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संडे व्यू:बच्चों की मौत का जिम्मेदार कौन? विश्वकप में सोशल मीडिया

सुबह मजे से पढ़ें संडे व्यू जिसमें आपको मिलेंगे अहम अखबारों के आर्टिकल्स.

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भारत
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मौत की जिम्मेदारी कौन लेगा?

पी चिदम्बरम ने जनसत्ता में लिखा है कि मुजफ्फरपुर में सौ से ज्यादा बच्चों की मौत हो, वडोदरा शहर में सात सफाई कर्मचारियों की मौत, दिल्ली की सड़क पर हर दिन हो रही चार मौत हो या फिर दिल्ली के बारापुला में दिखता भ्रष्टाचार हो- यह एक सरकार की असफलता मात्र नहीं है, यह सरकार के भीतर की सरकार की असफलता है.

पी चिदम्बरम लिखते हैं कि इन घटनाओं की जिम्मेदारी लेने कोई नहीं आता. मुजफ्फरपुर में 103 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और एकमात्र सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को रेटिंग में पांच में से शून्य अंक मिले थे. जिस श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल के शिशु रोग विभाग में बच्चों का इलाज चल रहा है, वहां आईसीयू के लिए निर्धारित मानक पूरा नहीं होता. आखिर जिम्मेदारी कौन लेगा? लीची को जिम्मेदार ठहरा देना क्या काफी है?

जिन बच्चों ने रात का खाना नहीं खाया और खाली पेट लीची खाकर सोए, उन्हें ही यह बीमारी हुई. 2008 से 2014 के दौरान 6 हजार बच्चों की मौत हुईं. इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? पी चिदम्बरम ने लिखा है कि नोटबंदी सरकार की गलती थी, तो जीएसटी सरकार के अंदर दूसरी सरकार की गलती है. चुनौती नीति बनाने की नहीं है, उन्हें दक्षतापूर्वक लागू करने की है.

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अस्पताल या कूड़ाघर?

तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में मुजफ्फरपुर में बीमारी से बच्चों की मौत को लेकर संवेदनशील आलेख लिखा है. उन्होंने बताया है कि जिस श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल में बच्चों का इलाज चल रहा है वहा गंदगी का अंबार है. यही हाल बिहार और यूपी के अधिकतर अस्पतालों का है. खास तौर से इन राज्यों में स्कूल, अस्पताल और स्वास्थ्य केंद्रों को वे बदतर बताती हैं. देश में हर 21 मिनट पर बच्चों का मरना और प्रति हजार 61 बच्चों का 5वां जन्मदिन नहीं मनाया जा सकना शर्मनाक आंकड़े हैं.

लेखिका ने लिखा है कि मोदी सरकार को चाहिए कि वे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर भी बढ़-चढ़कर काम करे भले ही यह राज्य का विषय हो. क्योंकि, ज्यादातर राज्य सरकारें बीजेपी की हैं. वह लिखती हैं कि दुनिया के बेहतरीन डॉक्टर भी भारत में हैं और बदतर व्यवस्था भी यही है. गंभीर से गंभीर बीमारी का इलाज कराने लोग भारत आते हैं और यहीं लाइलाज बीमारी तो छोड़िए, साधारण सी बीमारियों के कारण मौत भी सबसे ज्यादा है. उन्होंने अधिक से अधिक संख्या में मेडिकल कॉलेज खोलने और लाइसेंस राज खत्म करने की वकालत की है.

तीन तलाक कानून से बदला लेंगी महिलाएं

पूजा बेदी ने द टाइम्स ऑफ इंडिया के हर्ट चक्र में बिंदास तरीके से लिखा है कि तीन तलाक को सुप्रीम कोर्ट अगस्त 2017 में गलत ठहरा चुका है और अब नये कानून से यह गैर जमानती अपराध हो जाएगा. इसके बाद इसका दुरुपयोग होगा, महिलाएं हथियार के तौर पर इसका इस्तेमाल करेंगी. जिस तरीके से धारा 498ए, घरेलू हिंसा और धारा 376 का दुरुपयोग व्यक्तिगत फायदे, दोहन और उत्पीड़न के लिए हुआ, वह दोहराया जाएगा.

पूजा बेदी लिखती हैं कि 2013-14 में दिल्ली महिला आयोग में 53 फीसदी मामलों में महिलाओं ने कानून का दुरुपयोग किया. इसी तरह देश में 70 फीसदी घरेलू हिंसा के मामलों में कानून का दुरुपयोग हुआ. लाखों लोग जेल में हैं या जेल जाने को तैयार बैठे हैं. सीएनबीसी का मानना है कि 60 फीसदी पुरुष महिलाओं का मेंटर बनने से बचना चाहते हैं. पूजा बेदी सवाल करती हैं कि क्या हम चाहते हैं कि अच्छी लड़कियों को भी नौकरी न मिले? वह लिखती हैं कि तीन तलाक को अपराध ठहरे जाने के बाद इस्लामी शादियों का अंत होने लगेगा और मुसलमान भारतीय कानून के दायरे में आने को मजबूर होंगे.

क्या भारत में कम्युनिस्ट पार्टियां फिर से खड़ी हो सकती है?

