुने गए.
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