सिक्किम (Sikkim) में अचानक आई बाढ़ (Flash Flood in Sikkim) में अब तक 14 लोगों की मौत हो गई है. 102 लोग लापता बताए जा रहे हैं. सेना के 23 जवान भी लापता हैं. ल्होनक झील में GLOF की घटना से भयानक तबाही मची है. अब, इसरो ने 4 अक्टूबर को बाढ़ से पहले और बाद की कुछ तस्वीरें साझा की हैं. ऐसे में आइए हम यहां जानने की कोशिश करेंगे कि आखिरकार बाढ़ कैसे आई? एक्सपर्ट ने पहले ही इस झील को लेकर क्या अलर्ट किया था?
ल्होनक झील का करीब 105 हेक्टयर यानी 65% हिस्सा बादल फटने से ओवरफ्लो हो गया. जिसके बाद पानी झील की दीवारों को तोड़ता हुआ, ढलान की ओर बढ़ गया. इस कारण तीस्ता नदी में बाढ़ आ गई.
इसरो की सैटेलाइट इमेज में झील में पानी की मात्रा में बदलाव साफ तौर पर दिख रहा है. झील का क्षेत्रफल 17 सितंबर को 162.7 और और 28 सितंबर को 167.4 हेक्टेयर था.
बाढ़ के बाद भी झील की तस्वीर ली गई है. 4 अक्टूबर की सुबह 6 बजे ली गई एक तस्वीर में सामने आया कि बाढ़ के बाद झील का पानी आधे से अधिक कम हो गया और इसमें केवल 60.3 हेक्टेयर पानी रह गया.
"17 सितंबर, 28 सितंबर और 4 अक्टूबर को झील क्षेत्र में अस्थायी परिवर्तन देखने को मिला. यह देखा गया है कि ल्होनक झील ओवरफ्लो हो गई और लगभग 105 हेक्टेयर भूमि बह गई. जिससे नीचे की ओर अचानक बाढ़ आ गई... सैटेलाइट डाटा का उपयोग कर झील पर निगरानी जारी रहेगी."इसरो
इकोनॉमिक्स टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (NRSC) के वैज्ञानिकों ने 10 साल पहले ही चेतावनी दी थी कि दक्षिण ल्होनक झील के कारण कोई आपदा दस्तक दे सकती है.
फरवरी 2013 में एक शोध पत्र में सैटेलाइट डेटा विश्लेषण का हवाला दिया गया था, जिसमें दिखाया गया कि दक्षिण ल्होनक ग्लेशियर 1962 और 2008 के बीच 1.9 किमी पीछे चला गया और दक्षिण लोनाक ग्लेशियर के आगे के भाग पर एक मोराइन-बांधित हिमनद झील का निर्माण हुआ.
शोध में बताया गया कि झील का क्षेत्रफल और आयतन महत्वपूर्ण है क्योंकि वे झील के विस्फोट के लिए उपलब्ध पानी की मात्रा को परिभाषित करते हैं. अध्ययनों से पता चलता है कि उत्तर-पश्चिमी सिक्किम में दक्षिण ल्होनक झील का क्षेत्रफल 1977 में 17.54 हेक्टेयर से बढ़कर 1989 में 37.3 हेक्टेयर, 2002 में 78.95 हेक्टेयर और 2008 में 98.73 हेक्टेयर हो गया था.
खतरनाक झीलों में शामिल ल्होनक
सिक्किम के आसपास चिन्हिंत 14-21 खतरनाक ग्लेशियल झीलों में से ल्होनक झील भी एक थी. शोध के अनुसार, इसी झील को संभावित हाई रिस्क बताया गया और इसके टूटने की संभावना जताई गई.
स्टडी पेपर में कहा गया है कि झील का क्षेत्रफल और आयतन महत्वपूर्ण है. क्योंकि वे विस्फोट के लिए उपलब्ध पानी की मात्रा को परिभाषित करते हैं. अध्ययनों से पता चलता है कि उत्तर-पश्चिमी सिक्किम में दक्षिण ल्होनक झील का क्षेत्रफल लगभग 1977 में 17.54 हेक्टेयर से बढ़कर 1989 में 37.3 हेक्टेयर हो गया था.
आपदा को लेकर किया था अलर्ट
2020 के राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने निचले इलाकों में अचानक बाढ़ आने, बांधों, बिजली घरों को संभावित नुकसान को लेकर चेतावनी दी थी. उनके अनुसार,
घुनथांग, डिकचगु, सिंगतम और रंगपो जैसे टाउनशिप संवेदनशील एरिया बताया गया. आकलन में सिंगताम और रंगपो के अलावा भारी निर्मित क्षेत्रों का भी जिक्र किया गया, जहां 4 अक्टूबर को आई बाढ़ में प्रभावित क्षेत्र हैं.
जैसे-जैसे ग्लोबल वार्मिंग के बीच दक्षिण ल्होनक ग्लेशियर 2008 और 2019 के बीच 400 मीटर पीछे खिसकता रहा, झीलें बढ़ती गईं. इसके बाद हुए कई अन्य अध्ययनों में भी यह बात सामने आई कि ग्लेशियल लेक में बाढ़ जैसी आपदा इंतजार कर रही थी और इसका कारण बादल फटने से लेकर भूस्खलन, हिमस्खलन या भूकंप तक कुछ भी हो सकता है. दक्षिण ल्होनक के बहाव से तीस्ता घाटी के डूबने की चिंता जताई गई.
14 की मौत, 102 लापता
इधर, सिक्किम सरकार ने बताया कि बाढ़ में अब तक 14 लोगों की मौत हो गई है. वहीं, 102 लोग लापता बताए जा रहे हैं, जिनमें 23 भारतीय सेना के जवान भी शामिल हैं. इसके अलावा, बाढ़ में 26 लोग घायल भी हैं.
BRO के प्रोजेक्ट स्वास्तिक के तहत उत्तरी सिक्किम के गंभीर रूप से प्रभावित चुंगथांग और मंगन क्षेत्र में राज्य प्रशासन के समन्वय में बचाव कार्यों के साथ-साथ क्षति को कम करने के लिए अभियान जारी है. क्षेत्र में चार महत्वपूर्ण पुल क्षतिग्रस्त हो गए हैं. 200 से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया है.
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