सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को गैंगरेप और हत्या के लिए मौत की सजा पाए छह लोगों को बरी कर दिया. इनकी मौत की सजा पर खुद सुप्रीम कोर्ट ने ही इससे पहले 2009 में मुहर लगाई थी और उसके बाद 2010 में रिव्यू पेटिशन समीक्षा के बाद भी इस फैसले को बरकरार रखा था.
जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस अब्दुल नजीर और अपनी ओर से फैसला सुनाते हुए, जस्टिस एमआर शाह ने कहा, "इस केस में कोई निष्पक्ष और ईमानदार जांच नहीं हुई थी और यहां तक कि अभियोजन पक्ष ने भी अदालत से तथ्यों को छुपाने की कोशिश की."
आरोपियों को बरी करने के अलावा, बेंच ने महाराष्ट्र राज्य को निर्देश दिया (जिसने आरोपियों पर मुकदमा चलाया) कि प्रत्येक अभियुक्त को मुआवजे के तौर पर 5 लाख रुपये मुआवजे का भुगतान किया जाए, क्योंकि उन्होंने "जेल में अपने जीवन के कीमती साल गंवा दिए" और उनके परिवारों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ा.
उन्होंने राज्य के मुख्य सचिव को इस मामले में पूछताछ करने और उन दोषी अधिकारियों को पहचानने के लिए निर्देश दिया, जो केस के असली दोषियों को पकड़ने में नाकाम रहे.
क्या है मामला?
ये मामला महाराष्ट्र के नासिक जिले का है. 5 जून 2003 को एक घर में 6 बदमाश लूट के इरादे से घुसे. उन्होंने घर में 5 लोगों की बेरहमी से हत्या की और घर की दो महिलाओं के साथ गैंगरेप किया, जिनमें से एक नाबालिग थी. परिवार में एक मर्द और एक औरत गंभीर रूप से घायल होने के बाद बच गए. उनकी शिकायत पर मुकदमा दर्ज हुआ. महाराष्ट्र पुलिस की क्राइम ब्रांच ने 6 बदमाशों को गिरफ्तार किया. इनके खिलाफ नासिक सेशन कोर्ट में चार्जशीट दाखिल हुई.
सेशन कोर्ट ने जून 2006 में सभी 6 आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई. हाईकोर्ट ने मार्च 2007 में इनमें से तीन को फांसी की सजा सुनाई. अन्य दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया. इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. हाईकोर्ट से फांसी की सजा पाए 3 दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट ने तीनों दोषियों की अपील खारिज करते हुए उनकी फांसी की सजा को बरकरार रखा.
इसके अलावा महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अन्य 3 दोषियों के खिलाफ अपील दायर की, जिनकी फांसी की सजा को हाईकोर्ट ने उम्रकैद में बदल दिया था. राज्य सरकार ने इन तीनो को भी फांसी की सजा देने की मांग की. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की अपील मंजूर करते हुए सभी 6 दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी.
SC ने पुनर्विचार याचिका के बाद बदला अपना फैसला
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में दोषियों ने पुनर्विचार याचिका दायर की, जिसकी सुनवाई में सामने आया कि राज्य सरकार ने जिन 3 दोषियों की उम्रकैद को फांसी की सजा में तब्दील करने की मांग की थी, उसकी सुनवाई में 3 दोषियों की तरफ से पैरवी नहीं हुई थी. इस बात को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 3 दोषियों की अपील को फिर से सुनने का फैसला लिया.
सुनवाई के दौरान ये बात सामने आई कि इस वारदात में जो महिला गैंगरेप का शिकार होने और गंभीर रूप से घायल होने के बाद बच गई थी, उसने पुलिस रिकार्ड में शातिर बदमाशों की फोटो देखकर उनमें से 4 की पहचान की थी, लेकिन पुलिस ने उन 4 बादमाशों को गिरफ्तार करने की बजाय अन्य 6 लोगों को पक़डकर उनके खिलाफ मुकदमा चलवा दिया था.
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