रामचंद्र गुहा ने द टेलीग्राफ में लिखे अपने आलेख में इस सवाल पर मंथन किया है कि क्या भारत में कम्युनिस्ट पार्टियां फिर से खड़ी हो सकती है? इस सवाल का जवाब वे आलेख के आखिरी में देते हैं जब वे लिखते हैं कि कम्युनिस्ट के बजाय डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट के रूप में खुद को बदलकर वामपंथी अपने आपको दोबारा खड़ा कर सकते हैं और इसी नाम से सभी कम्युनिस्ट मार्क पार्टियां एकजुट भी हो सकती हैं.रामचंद्र गुहा ने केरल के सभी 14 जिलों में बारी-बारी से होने वाले केरल शास्त्र साहित्य परिषद (केएसएसपी) के सम्मेलन का जिक्र करते हुए चर्चा की शुरुआत करते हैं, जो कभी सीपीएम का अहम हथियार हुआ करता था. आज इसमे ज्यादातर लोग कांग्रेस को चाहने वाले हैं, कुछेक बीजेपी को भी.

लेखक मानते हैं कि अक्सर ज्योति बसु के पीएम नहीं बनने को वामपंथियों की बड़ी भूल कहा जाता है लेकिन इससे बड़ी भूल थी जब यूपीए की दोनों सरकारों से वामपंथी दूर रहे. वे शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मंत्रालय पास रखकर बड़ा काम कर सकते थे. 2019 की लोकसभा पहली ऐसी लोकसभा है, जिसमें वामदलों की संख्या दहाई भी नहीं पहुंच सकी है. वे लिखते हैं कि कम्युनिस्ट हमेशा से विदेशी विचारकों से प्रभावित रहे, मगर कोई भी विदेशी विचारक भारतीयता और यहां के सामाजिक-राजनीतिक तानाबाना को समझ नहीं सके. खुद भारतीय कम्युनिस्ट दिग्गजों में भी कमलादेवी चट्टोपाध्याय की लिंग समानता, लोहिया के वर्ग और जेपी के राजनीतिक विकेन्द्रीकरण वाली समझ का अभाव रहा. लेखक का मानना है कि कम्युनिस्ट वापसी कर सकते हैं मगर उन्हें खुद में बड़ा बदलाव लाना होगा.

भारतीय कूटनीति के लिए 5 जरूरतें

द हिन्दू में लिखे अपने आलेख में हैप्पीमॉन जैकब ने भारतीय कूटनीति के लिए 5 जरूरतें ऊर्जा और बतलायी हैं. वे भारत और अमेरिका के बीच मजबूत संबंध की वकालत करते हैं मगर लिखते हैं कि चीन को भी उकसाने से बचना चाहिए. भारत की पश्चिम एशिया नीति में भी संतुलन की वे जरूरत बताते हैं. ऊर्जा समेत दूसरे मुद्दों पर ईरान के साथ संबंध जरूरी है मगर अमेरिका, सऊदी अरब और इजराइल को भी नाराज नहीं करना है.

रूस और मॉस्को में संबंध के बीच से भारत को अपने लिए रास्ते तलाशने हैं ताकि अफगानिस्तान, हथियारों की खरीद समेत तमाम मुद्दों पर भारतीय हित सुरक्षित रहे. पाकिस्तान और चीन के बीच संबंध के बीच भारत को यह अहसास कराना होगा कि इलाके की शांति में भारत का बड़ा योगदान है. मतभेदों के बावजूद चीन और भारत को दक्षिण एशिया में एक-दूसरी की अहमियत समझनी होगी. अफगानिस्तान के मसले पर भारत को रूस-चीन, चीन-पाकिस्तान, तालिबान-काबुल और तालिबान-पाकिस्तान संबंधों के बीच अपनी जगह तलाशनी होगी.

लेखक का मानना है कि दक्षिण चीन सागर और हिन्द महासागर से लेकर मध्यपूर्व एशिया में अमेरिकी रणनीतिक हिस्सेदारी में चीन अपनी पकड़ मजबूत करता जा रहा है. इसके लिए भारत को न स्थायी दोस्त और न स्थायी दुश्मन के तौर पर किसी देश के साथ रिश्ते में रहने की जरूरत है बल्कि किसी देश को अधिक नाराज किए बगैर अपने हितों को साधने की आवश्यकता है.

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विश्वकप क्रिकेट से मजबूत हुई सोशल मीडिया

रुत्विक मेहता ने डीएनए में लिखा है कि विश्व कप क्रिकेट के दौरान सोशल मीडिया ने जहां भारतीय खिलाड़ियों को अपने फैंस के करीब ला दिया है, वहीं पाकिस्तानी खिलाड़ी प्रशंसकों से दूर हो गये हैं. चहल टीवी के जरिए युजवेन्द्र चहल ने क्रिकेटरों से इंटरव्यू के जरिए अपने चरित्र का नया आयाम सामने रखा है, तो कई दूसरे खिलाड़ी भी सोशल मीडिया के जरिए खुलकर खुद को व्यक्त कर सके हैं.

पाकिस्तान के लिए विश्वकप जीतने वाले कप्तान रहे इमरान खान ने बतौर प्रधानमंत्री एक के बाद एक ट्वीट कर भारत के साथ बेहतर प्रदर्शन के लिए अपनी टीम का हौंसला बढ़ाया था. वहीं जीत के बाद अमित शाह ने जीत के बाद लिखा, “भारत की ओर से पाकिस्तान पर एक और स्ट्राइक और नतीजा वही.” पाकिस्तान के कप्तान सरफराज अहमद अपने ही देश में क्रिकेटरों के निशाने पर आ गये. उन्हें ‘सूअर जैसा मोटा’ बताया गया. हसन अली को वह ट्वीट डिलीट करना पड़ा, जिसमें एक भारतीय पत्रकार ने भारत के लिए जीत की दुआ की थी और हसन अली ने प्रतिक्रिया में कहा था कि आपकी कामना पूरी हो. विश्वकप में सोशल मीडिया ने एक के बाद एक घटनाओं और प्रतिक्रियाओं के जरिए क्रिकेटरों और प्रशंसकों को एक-दूसरे से जोड़ने का काम किया है. जोड़ दिया है.

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