अमेरिका को कमजोर कर देंगे ट्रंप के पैंतरे
स्वामीनाथन एस अंकलश्वैरया ने इस बार टाइम्स ऑफ इंडिया के अपने कॉलम में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप के नारों पर सवाल उठाया है. ट्रंप भारत और चीन के खिलाफ नीतियां अपना कर अपने देश को महान नहीं बना सकते. उन्होंने चीन और मैक्सिको के सामान पर 45 और 35 फीसदी की ड्यूटी लगाने की वकालत की है. लेकिन ऐसा करने से न तो अमेरिका का कारोबार सुधरेगा और न ही उसके हाथ से लगातार छूटते जा रहे रोजगार लौटेंगे. अगर चीन और मैक्सिको के सामानों पर रोक लगेगी तो ये भारत, वियतनाम और थाईलैंड जैसे देशों से आ जाएंगे. नौकरियां भी कम मजदूरी वाले देशों में चली जाएंगी. अमेरिका नहीं लौटेंगी. उन्होंने पीटरसन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स का हवाला देते हुए कहा है कि यह ट्रेड वार को जन्म दे सकता है इससे अमेरिका में 40 लाख नौकरियां खत्म हो सकती हैं. स्वामी लिखते हैं कि एक वक्त था जब अमेरिकी स्किल और टेक्नोलॉजी सिरमौर थी और इसका उसने लाभ भी लिया. लेकिन अब हालात बदल चुके हैं. अगर ट्रंप नस्लीय घृणा को बढ़ावा देंगे और वैश्विक तंग नजरी को बढ़ावा देंगे तो उनका देश उसे महान बनाने वाले लोगों से हाथ धो बैठेगा.
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भारत को साबित करनी होगी अपनी महानता
हिंदुस्तान टाइम्स में मौजूदा भारत-पाक तनाव को विषय बनाते हुए करण थापर ने लिखा है कि अगर भारत महान होने का दावा करता है तो उसे इसे साबित करना होगा. भारत, पाकिस्तान के स्तर पर उतर कर बड़ा नहीं हो सकता. वह पाकिस्तानी सरकार और उसके आतंकवादियों की सजा पाकिस्तानी नागिरकों पर हमला कर नहीं दे सकता. हमारा निशाना वहां की सरकारें और आतंकवादी हो सकते हैं आम पाकिस्तानी नहीं. अगर आपको याद हो तो लिट्टे को हमने ही बढ़ावा दिया था. क्या इसके लिए इसके लिए आम भारतीयों को निशाना बनाने का तर्क जायज है? क्या खालिस्तानियों की अलगाववादी और उग्रवादी गतिविधियों के लिए सिख आबादी को निशाना बनाने का तर्क जायज हो सकता है? ऐसे हालात में हमें फर्क करना होगा, हम पाकिस्तानी सरकार के स्तर तक नीचे उतर कर खुद को श्रेष्ठ या महान साबित नहीं कर सकते. अगर हम समझते हैं कि भारत महान है तो उसके फैसलों और क्षमताओं से यह विशेषता झलकनी चाहिए. करण लिखते हैं, मैं अपने देश की तुलना किसी आर्टिस्ट के मास्टरपीस से करना पसंद करूंगा. मैं इसे मौत के घाट उतारने वालों की फायरिंग वॉल की तरह देखना पसंद नहीं करूंगा.
महिलाओं के खिलाफ है हमारी मानसिकता
हिन्दुस्तान टाइम्स में ललिता पणिकर ने अपने कॉलम में नीतीश कटारा हत्याकांड में न्याय के लिए संघर्ष करती उनकी मां नीलम कटारा के अपार धैर्य और जज्बे को सलाम करते हुए तीखे सवाल किए हैं. पणिकर कहती हैं ऑनर किलिंग के लिए समाज में मौजूद महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह जिम्मेदार हैं. भारत में यह पूर्वाग्रह पिछड़े और संभ्रांत दोनों समाजों में मौजूद है. हाल के आंकड़ों के मुताबिक पत्नियों की पिटाई में केरल देश में सबसे आगे है. वह कहती हैं कि क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम की असफलता और हमारी सामाजिक परंपराएं, दोनों महिलाओं के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार रही हैं. देश में पंचायती राज संस्था में सुधार और दूसरे राजनीतिक कदमों के साथ सिविल सोसाइटी, नारीवादियों और कानून में बदलाव से कुछ हद तक महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने में मदद मिली है. लेकिन अब भी उनके खिलाफ हिंसा की भयानक खबरें आती हैं. अगर भारत महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक जगहों में से एक है तो इसके लिए हमारा सामाजिक और राजनीतिक नजरिया दोनों जिम्मेदार है. महिलाओं के खिलाफ हिंसा से निपटने में दूसरी सरकारों की तरह ही एनडीए सरकार का भी रिकार्ड अच्छा नहीं रहा है. आप उन राजनीतिक दलों का भी क्या करेंगे, जिनकी जेसिका लाल हत्याकांड को लेकर यह राय थी आखिर वह पार्टी में शराब ही तो परोस रही थी.
