सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को यूपीएससी (UPSC) के उम्मीदवारों की ओर से दायर याचिका को खारिज कर दिया. ये उम्मीदवार कोविड-19 की वजह से अक्टूबर 2020 की परीक्षा में अपना अंतिम मौका गंवा चुके थे और सिविल सेवा परीक्षा में बैठने का एक और मौका चाहते थे.
सुप्रीम कोर्ट ने रखा था 9 फरवरी को फैसला सुरक्षित
इस मामले में शीर्ष अदालत ने 9 फरवरी को फैसला सुरक्षित रखा था. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि वह UPSC सिविल सेवा के उम्मीदवारों को उम्र संबंधी छूट राहत देने के पक्ष में नहीं है क्योंकि यह अन्य उम्मीदवारों के लिए भेदभावपूर्ण होगा.
फैसले की घोषणा करते हुए जस्टिस इंदु मल्होत्रा और अजय रस्तोगी की खंडपीठ ने कहा कि याचिका खारिज की गई है. हालांकि, अदालत ने याचिकाकर्ताओं के वकील की प्रशंसा की.
केंद्र सरकार की ओर से पैरवी कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने शीर्ष अदालत को बताया था कि शुरू में सरकार अतिरिक्त मौका देने को तैयार नहीं थी, लेकिन पीठ के एक सुझाव के बाद उसने अपना रुख नरम किया.
UPSC के उम्मीदवार, महामारी के कारण जिनके पिछले अक्टूबर में परीक्षा में शामिल होने के मौके खत्म हो गए या उम्र संबंधी सीमा खत्म हो गई, ने शीर्ष अदालत से सरकार को उन्हें अतिरिक्त प्रयास प्रदान करने के लिए निर्देश देने का आग्रह किया था.
‘कोई विकल्प नहीं दिया गया’
याचिकाकर्ताओं ने कहा था, "इस महामारी के दौरान, अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए जहां सभी के पास 2020 में परीक्षा छोड़ कर अपने मौके को बचाने का विकल्प था, लेकिन वहीं अंतिम मौके वाले उम्मीदवारों को बिल्कुल भी कोई विकल्प नहीं दिया गया और परीक्षा की तैयारी के अवसर की कमी के बावजूद परीक्षा में बैठना पड़ा था."
राजू ने जोर देकर कहा था कि सरकार उनके प्रति अपना रुख नरम करने के लिए तैयार नहीं है जिन उम्मीदवारों की परीक्षा में बैठने के लिए उम्र समयसीमा खत्म हो चुकी है. उन्होंने जोर देकर कहा कि ये न्यायालय के दायरे से परे नीतिगत मामले हैं. राजू ने कहा, "यह वह परीक्षा नहीं है जहां आप अंतिम समय में तैयारी करते हैं. लोग सालों से इसकी तैयारी करते हैं."
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