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लालबहादुर शास्त्री की याद
अमर उजाला में रामचंद्र गुहा ने नरसिंह राव की उपलब्धियों की अनदेखी का सवाल उठाते हुए कहा है कि देश के एक और पीएम की विरासत पर गौर करने का वक्त आ गया है और वह हैं- लालबहादुर शास्त्री. शास्त्री के नेतृत्व में सशस्त्र बलों ने 1965 की लड़ाई शानदार ढंग से जीती और तीन साल पहले 1962 में चीन के हाथों पराजय की स्मृतियों को हटा दिया. उनका नारा था, जय जवान, जय किसान. शास्त्री को याद करने की अनेक वजहें हैं. आज जब कृषि क्षेत्र में तुरंत सुधार की जरूरत है और जब हमारे स्थायी कटु पड़ोसी के साथ तनाव एक बार फिर बढ़ गया है तो शास्त्री की काबिलियत से सीखने की जरूरत है. पीएम बनने के कुछ समय बाद काहिरा से लौटते हुए शास्त्री कराची में रुके थे. पाक राष्ट्रपति अयूब खान यह देख कर चकित थे कि कैसे छोटे कद और छब्बीस इंद के सीने वाला यह शख्स भारत जैसे विशाल देश का नेतृत्व कर रहा है. अर्थव्यवस्था की कई कमजोरियों का जिक्र करते हुए भी उन्होंने मोदी सरकार के कुछ कदमों को सही ठहराया है. लेकिन उन्होंने बड़े, छोटे और मझोले उद्योगों की ओर से निजी निवेश न होने पर चिंता जताई है. उनका कहना है कि सरकार राजकोषीय घाटा कम करने, विनिवेश की रफ्तार तेज करने और फिजिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बढ़ाने जैसे कदम कदम उठा कर सही काम कर रही है. लेकिन निजी निवेश में कमी चिंता का विषय है. यह वह वक्त है, जब सरकार को धैर्य न खोकर अपना फोकस बनाए रखने की जरूरत है. ऐसा लग रहा कि सरकार इकोनॉमी को शॉर्ट टर्म बूस्ट देने की फिराक में है. यह सरकार 7.6 फीसदी की आर्थिक विकास दर से लोगों को चौंकाना चाहती है. अगर सरकार इसी नीति पर चलती रही तो इकोनॉमी के लेकर उठाए गए इसके अच्छे कदम बेकार हो जाएंगे.
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इतिहास के सबक याद रखे भारत
इंडियन एक्सप्रेस में डाइवर्सिटी ऑर डिफरेंस शीर्षक से लिखे लेख में मेघनाद देसाई कहते हैं कि अक्सर भारतीय अपनी विविधता पर गर्व करते हैं. लेकिन कभी-कभी यह झगड़े की वजह बन जाती है. कावेरी विवाद का जिक्र करते हुए वह कहते हैं इसका सबसे चिंताजनक पहलू एक राज्य का दूसरे राज्य के खिलाफ खड़े हो जाना है. दोनों ओर के लोग इस तरह लड़ते दिख रहे हैं जैसे कर्नाटक और तमिलनाडु अलग-अलग देश हों. अगर ऐसे ही रहा तो जल्द ही बेंगलुरू और चेन्नई अपना कॉस्मोपोलिटन कैरेक्टर खो देंगे. देसाई कहते हैं - पिछले 25 साल में दो देश टूट चुके हैं पहला सोवियत संघ और दूसरा युगोस्लाविया. युगोस्लाविया को सोवियत कम्यूनिस्ट और अमेरिकी कैपिटलिस्ट से इतर एक सोशलिस्ट देश माना जाता था. लेकिन जब यह टूटा तो बेहद क्रूर हिंसा के साथ. भारत को इन उदाहरणों को याद रखना चाहिए.
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सर्जिकल स्ट्राइक का फायदा न उठाए बीजेपी
एशियन एज में पवन के वर्मा ने सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर बीजेपी के रवैये पर सवाल उठाया है. वह कहते हैं कि यह स्ट्राइक पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने की राष्ट्रीय प्रतिबद्धता का प्रतीक है. यह हमला सिर्फ बीजेपी ने नहीं किया है. इसलिए उत्तर प्रदेश और पंजाब चुनाव में इसका फायदा लेने का पार्टी का इरादा ठीक नहीं है. आखिरकार उत्तर प्रदेश में नरेंद्र मोदी को राम और नवाज शरीफ को रावण के तौर दिखाने वाले पोस्टरों का क्या मतलब है. कुछ लोगों का कहना है कि यह कुछ कार्यकर्ताओं का काम है. लेकिन यह आंखों में धूल झोंकना है. देश देखेगा कि बीजेपी किस कदर यूपी और पंजाब चुनाव में इसका फायदा उठाती है. आखिर रक्षा मंत्री एक अभिनंदन समारोह से दूसरे समारोह में जाकर यह क्यों कह रहे हैं 2014 में बीजेपी के सत्ता में आने से पहले तक भारतीय सेना नपुंसक थी.
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